जया मामले में सरकारी वकील हटाने पर सुप्रीम कोर्ट में बंटा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे.जयललिता के बेनामी संपत्ति मामले में अब सुनवाई बड़ी खंडपीठ करेगी। सरकारी वकील को हटाने पर दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला आने से कर्नाटक हाईकोर्ट में भी जयललिता पर जल्द फैसला आने की उम्मीद पर पानी फिर गया है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे.जयललिता के बेनामी संपत्ति मामले में अब सुनवाई बड़ी खंडपीठ करेगी। सरकारी वकील को हटाने पर दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला आने से कर्नाटक हाईकोर्ट में भी जयललिता पर जल्द फैसला आने की उम्मीद पर पानी फिर गया है।
मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की पीठ को यह मामला सौंप दिया गया है। अब वह इस मामले में एक आधिकारिक फैसला लेने के लिए एक बड़ी बेंच गठित करेंगे। दरअसल इस मामले में विशेष सरकारी वकील भवानी सिंह को हटाने की द्रमुक नेता की अपील पर सुप्रीम कोर्ट का बंटा हुआ फैसला आया है।
जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने द्रमुक नेता के.अनबझगन की भवानी सिंह को हटाने की अपील पर 75 पृष्ठ का अपना फैसला सुनाया है। इसमें उन्होंने भवानी सिंह को कनार्टक हाईकोर्ट में पैरवी के लिए अधिकृत नहीं माना है।
हालांकि जस्टिस आर.बानुमती ने जस्टिस लोकुर से मतांतर रखते हुए कहा कि विशेष सरकारी वकील (एसपीपी) पूरी तरह से इस मामले की मौजूदा अदालत और साथ ही साथ कनार्टक हाईकोर्ट में पैरवी करने के लिए अधिकृत हैं।
जया मामला न्यायिक प्रणाली में देरी का ज्वलंत उदाहरण :
लेकिन जस्टिस मदन बी लोकुर का कहना है कि अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता का बेनामी संपत्ति का मामला किसी आपराधिक मामले को अंजाम तक पहुंचाने में देरी का क्लासिक मामला है। उन्होंने कहा कि केस पर फैसला देने में 15 साल की देरी बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और 'आपराधिक न्याय प्रणाली इसकी जिम्मेदार' है। उन्होंने कहा कि इसके लिए कोई बड़ा कदम उठाने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि 7 अप्रैल को सरकारी वकील भवानी सिंह को हटाने की अनबझगन की अपील पर अदालत ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए वकील की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। द्रमुक नेता का आरोप है कि विशेष सरकारी वकील भवानी आरोपी जयललिता के हाथों की कठपुतली हैं।