मोदी को लालू का खत, ऐसे तो रेलवे का दिवाला पिटना तय

मोदी सरकार के तीसरे रेल बजट से पहले राजद अध्यक्ष व पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रेलवे की खस्ता माली हालत को लेकर चेताया है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Sun, 14 Feb 2016 07:41 AM (IST) Updated:Sun, 14 Feb 2016 07:54 AM (IST)
मोदी को लालू का खत, ऐसे तो रेलवे का दिवाला पिटना तय

संजय सिंह, नई दिल्ली। मोदी सरकार के तीसरे रेल बजट से पहले राजद अध्यक्ष व पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रेलवे की खस्ता माली हालत को लेकर चेताया है। लालू का कहना है कि यदि सरकार ने गरीब, ग्राहक व कर्मचारी विरोधी नीतियों का परित्याग नहीं किया तो एमटीएनएल और एयर इंडिया की तरह रेलवे का भी दिवाला पिटते देर नहीं लगेगी। यदि ऐसा हुआ तो यह जनादेश के साथ विश्वासघात होगा।

लालू ने लिखा है- रेलवे गरीब जनता व अपने ग्राहकों तथा कर्मियों के लिए अच्छे दिन लाने में नाकाम रहा है। यह ऐसे दुष्चक्र में फंस चुका है, जिसमें यात्री व माल भाड़े बढ़ते जा रहे हैं, मगर रेलवे का कारोबार घटता जा रहा है। लागत बढ़ रही है।

मुनाफा व बाजार हिस्सेदारी घट रही है। उत्पादकता व लाभप्रभदता बिगड़ती जा रही है। ऐसे लक्ष्य निर्धारित किए गए, जिन्हें हासिल करना करना नामुमकिन था। आमदनी के अनुमान मुंगेरीलाल के हसीन सपने साबित हुए हैं। पहली बार बजट अनुमान की अपेक्षा यातायात आमदनी 11 प्रतिशत यानी 17 हजार करोड़ रुपये कम रहने की संभावना है।

यात्री व माल यातायात में तीन प्रतिशत की कमी दर्ज की जा रही है, जबकि बजट पांच से सात प्रतिशत की वृद्धि दर पर निर्धारित किया गया था। फलस्वरूप यातायात आमदनी 17 के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ छह प्रतिशत बढ़ी है, जो कि यात्री व मालभाड़ों में की गई औसत वृद्धि से भी कम है। रेलवे चालू वित्तीय वर्ष में तो किसी तरह अपना जरूरी खर्च निकाल लेगा, लेकिन अगले वर्ष 7वें वेतन आयोग के लिए वित्त मंत्रालय से 30 हजार करोड़ मांगने पड़ेंगे।

फिलहाल वित्त मंत्रालय ने सालाना 30 हजार करोड़ रुपये के राजस्व अनुदान की रेलवे की गुहार खारिज कर दी है, लेकिन यह भी काफी नहीं होगा। जर्जर संपत्तियों को बदलने व यातायात को सुगम बनाने के लिए 30 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त अनुदान की भी जरूरत होगी। चालू पूंजीगत कार्यों के लिए 40 हजार करोड़ रुपये की सकल बजटीय सहायता का इंतजाम भी करना पड़ेगा।

जाहिर है कि रेलवे दिवाली (वर्ष 2007-08 में रेलवे का ऑपरेटिंग कैश मुनाफा छह अरब डॉलर व ऑपरेटिंग रेशियो 76 प्रतिशत था) से 2016-17 में दिवाला (ऑपरेटिंग कैश लॉस पांच अरब डॉलर व ऑपरेटिंग रेशियो 120 फीसद) की ओर बढ़ रही है।

ऐसा ही संकट 2001 में आया था। लेकिन 2004 से 2009 के दौरान रेलवे कायाकल्प करने में कामयाब रही। इसके लिए व्यापार बढ़ाओ, प्रति इकाई लागत तथा यात्री व मालभाड़े कम करो, प्रॉफिट मार्जिन तथा बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने की रणनीति अपनाई गई थी। जो आम आदमी, रेलकर्मी व ग्राहकों के हितों तथा उन्हें रेलवे की तरक्की में भागीदार बनाने के उद्देश्य से प्रेरित थी।

तेज, भारी व लंबी ट्रेने चलाई गईं। मार्केटिंग रणनीति भी परिवर्तनीय, ग्राहक अनुकूल व बाजार आधारित थी। इसने रेलवे को सालाना दो-दो अरब डॉलर कमा कर दिए।

मौजूदा हालात ज्यादा गंभीर हैं। विडंबना यह है कि मात्र कर्ज बटोरने को ही रामबाण औषधि मान लिया गया है। 7वें वेतन आयोग के बाद रेलवे अपने ब्रेक इवेन (न घाटा, न मुनाफा) से 30 हजार करोड़ रुपये दूर रह जाएगी। एलआइसी व जायका (जापानीज इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी) से 40 अरब डॉलर के कर्ज में से यदि 25 प्रतिशत भी लिया जाता है तो अदायगी के लिए 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी।

इसके कारण ऑपरेटिंग कैश लॉस बढ़कर 40 हजार करोड़ रुपये हो जाएगा। ऐसे में बुलेट ट्रेन जैसी गैर लाभप्रद व घाटे की योजनाओं के लिए कर्ज लेना अपने पैर कुल्हाड़ी मारना है।

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