कानूनों की प्रासंगिकता की परख करने वाला विधि आयोग में चौदह महीने से खाली है अध्यक्ष पद

अहम संस्था का अध्यक्ष पद पिछले 14 महीने से खाली है। 31 अगस्त 2018 को जस्टिस बीएस चौहान के रिटायरमेंट के बाद से आयोग का नया अध्यक्ष नहीं नियुक्त हुआ है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 29 Dec 2019 10:25 PM (IST) Updated:Sun, 29 Dec 2019 10:25 PM (IST)
कानूनों की प्रासंगिकता की परख करने वाला विधि आयोग में चौदह महीने से खाली है अध्यक्ष पद
कानूनों की प्रासंगिकता की परख करने वाला विधि आयोग में चौदह महीने से खाली है अध्यक्ष पद

माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश कानून से चलता है और कानून विधायिका बनाती है। नए कानून की जरूरत और मौजूदा कानूनों की प्रासंगिकता की परख सतत प्रक्रिया है और यह काम करता है- विधि आयोग। विधि आयोग ऐसा करते वक्त विषय और परिस्थितियों का गहनता से अध्ययन करता है। वह नए कानून पर जनता और बुद्धिजीवियों से परामर्श भी करता है, ताकि प्रस्तावित कानून न सिर्फ संवैधानिक तौर पर चाक-चौबंद हो, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी खरा उतरे।

जस्टिस बीएस चौहान के सेवानिवृत्त होने के बाद नहीं हुई किसी अन्य की नियुक्ति

इतनी अहम संस्था का अध्यक्ष पद पिछले 14 महीने से खाली है। 31 अगस्त 2018 को जस्टिस बीएस चौहान का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से आयोग का नया अध्यक्ष नहीं नियुक्त हुआ है।

समान नागरिक संहिता को लेकर विधि आयोग चर्चा में रहा

पिछला विधि आयोग समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) पर विचार करने के कारण काफी चर्चा में रहा। कानून मंत्रालय ने 17 जून 2016 को विधि आयोग को इस पर विचार करने का प्रस्ताव भेजा था। दो साल तक मंथन के बाद विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की सलाह देने की बजाय विभिन्न पारिवारिक विधियों (फैमिली लॉ) में संशोधन करने के सुझाव दिए और उस पर परामर्श पत्र जारी कर लोगों की राय भी मांगी। विधि आयोग की ओर से यह रिपोर्ट जस्टिस चौहान के कार्यकाल के अंतिम दिन 31 अगस्त 2018 को जारी हुई। देश विधि आयोग से जिस समान नागरिक संहिता के प्रारूप की उम्मीद लगाए बैठा था, वह अधर में ही लटका रहा।

आयोग ने सरकार को महिला और पुरुष को बराबरी पर लाने की दी थी सलाह

ऐसा नहीं कि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर गहनता से काम नहीं किया। आयोग ने इस बारे में दो बार परामर्श पत्र जारी किए। आम लोगों और बुद्धिजीवियों की राय मांगी। सभी पहलुओं पर विचार के बाद आयोग ने पाया कि देश की विभिन्न संस्कृतियों को बनाए रखने के लिए पहले कदम के तहत विभिन्न पारिवारिक विधियों में संशोधन कर महिला और पुरुष को बराबरी पर लाना होगा। इसके लिए आयोग ने हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और पारसी आदि समुदायों के पर्सनल लॉ का अध्ययन किया और उसमें समुचित बदलाव करके संपत्ति और उत्तराधिकार में बराबरी लाने की सलाह दी थी।

आयोग ने तीन तलाक को प्रश्नों की सूची से हटा दिया था

जब आयोग के समक्ष समान नागरिक संहिता का मुद्दा विचाराधीन था, उसी बीच सुप्रीम कोर्ट से मुसलमानों में प्रचलित तत्काल तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने का फैसला आ गया था। इसके बाद आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विचार करने वाले प्रश्नों की सूची से तीन तलाक का सवाल हटा दिया था।

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