कृपाल के परिजनों ने कहा, मौत नहीं हत्या की गई

करीब 25 साल से पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में कैद गुरदासपुर के गांव मुस्तफाबाद सैदां के कृपाल सिंह की मौत को परिजनों ने हत्या करार दिया है।

By Gunateet OjhaEdited By: Publish:Tue, 12 Apr 2016 10:11 PM (IST) Updated:Tue, 12 Apr 2016 10:16 PM (IST)
कृपाल के परिजनों ने कहा, मौत नहीं हत्या की गई

जेएनएन, अमृतसर। करीब 25 साल से पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में कैद गुरदासपुर के गांव मुस्तफाबाद सैदां के कृपाल सिंह की मौत को परिजनों ने हत्या करार दिया है। परिजनों ने मंगलवार को सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर के साथ अंतरराष्ट्रीय अटारी वाघा सड़क सीमा पर बनी इंटेग्रेटिड चेक पोस्ट (आइसीपी) के सामने पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की। परिवारवालों ने केंद्र सरकार से उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की। साथ ही जल्द से जल्द शव दिलाने की भी गुहार लगाई। परिजन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए।

कृपाल सिंह की बहन जागीर कौर, वङ्क्षरदर कौर, भाभी कांता, ज्योति, भतीजे अश्विनी कुमार व दलबीर कौर ने आइसीपी के सामने प्रदर्शन किया। जागीर कौर ने कहा कि कृपाल सिंह की रिहाई के लिए वह कई भारतीय अधिकारियों से मिलीं पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

जिन्ना अस्पताल में हुई मौत
भतीजे अश्विनी ने बताया कि उन्हें सोमवार रात पुलिस व सीआइडी के माध्यम से कृपाल सिंह की मौत की सूचना मिली। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान में संपर्क किया। पता चला कि कृपाल सिंह को दिल का दौरा पडऩे के चलते जिन्ना अस्पताल ले जाया गया था। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

दो साल बाद पाक में होने की सूचना मिली
भाभी कांता ने बताया कि कृपाल भारतीय सेना की 22 पंजाब रेजिमेंट में तैनात था। करीब सात-आठ साल नौकरी करने के बाद उसने नौकरी छोड़ दी। 1991 में एक दिन घर से बाहर घूमने के लिए गया और बाद में वापस नहीं लौटा। करीब दो साल बाद उन्हें कृपाल का पत्र मिला, जो कि पाकिस्तान की कोट लखपत जेल से आया था। पाकिस्तान का बार्डर उनके गांव से करीब पांच-छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

बम धमाकों में फांसी की सजा मिली थी
कृपाल सिंह को पाकिस्तान में विभिन्न जगहों पर बम धमाके करने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। उन्हें कोट लखपत जेल से ही कृपाल का पहला और 10 फरवरी 2016 को आखिरी पत्र मिला। इससे साबित होता है कि वह पूरा समय कोट लखपत जेल में ही बंद रहे।

कई बार किया छुड़वाने का प्रयास
अश्विनी ने बताया कि अपने चाचा की रिहाई के लिए जहां वह कई साल पहले तत्कालीन सांसद अविनाश राय खन्ना से मिले। समय-समय पर पत्रों के माध्यम से पंजाब व भारत सरकार से विभिन्न मंत्रियों से उनकी मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी भी ने भी उनकी कोई सुनवाई नहीं की।

पार्सल और पत्र भेजा
अश्विनी ने बताया कि चाचा कृपाल सिंह उसे अक्सर पत्र भेजते थे। जवाब में वह भी उन्हें पत्र और जरूरत के मुताबिक पार्सल भेजते रहते थे। उसके पास चाचा द्वारा भेजे गए पंजाबी और उर्दू में लिखे कई पत्र मौजूद हैैं। शादी के कुछ साल बाद ही कृपाल सिंह का तलाक हो गया था। इसके बाद कृपाल अश्विनी को गोद ले रखा था।

रिहाई की उम्मीद में चल बसे माता-पिता
कृपाल के लापता होने के बाद और पाकिस्तान जेल में बंद होने की सूचना के बाद रिहाई का इंतजार करते उसके माता-पिता व परिवार के कई सदस्य चल बसे। उसके जाने के बाद उसके पिता दास सिंह, माता बानी देवी, भाई कश्मीर सिंह व बहन तस्वीरों देवी का निधन हो गया।

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