लाल बहादुर शास्त्री अपनी सादगी के लिए हमेशा किए जाएंगे याद, जानें उनके व्यक्तित्व की कुछ खास बातें

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने देश में ‘भोजन की कमी’ के बीच सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा दिया। उस समय उन्होंने अपना वेतन तक लेना बंद कर दिया था।

By Shashank MishraEdited By: Publish:Sat, 01 Oct 2022 07:06 PM (IST) Updated:Sun, 02 Oct 2022 08:37 AM (IST)
लाल बहादुर शास्त्री अपनी सादगी के लिए हमेशा किए जाएंगे याद, जानें उनके व्यक्तित्व की कुछ खास बातें
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। 2 अक्टूबर को हर साल गांधी जयंती के साथ लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी मनाई जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जिले में हुआ था। वह 1964 में भारत के प्रधानमंत्री बने और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश का नेतृत्व किया।

भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश को मिला ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने देश में ‘भोजन की कमी’ के बीच सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा दिया। उस समय उन्होंने अपना वेतन तक लेना बंद कर दिया था। उन्होंने अपने विनम्र स्वाभाव, मृदुभाषी व्यवहार और आम लोगों से जुड़ने की क्षमता से भारत की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी थी।

भारत को ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त कराने के लिए सैकड़ों महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। देश के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख प्रचारकों में से एक लाल बहादुर शास्त्री हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से देश के गरीब वर्ग के लिए लड़ाई लड़ी।

लाल बहादुर शास्त्री ने ताशकंद में ली अंतिम सांस 

मुगलसराय में शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और रामदुलारी देवी के घर जन्मे लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1961 से 1963 तक देश के छठे गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया। 11 जनवरी, 1966 को कार्डियक अरेस्ट के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने ताशकंद में अंतिम सांस ली। वहां शास्त्री पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति एम अयूब खान के साथ युद्धविराम की घोषणा पर हस्ताक्षर करने और युद्ध को समाप्त करने पहुंचे थे।

स्वतंत्रता सेनानी ने 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के साथ अपना जन्मदिन ही नही साझा किया बल्कि गांधीवाद के प्रबल सर्मथक भी रहें। लाल बहादुर शास्त्री को श्वेत क्रांति जैसे ऐतिहासिक अभियान शुरू करने के लिए भी जाना जाता है, जिसने देश में दूध के उत्पादन बढ़ाया।

रेलमंत्री के पद से दिया था इस्तीफा

1965 में, उन्होंने भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया, जिसने देश में किसानों की समृद्धि और भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया था। रेलमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एक रेल दुर्घटना में कई लोगों की जान चली गई। इससे लाल बहादुर शास्त्री इतने हताश हुए कि दुर्घटना के लिए उन्होंने खुद को जिम्मेदार मानते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था।

लाल बहादुर शास्त्री को "शांति के प्रतीक" के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने हमेशा आक्रामकता के बजाय अहिंसा का रास्ता पसंद किया। उन्हें 1966 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी के जन्म-दिवस पर देश उन्हें कोटि-कोटि नमन् करता है।

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