कोरोना काल में न्याय : हाइब्रिड अदालतें वक्त की जरूरत, लेकिन जिलों में आ रही ये समस्या
सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट और निचली अदालतों सहित सभी जगह आजकल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हो रही है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। ठिठक-ठिठक कर तकनीक को अपनाने वाली अदालतों ने कोरोना काल में एकाएक इसका प्रयोग शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालतों सहित सभी जगह आजकल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हो रही है। लेकिन पटना हाई कोर्ट ने तो सारा कामकाज वर्चुअल कोर्ट यानी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये करना शुरू कर दिया। शायद सबसे पहले ऐसा करने वाला यह देश का पहला हाई कोर्ट है।
न्यायाधीशों से लेकर वकीलों तक ने धीरे-धीरे तकनीक अपना ली है और स्वयं को इसमें ढाल लिया है। अब सवाल उठता है कि कोरोना संकटकाल में वर्चुअल कोर्ट की शुरू हुई यह व्यवस्था क्या हालात सामान्य होने के बाद भी जारी रहनी चाहिए। क्या इस व्यवस्था को फिजिकल कोर्ट के साथ स्थायी तौर पर जारी रखा जाए और अगर ऐसा होता है तो उसके फायदे नुकसान क्या होंगे। इन तमाम मुद्दों पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। सबसे पहले निचली यानी जिला अदालतों में तकनीकी उपाय अपनाने की जरूरत है, क्योंकि किसी भी विवाद या अपराध पर मूल मुकदमा इन्हीं अदालतों में चलता है।
लंबित मुकदमों का सबसे अधिक बोझ भी जिला अदालतों पर है, जबकि देशभर में करीब 1200-1300 जिला अदालतों में से 400 में ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी सुविधा है। एक सच्चाई यह भी है कि देशभर में अभी सभी वकील तकनीकी रूप से कामकाज करने में प्रशिक्षित नहीं हैं। कोरोना काल में यह देखने को भी मिला है, जब पूरी व्यवस्था तकनीकी ज्ञान रखने वाले कुछ वकीलों के हाथ में सिमट गई। कानूनी सिस्टम का अध्ययन करने वाली संस्था दक्ष के सह-संस्थापक हरीश और प्रोग्राम डायरेक्टर सूर्यप्रकाश बीएस कहते हैं कि फिजिकल कोर्ट के साथ वर्चुअल कोर्ट की प्रक्रिया अपनाए रखने से मुकदमों के निपटारे को रफ्तार मिलेगी। पूरा कामकाज नहीं भी तो ई-फाइलिंग, ई-सम्मन, ई-नोटिस और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये गवाही और साक्ष्य पेश किए जाने से निश्चित तौर पर सुनवाई में तेजी आएगी।
सूर्यप्रकाश का कहना है कि किसी भी मुकदमे के सम्मन-नोटिस में ही 30-40 फीसद समय लग जाता है। अगर यह सब ऑनलाइन होगा, तो समय बच जाएगा। रांची हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रेमचंद्र त्रिपाठी भी कहते हैं कि अगर जजों और वकीलों दोनों को पूरी तरह प्रशिक्षित कर दिया जाए तो यह व्यवस्था मुकदमों के जल्द निपटारे में वरदान साबित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने बताया कि दिल्ली की जिला अदालतों में हर जज का एक स्थायी वर्चुअल कोर्ट रूम बन चुका है। वकील भी इसके जानकार हो गए हैं।
हालांकि, ज्ञानंत सिंह वर्चुअल कोर्ट में सुनवाई के पक्षधर नहीं हैं। उनका कहना है कि इस व्यवस्था में वकील को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिलता। फिजिकल कोर्ट में सुनवाई के बाद वकील जज से मुकदमा जल्दी लगाने की अपील कर सकता है, लेकिन वर्चुअल कोर्ट में जैसे ही कोर्ट आदेश लिखा कर तारीख देता है और अगर उसने दूसरा केस नंबर बोल दिया तो सिस्टम से जोड़ने वाला ऑपरेटर आपका कोर्ट से संपर्क काट देता है और आप अपनी बात नहीं रख पाते। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग का भी कहना है कि वर्चुअल कोर्ट में सुनवाई में न तो वकील को संतुष्टि होती है और न ही मुवक्किल को।