जानिए क्यों किशोरावस्था में आते-आते अपराध की ओर मुड़ जाते हैं कुछ बच्चे

अवधेश शर्मा ने बताया कि नाबालिग अपराध में बढ़ोत्तरी के लिए किसी एक फैक्टर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Fri, 10 Nov 2017 05:56 PM (IST) Updated:Fri, 10 Nov 2017 06:47 PM (IST)
जानिए क्यों किशोरावस्था में आते-आते अपराध की ओर मुड़ जाते हैं कुछ बच्चे
जानिए क्यों किशोरावस्था में आते-आते अपराध की ओर मुड़ जाते हैं कुछ बच्चे

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। दिल्ली से सटे गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात साल के छात्र प्रद्युम्न की हत्या उसी स्कूल में पढ़ने वाले ग्यारहवीं क्लास के छात्र द्वारा किए जाने के खुलासे ने एक बार फिर से सभी को चौंकाकर रख दिया है। पूरा देश हैरान है कि ऐसे कैसे सिर्फ परीक्षा रद कराने के लिए ऐसी जघन्य वारदात को एक नाबालिग अंजाम दे सकता है। आइए बताते हैं आपको किस तरह किशोरावस्था में पहुंचे बच्चों की तरफ से किए जा रहे अपराधों में हो रहा है इजाफा और इसको कितनी बड़ी चिंता की वजह मानते हैं मनोचिकित्सक।

जघन्य वारदातों में शामिल नाबालिग

लेकिन, अगर आप सिर्फ हरियाणा के स्टेट रिकॉर्ड ब्यूरो की तरफ से जारी आंकड़ों को देखें तो साल 2016 में जितनी हत्याएं हुई हैं, उसमें से पांच फीसद वारदातों को नाबालिगों ने अंजाम दिया है। यानि हरियाणा में पिछले साल कुल 1057 हत्याएं हुई है, जिनमें 60 नाबालिगों की गिरफ्तारी हुई और 55 नाबालिगों को उसका जिम्मेदार माना गया।

इतना ही नहीं, ज्यादातर जुर्म करने वाले जो नाबालिग पकड़े गए हैं उनकी आयु 16-18 के बीच रही है। यानि, इस आयुवर्ग के 49 नाबालिग लड़के और एक नाबालिग लड़की पकड़ी गई। इसी तरह हरियाणा के अंदर मर्डर की कोशिश में 30 नाबालिग, बलात्कार में 64, गैंगरेप में 3, किडनैपिंग में 40, डकैती में 12 और लूट में 46 नाबालिग पकड़े गए।

10 साल में नाबालिगों के अपराध में 62 फीसद का इजाफा

नाबालिगों की तरफ से वारदातों को अंजाम देने के देशभर के आंकडों पर अगर गौर करें तो यह और भी चौंकानेवाले हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2005 से 2015 के बीच संज्ञेय अपराध में 62 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखने को मिली। यानि, 205 में संज्ञेय अपराध 18.2 लाख, 2006 में 18.8 लाख, 2007 में 19.9 लाख, 2008 में 20.9 लाख, 2009 में 21.1 लाख, 2010 में 22.2 लाख, 2011 में 23.2 लाख, 2012 में 23.9 लाख, 2013 में 26.4 लाख, 2014 में 28.5 लाख और 2015 में 29.5 लाख केस संज्ञेय अपराध के तहत दर्ज हुए थे।

बाल अपराध में अव्वल दिल्ली

देशभर में बाल अपराधों पर अगर नजर डालें तो इस सूची में दिल्ली सबसे आगे है। साल 2015 में दिल्ली में प्रति लाख आबादी में 14.6 नाबालिग पकड़े गए। जबकि, अरुणाचल प्रदेश दूसरे नंबर पर रहा जहां प्रतिलाख आबादी पर 12 नाबालिग, मध्यप्रदेश में 10.2 नाबालिग, छत्तीसगढ़ में 8.4, सिक्किम में 6.4, महाराष्ट्र में 6.2 और भारत में औसत रूप से प्रतिलाख आबादी पर 3.3 नाबालिग को अपराध के लिए कसूरवार ठहराया गया है।

क्यों बच्चे बन रहे अपराधी

दरअसल, इस सवाल के जवाब में दैनिक जागरण के खास बातचीत करते हुए मनोचिकित्सक अवधेश शर्मा ने बताया कि चूंकि आजकल नाबालिग समय से पहले ही वयस्क हो रहे हैं और उनकी मनोस्थिति बदल रही है। यही वजह है कि वो इस तरह से गंभीर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा नहीं है कि ऐसी प्रवृत्ति सिर्फ नाबालिग लड़कों में ही हो रही है, बल्कि लड़कियां भी समय से पहले जवान हो रही हैं और उनकी मैच्योरिटी की भावना समय से पहले आ रही है। लिहाजा, जिस वक्त वो एडोलसेन्ट स्टेज में रहते हैं जिसे आधा वयस्क और आधा नाबालिग कहा जाता है, उस वक्त इन चीजों की आशंकाएं काफी बढ़ जाती हैं।

क्यों 16 से 18 साल में बच्चे बनते हैं अपराधी

अवधेश शर्मा ने इसका जवाब देते हुए बताया कि चूंकि 16 से 18 साल के दौरान किए गए अपराध में जो सज़ा मिलनी चाहिए वैसी सज़ा नहीं मिलती है। इसलिए, वह इन चीजों से वाकिफ होते हैं कि संगीन अपराध के बाद भी बच निकलेंगे। इसके अलावा, उनका यह कहना है कि जो भी नाबालिग इस तरह के संगीन अपराधों को अंजाम देते हैं वह जरूर इससे पहले कुछ ऐसी वारदातों को पहले भी अंजाम दे चुके होते हैं। लेकिन, समाज हो या उसका अपना परिवार मामले को दबा देता है, जबकि होना ये चाहिए कि उनकी उसी समय सही तरीके से काउंसलिंग कराई जानी चाहिए और गलत रास्ते से सही दिशा में लाया जाना चाहिए।

सनसनीखेज चीजें भी हैं जिम्मेदार

अवधेश शर्मा ने बताया कि नाबालिग अपराध में बढ़ोत्तरी के लिए किसी एक फैक्टर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से टेलीवज़न चैनलों पर किसी घटना को सनसनीखेज बनाकर और उसका नाट्यरूपांतरण कर प्रस्तुत किया जाता है यह भी एक बड़ा कारण है। जबकि, विदेश में क्राइम आधारित घटना की बड़ी संक्षिप्त रिपोर्टिंग की जाती है।
 

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