अपराध के वक्त नाबालिग होने के बावजूद काटी 19 साल जेल, सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई का दिया आदेश

जेल में बंद कैदियों की जांच करने और उनके अपराध के वक्त नाबालिग होने का पता लगाने का आदेश दिया था जिस पर इस दोषी की भी 2013 में मेडिकल जांच हुई जिसमें जांच के वक्त पांच जनवरी 2013 को उसकी उम्र 23 वर्ष बताई गई।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sat, 13 Aug 2022 08:21 PM (IST) Updated:Sat, 13 Aug 2022 08:21 PM (IST)
अपराध के वक्त नाबालिग होने के बावजूद काटी 19 साल जेल, सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल अंतरिम जमानत देते हुए निजी मुचलके पर रिहा करने का दिया आदेश

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अपराध के वक्त नाबालिग होने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म के एक दोषी को अंतरिम जमानत देते हुए निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत पर रिहाई का आदेश आने तक दोषी 18 साल 9 महीने जेल काट चुका था। यह आदेश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी व वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने दोषी की याचिका पर शुक्रवार को दिये।

उत्तर प्रदेश की आगरा सेंट्रल जेल में उम्रकैद काट रहे दोषी को 2003 में हुए अपराध के लिए निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दुष्कर्म और हत्या में फांसी की सजा सुनवाई गई थी। बाद में राष्ट्रपति ने दया याचिका पर विचार करते हुए फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी।

हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान जेल में बंद कैदियों की जांच करने और उनके अपराध के वक्त नाबालिग होने का पता लगाने का आदेश दिया था जिस पर इस दोषी की भी 2013 में मेडिकल जांच हुई जिसमें जांच के वक्त पांच जनवरी 2013 को उसकी उम्र 23 वर्ष बताई गई।

जुविनाइल जस्टिस बोर्ड ने फरवरी 2014 में उसकी मेडिकल जांच रिपोर्ट देखने और मामले को जांचने परखने के बाद उसे अपराध के वक्त नाबालिग होना घोषित किया था। जुविनाइल जस्टिस बोर्ड के आदेश को आठ साल बीतने के बाद भी जब दोषी को रिहाई नहीं मिली तो उसकी ओर से इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर अपराध के वक्त नाबालिग होने के आधार पर रिहाई मांगी गई है जिस पर कोर्ट ने शुक्रवार को अंतरिम जमानत का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान दोषी की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि जुविनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक किसी भी नाबालिग को तीन साल से ज्यादा कैद में नहीं रखा जा सकता। इस मामले में जुविनाइल जस्टिस बोर्ड ने दोषी को 2014 में घटना के वक्त जुविनाइल घोषित कर दिया था लेकिन तब से आजतक उसकी रिहाई नहीं हुई। वह अभी तक 18 साल 9 महीने जेल काट चुका है उसे तत्काल जमानत पर रिहाई दी जानी चाहिए।

दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने मामले को देखने और जांचने के लिए कोर्ट से कुछ समय दिये जाने का अनुरोध किया। कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया कि जुविनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के मुताबिक जुविनाइल को तीन साल से ज्यादा कैद में नहीं रखा जा सकता।

इस मामले में आगरा के जुविनाइल जस्टिस बोर्ड ने दोषी को पांच फरवरी 2014 को अपराध के वक्त जुविनाइल होना घोषित किया था। कोर्ट ने कहा कि दोषी 18 साल 9 महीने से जेल में है अब उसे जेल में रखने का कोई सवाल ही नहीं उठता। कोर्ट ने दोषी को तत्काल अंतरिम जमानत देते हुए निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता हर सप्ताह स्थानीय थाने में रिपोर्ट करेगा। कोर्ट ने मामले को आठ सप्ताह बाद फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया। उत्तर प्रदेश में आगरा के इस मामले में दोषी की ओर से ट्रायल के दौरान और यहां तक कि मामला सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रपति तक पहुंचने के समय, कभी भी नाबालिग होने का दावा नहीं किया था। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में भी दर्ज की है। दोषी ने बाद में अपराध के वक्त नाबालिग होने का दावा बाद में किया। 

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