एनडीए के साथ जाने के बाद भी जारी है नीतीश का अल्‍पसंख्‍यक एजेंडा

एनडीए के साथ जाने के बाद भी नीतीश ने अपना अल्‍पसंख्‍यक एजेंडा जारी रखा है। इसका फायदा भविष्‍य में होगा या नहीं फिलहाल यह कहना थोड़ा मुश्किल है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 06 Aug 2017 12:19 PM (IST) Updated:Mon, 07 Aug 2017 07:28 PM (IST)
एनडीए के साथ जाने के बाद भी जारी है नीतीश का अल्‍पसंख्‍यक एजेंडा
एनडीए के साथ जाने के बाद भी जारी है नीतीश का अल्‍पसंख्‍यक एजेंडा

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार ने जिस एनडीए का हाथ थामा है उसको लेकर अब यह सवाल उठ रहा है कि इसका आने वाले दिनों में क्‍या असर देखने को मिलेगा। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि जिस एनडीए का साथ उन्‍होंने पीएम मोदी के चलते छोड़ दिया था अब एक बार फिर वह उसके साथ आ गए हैं। एनडीए के साथ आने के बाद नीतीश कुमार पर सांप्रदायिक शक्तियों के साथ मिलने का आरोप भी लग रहा है। आशंका जतायी गई थी कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए योजनाओं को लागू करने पर अब उनका कोई वश नहीं चलेगा। लेकिन दूसरी तरफ भाजपा के साथ आने के बावजूद सीएम नीतीश मुस्लिमों के कल्याण की योजनाओं पर खास जोर दे रहे है।

नीतीश पर उठते सवालों के बीच राजनीतिक जानकार प्रदीप सिंह का कहना है कि फिलहाल इस बारे में कहपाना मुश्किल है कि नीतीश के एनडीए के साथ्‍ा जाने से क्‍या फर्क पड़ेगा। उनके मुताबिक यदि नीतीश पहले की ही तरह अपना काम करते रहेंगे तो अल्‍पसंख्‍यक समुदाय उनके साथ जुड़े रहेंगे यदि ऐसा नहीं होता है तो वह अलग भी जा सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि नीतीश के लिए यह पहला मौका नहीं है जब वह एनडीए के साथ आए हैं। इससे पहले भी वह करीब 17 वर्ष तक उनके साथ मिलकर सफल तरीके से सरकार चला चुके हैं। लेकिन फर्क सिर्फ इतना

ही है कि अब वह मोदी के साथ हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि जब वर्ष 2010 में लालू यादव ने बिहार के भागलपुर में अल्‍पसंख्‍यक समुदाय की एक बड़ी रैली बुलाई थी उस वक्‍त उन्‍होंने कहा था कि नीतीश को हमारा साथ देना चाहिए जबकि वह भाजपा के साथ जा रहे हैं। उस वक्‍त वहां आए लोगों और कहना था कि भाजपा के साथ रहते हुए भी नीतीश ने उनके लिए काफी काम किया है, लिहाजा उन्‍हें उनके साथ जाने में कोई गुरेज नहीं है। ऐसा ही इस वक्‍त भी है। यदि नीतीश अपना काम पहले की ही तरह जारी रखेंगे तो इसका फायदा उन्‍हें जरूर मिलेगा अन्‍यथा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

बहरहाल, इन सवालों के बीच यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि नीतीश कुमार के काम करने के अंदाज में न तो पहले कोई बदलाव आया था और न ही अब आया है। इसका एक उदाहरण दो दिन पहले भी देखने को मिला था जब बिहार के भोजपुर जिले में कुछ लोगों ने प्रतिबंधित मांस ले जाने के आरोप में एक ट्रक ड्राइवर और उसके दो साथियों के साथ मारपीट की थी। सीएम नीतीश कुमार ने खास तौर पर घटना पर नाराजगी जाहिर की थी। 

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इतना ही नहीं कल उन्‍होंने कई विभागों के कामकाज की समीक्षा की और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए और नई स्कीम लाने की बात कही। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की समीक्षा बैठक में यह तय हुआ कि सरकार मान्यता प्राप्त मदरसों में आधारभूत संरचना जैसे क्लासरूम, पेयजल व्यवस्था, पुस्तकालय और शौचालय निर्माण के लिए भी राशि उपलब्ध कराएगी।

मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना अन्तर्गत राशि अब सरकारी विद्यालयों के अतिरिक्त मदरसों से 10 वीं एवं 12वीं कक्षा के समकक्ष परीक्षाओं में उतीर्ण होने वाले परीक्षार्थियों को भी दी जाएगी। इसके अलावा जिले के प्रत्येक वक्फ बोर्ड पर सरकार एक बिल्डिंग बनाकर उनके कार्यालय, कम्युनिटी हॉल और छात्रों के लिए लाइब्रेरी की सुविधा देगी। इसके अलावा मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक परित्यक्ता महिला आर्थिक सहायता योजना की राशि को 10000 से बढ़ाकर 25000 रुपये कर दिया है।

समझा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने ये सभी घोषणाएं यह जताने के लिए की हैं कि भाजपा में शामिल होने के बाद भी उनकी पार्टी की विचारधारा नहीं बदली है। भाजपा की सरकार बनने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जायेगा। नीतीश कुमार ने जब 2005 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी थी, उस समय वे लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण को ध्वस्त करते हुए मुसलमानों को अपनी तरफ लाने में कामयाब रहे थे।

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