Afghan Peace Talks and India: छह बिंदुओं में समझिए अफगान शांति वार्ता में भारत की सफल कूटनीति का असर, अपने मंसूबों में विफल रहा पाक
रूस चीन अमेरिका पाकिस्तान ईरान के साथ भारत भी इस इलाके की शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप का हिस्सा होगा। पाकिस्तान भारत को अफगान शांति वार्ता से दूर रखने का हिमायती था लेकिन एक बार उसकी गंदी चाल नाकाम रही है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अमेरिका ने भारत को अफगान शांति वार्ता में शामिल किया है। रूस, चीन अमेरिका, पाकिस्तान, ईरान के साथ भारत भी इस इलाके की शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप का हिस्सा होगा। हालांकि, अमेरिकी फैसले से पाकिस्तान और चीन की चिंता बढ़ गई है। खासकर पाकिस्तान, भारत को अफगान शांति वार्ता से दूर रखने का हिमायती था, लेकिन एक बार उसकी गंदी चाल नाकाम रही है। भारत की सफल और प्रभावशाली कूटनीति के चलते पाकिस्तान अपने अभियान में विफल रहा। आइए, जानते हैं कि अफगान शांति वार्ता में भारत की हिस्सेदारी क्यों थी जरूरी और उपयोगी। इसके क्या होंगे दूरगामी परिणाम।
भारत के हित में हैं शांति वार्ता में हिस्सेदारी प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में किसी भी अंतरराष्ट्रीय हलचल और फैसले में उसके रोल की अवहेलना नहीं की जा सकती है। भारत ने सदैव से विश्व शांति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने वाला भारत दक्षिण एशिया में एक सक्षम देश है। दक्षिण एशिया की राजनीति का वह केंद्र बिंदू है। उसकी यही छवि पाकिस्तान और चीन को अखरती है। हालांकि, अभी तक अफगान शांति वार्ता में भारत को उस तरह का तवज्जो नहीं मिल सका है, जिसका वह हकदार है। शांति वार्ता में अब तक पाकिस्तान ही अहम स्टेकहोल्डर माना जाता था। पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पहल पर शांति वार्ता में दूसरे क्षेत्रीय मुल्कों को इसमें शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत, अफगान शांति वार्ता में इस भूमिका का हकदार है। इस मंच का हिस्सा बनकर ही भारत आतंकवाद, हिंसा और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ी अपनी बातों और शर्तों को आगे करने में सफल हो पाएगा।
रंग लाई भारत की कूटनीतिक पहल
प्रो पंत का कहना है कि इसकी नींव पिछले वर्ष अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति अब्दुल राशिद के भारत दौरे में ही पड़ गई थी। भारत ने इसके लिए कूटनीतिक प्रयास किए थे। इसके बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अफगानिस्तान यात्रा को इस कड़ी से जोड़ कर देखा जा सकता है। डोभाल ने इस दौरान अफगानिस्तान के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान तक पहुंच के लिए चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत की ईरान के साथ सक्रियता ने भी इसमें मदद की। उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बाद भी भारत ने अमेरिका के नए निजाम से अपने संबंधों को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन का प्रस्ताव इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका अफगानिस्तान में भारत की सक्रिय भूमिका चाहता है।