पराली को जलाने से रोकने के लिए करनी होगी वैकल्पिक व्यवस्था

गेहूं के अवशेष जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल होता है। मगर धान के अवशेष को जानवर नहीं खाते जिसकी वजह से इसका कोई उपयोग नहीं हो पाता। लिहाजा इसे जलाना एक आसान तरीका है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 17 Nov 2017 10:49 AM (IST) Updated:Fri, 17 Nov 2017 01:15 PM (IST)
पराली को जलाने से रोकने के लिए करनी होगी वैकल्पिक व्यवस्था
पराली को जलाने से रोकने के लिए करनी होगी वैकल्पिक व्यवस्था

अमरनाथ त्रिपाठी

दिल्ली में जहरीली हवा और धूल कोहरा के साथ घुलकर धुंध बन चुकी है। यही धुंध साल-दर-साल मानवीय जीवन के लिए खतरनाक रूप अख्तियार करती जा रही है। मगर दिल्ली की इस जहरीली हवा के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो कि उचित नहीं है। कहा जा रहा है कि किसानों द्वारा धान के अवशेषों को जलाने की वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। कुछ हद तक यह सही है, लेकिन किसानों के पास इसे निपटाने के क्या उपाय हैं। कोई यह क्यों नहीं सोचता कि पुआल को जलाने वाले यही किसान गेहूं के अवशेषों को क्यों नहीं जलाते हैं?

इसका मुख्य कारण है कि गेहूं के अवशेष जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल होता है। लिहाजा किसान इसका कुछ हिस्सा अपने पशुओं के लिए रख लेते हैं और बाकी बेच देते हैं जिसकी किसानों को कीमत भी मिल जाती। मगर धान के अवशेष को जानवर नहीं खाते जिसकी वजह से इसका कोई उपयोग नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में किसानों को इसे खेत में ही जलाना एक आसान और किफायती तरीका लगता है। क्योंकि इन अवशेषों को खेतों से हटाने में लगने वाली लागत की भरपाई इन किसानों के लिए आसान नहीं है।

साथ ही साथ किसानों को तुरंत गेहूं की फसल लगाने के लिए खेतों को तैयार करना पड़ता है जिसकी वजह से अवशेषों को खेतों में सड़ने का पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाता है। पहले जब गांव में घर कच्चे हुआ करते थे तो पुआल का उपयोग छप्पर बनाने आदि में भी होता था जिससे उस समय इसको जलाने की प्रथा न के सामान थी, लेकिन अब यह उपयोगी नहीं रह गया। अब पंजाब और हरियाणा के गांवों में भी अमूमन घर पक्के हुआ करते हैं। किसानों को यदि हम पुआल जलाने से रोकना चाहते हैं तो उन्हें कुछ वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया कराना होगा। यदि पुआल का उपयोग कोई उत्पाद तैयार करने में हो सकता है तो इससे किसानों को न केवल पराली जलाने से रोका जा सकता है बल्कि उन्हें इसके बदले में कुछ आमदनी भी होगी। यही नहीं, गांव में रोजगार के अवसरों का सृजन भी होगा।

इस प्रकार किसानों की आय 2022 तक दुगनी करने के सरकार के लक्ष्य को भी लाभ मिलेगा। पुआल को विभिन्न तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है। मसलन पुआल का उपयोग जैविक ऊर्जा बनाने में किया जा सकता है। दूसरा, पुआल से बॉयोचार बनाया जा सकता है जिसका उपयोग वातावरण से कॉर्बनडाई ऑक्साइड को हटाने में लाया जा सकता है। इससे हम जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी सहयोग कर सकते हैं। तीन, पुआल का उपयोग मशरूम की खेती में भी किया जा सकता है। मशरूम एक कीमती कृषि उत्पाद है जिसे बढ़ावा देने से किसानों को और अधिक लाभ मिल सकेगा। चौथा, जानवर पुआल नहीं खाते क्योंकि इसे पचाने में कठिनाई होती है। मगर इसे संशोधित करके जानवरों के खाने के लिए कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं।

उपरोक्त उपायों को अपना कर दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदुषण को रोका जा सकता है और किसानों को दोषमुक्त कराया जा सकता है। मगर इसके लिए दोनों राज्य और केंद्र सरकारों को आगे आना पड़ेगा। साथ ही उन्हें किसानों और उपभोक्ताओं के बीच में एक सेतु का काम करना होगा। जिसके लिए दोनों सरकारों को जरूरी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करना होगा और किसानों को जागरूक बनाना होगा। दूसरे, हर स्तर पर औद्योगिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव को दबाने की कोशिश दिखती है। अगर बरीकी से देखा जाए तो किसानों को दोषी बताने के चक्कर में पूंजीवादी व्यवस्था से उपजे प्रदूषण को नजरअंदाज करने की कोशिश की जा रही है। जैसे गंगा में प्रदूषण के लिए फूल माला को ज्यादा जिम्मेदार बता दिया जाता है, उसी तर्ज पर किसानों को निशाने पर लिया जा रहा है। यह उचित नहीं है। समाधान के लिए किसानों को विकल्प मुहैया कराना होगा।

(लेखक नई दिल्ली स्थित आर्थिक विकास संस्थान में सहायक प्राध्यापक हैं) 

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