कलाम को सलाम: आतंकवाद से निपटने का दिया मंत्र
दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने आतंकवाद के खिलाफ 'न कभी न भूलो और न कभी माफ करो' की रणनीति अपनाने की सलाह दी थी। आतंकी हमलों से निपटने के लिए उन्होंने एक ऐसी राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी की वकालत की थी, जिस पर सभी एजेंसियों से सूचनाएं जुटाने,
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने आतंकवाद के खिलाफ 'न कभी न भूलो और न कभी माफ करो' की रणनीति अपनाने की सलाह दी थी। आतंकी हमलों से निपटने के लिए उन्होंने एक ऐसी राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी की वकालत की थी, जिस पर सभी एजेंसियों से सूचनाएं जुटाने, विश्लेषण करने तथा आतंकी हमलों की पूर्व सूचना देने की जिम्मेदारी हो।
25 जनवरी 2013 को रॉ के संस्थापक प्रमुख आरएन काव की याद में दिए व्याख्यान में कलाम ने कहा था कि आतंकवाद से निपटने के लिए भारत को अमेरिका और इजरायल की 'कभी न भूलो और कभी न माफ करो' की नीति अपनानी चाहिए। यही नहीं, उन्होंने इसके लिए तीनो देशों को मिलकर काम करने की सलाह भी दी थी।
उन्होंने कहा था कि भारत अपने अनुभव से सीख सकता है। लक्षित व सुव्यवस्थित अभियानों के लिए उपयुक्त तकनीक और उपकरणों को अपना सकता है। अमेरिका, इजरायल तथा भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिए यह उपयुक्त है कि वे साथ आएं और एकीकृत कार्यबल बनाकर आतंकवाद के खतरे का प्रभावी ढंग से खात्मा करें।
आतंकवाद से निपटने के लिए कलाम ने भारतीय खुफिया सेवा नाम से नई सेवा प्रारंभ करने की सलाह भी सरकार को दी थी। उन्होंने कहा था, 'एक व्यक्ति के नेतृत्व में खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही स्पष्ट रूप से तय की जानी चाहिए। साथ ही प्रत्येक जासूस से प्राप्त ब्योरे को एकत्र कर उनसे कार्रवाई लायक एकीकृत विचार विकसित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं नेटवर्क एंटरप्राइज साल्यूशंस का उपयोग किया जाना चाहिए।'
देश की सभी खुफिया एजेंसियों में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार की सलाह देते हुए कलाम ने कहा था कि 'एजेंसियों को घटना के बाद हरकत में आने के बजाय घटना का पहले से पता लगाने और उसे न होने देने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी।'
दुश्मन धरती में घुसकर गोपनीय अभियान चलाने के सिद्धांत का समर्थन करते हुए कलाम ने कहा था कि तकनीक पर आधारित गोपनीय अभियान वक्त की जरूरत बन गए हैं। ये 'दुश्मन जितना हमें नुकसान पहुंचाता है उतना हम उसे पहुंचाएं' की रणनीति पर काम करते हैं। इससे आतंक और अन्य राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के स्रोत को समाप्त किया जा सकता है।
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