राज ठाकरे पर भारी पड़ा शिवसेना-मोदी का मेल

लोकसभा के चुनाव परिणामों ने महाराष्ट्र की राजनीति में निरंतर टकराते आ रहे दो ठाकरे बंधुओं उद्धव एवं राज के भविष्य का फैसला भी एक तरह से सुना दिया है। इन परिणामों ने राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] को हाशिए पर पहुंचा दिया है। 200

By Edited By: Publish:Sat, 17 May 2014 03:01 PM (IST) Updated:Sat, 17 May 2014 03:19 PM (IST)
राज ठाकरे पर भारी पड़ा शिवसेना-मोदी का मेल

[ओमप्रकाश तिवारी], मुंबई। लोकसभा के चुनाव परिणामों ने महाराष्ट्र की राजनीति में निरंतर टकराते आ रहे दो ठाकरे बंधुओं उद्धव एवं राज के भविष्य का फैसला भी एक तरह से सुना दिया है। इन परिणामों ने राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] को हाशिए पर पहुंचा दिया है।

2009 के लोकसभा चुनावों में राज ठाकरे ने मुंबई, ठाणे, पुणे एवं नाशिक में 11 प्रत्याशी खड़े किए थे। इनमें से नौ ने एक से दो लाख तक मत हासिल किए थे। तब मनसे कोई सीट तो नहीं जीत सकी थी, लेकिन शवसेना-भाजपा को हरवाने में बड़ी भूमिका जरूर निभाई थी। मनसे के इन प्रत्याशियों के कारण ही मुंबई की सभी छह सीटें शिवसेना-भाजपा गठबंधन हार गया था। नासिक और पुणे में भी शिवसेना-भाजपा गठबंधन को मनसे प्रत्याशियों की वोटकटवा भूमिका से नुकसान उठाना पड़ा था। राज ठाकरे ने इस बार भी खासतौर से शिवसेना को सबक सिखाने के लिए 10 प्रत्याशी खड़े किए थे। लेकिन शिवसेना के कैडर आधारित मजबूत संगठन एवं भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की प्रबल लहर के आगे इस बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी है।

मनसे के 10 प्रत्याशी इस बार 25 से 75 हजार मत पाकर सिमट गए हैं। कल्याण का सिर्फ एक प्रत्याशी ही इस बार 1,22,349 वोट पा सका। लेकिन शिवसेना एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच मतों का अंतर इतना अधिक था कि मनसे को मिले इतने वोट भी शिवसेना का कोई नुकसान नहीं कर सके। राज ठाकरे की राजनीति युवा मराठी मतदाताओं पर टिकी है। चूंकि युवावर्ग का रुझान इस बार नरेंद्र मोदी की ओर था, इसलिए राज ठाकरे को अपने इस वोटबैंक से भी हाथ धोना पड़ा। मराठीभाषियों के मत इसलिए भी राज ठाकरे को नहीं मिले क्योंकि प्रबुद्ध मराठी मतदाता समझ गए थे कि उनकी पार्टी को वोट देना निरर्थक साबित हो सकता है। राज से मराठी मतदाताओं का कट जाना न सिर्फ उनके लिए , बल्कि कांग्रेस-राकांपा के लिए भी नुकसानदेह रहा। क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में मनसे की वोटकटवा भूमिका सीधा लाभ इन्हीं दोनों दलों को मिला था।

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