इतिहास रचने का गंवा दिया सुनहरा मौका, नहीं दिखाई दे रही है उम्मीद की किरण

पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार के पास आर्थिक मोर्चे पर काफी कुछ करने का मौका था।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Publish:Mon, 15 Jan 2018 10:20 AM (IST) Updated:Mon, 15 Jan 2018 11:02 AM (IST)
इतिहास रचने का गंवा दिया सुनहरा मौका, नहीं दिखाई दे रही है उम्मीद की किरण
इतिहास रचने का गंवा दिया सुनहरा मौका, नहीं दिखाई दे रही है उम्मीद की किरण

नई दिल्ली, [कपिल अग्रवाल]। देश की अर्थव्यवस्था अब भी सुस्त चाल से चल रही है। जो काम अच्छे माहौल और अनुकूल परिस्थितियों में अपने साढ़े तीन साल के दौरान केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार नहीं कर पाई, वह अब अपने शेष बचे पंद्रह महीने में कैसे कर पाएगी, यह समझना मुश्किल है। इन पंद्रह महीनों में केंद्र सरकार को लगभग 10 विधानसभा चुनावों से भी गुजरना है।

बेमजा रही साल की शुरुआत

दरअसल अर्थव्यवस्था के लिहाज से साल की शुरुआत बेमजा रही है। खराब हालातों पर पहले वित्त मंत्री की निराशाजनक स्वीकारोक्ति और उसके बाद केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय(सीएसओ) के कमजोर अनुमान वाले आंकड़ों के साथ ही बेवजह बढ़ती महंगाई ने स्पष्ट कर दिया है कि अपने अब तक के कार्यकाल में मिले स्वर्णिम मौकों व अवसरों को भुनाने में यह सरकार पूर्णत: विफल रही है। कच्चे तेल की बेहद कम कीमतें व लगातार दो बढ़िया मानसून के अलावा अच्छी अंतरराष्ट्रीय छवि व बेहद मजबूत राजनैतिक हैसियत का कुछ भी फायदा देश की अर्थव्यवस्था को नहीं मिला। नोटबंदी ने जहां नकारात्मक परिणाम दिए वहीं जीएसटी ने भी अर्थव्यवस्था का पहिया जाम कर दिया। देश का अस्सी फीसद औद्योगिक ढांचा असंगठित व फुटकर रूप में है। इसलिए जीएसटी लागू करना अव्यवहारिक कदम था।

मोदी सरकार की उधारी

वित्त वर्ष 2017-18 के दरम्यान मोदी सरकार पचास हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी ले चुकी है और अनुमान लगाया गया है कि अब रिजर्व बैंक से कई अरब की धनराशि भी आकस्मिक तौर पर ली जा सकती है। ऐसा सरकार को कम वसूली व घटते राजस्व के कारण राजकोषीय घाटे में हो रही वृद्धि के चलते करना पड़ रहा है। इससे पहले के दो वर्षो का घाटा कच्चे तेल की घटी कीमतों व उन पर आम जनता से भारी भरकम कर वसूली से पाटा गया था। आर्थिक विकास दर जीडीपी घटेगी व राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। अनुमानों में इसके प्रमुख जिम्मेदार कारकों में स्पष्ट रूप से नोट बंदी व जीएसटी का नाम लिया गया है। सरकारी व्यय नवंबर में ही बजट अनुमान को लांघ गया था और चालू वित्त वर्ष में अभी तक किसी भी क्षेत्र में दो अंकों की वृद्धि नहीं दर्ज की गई है। पिछले साल भी नब्बे फीसद क्षेत्रों की वृद्धि एक अंक में दर्ज की गई थी।

ऐसा तब है जब वैश्विक माहौल बिल्कुल ठीक ठाक है, सरकार ने आम जनता की जेब से पैसा निकालने के लिए जमाओं पर प्रतिफल बेहद कम कर दिया है, औद्योगिक क्षेत्रों बाबत कर्जे सस्ते कर दिए हैं और सार्वजनिक व्यय बढ़ाया है। पर इन सबसे न तो उत्पादन बढ़ा, न मांग बढ़ी और न ही रोजगार सृजित हुए। और तो और सरकार को कोई अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति भी नहीं हुई। दरअसल अर्थव्यवस्था में फर्क बुनियादी ढांचे सड़क, बिजली, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम व उचित वैश्विक अधिनियमों के लागू होने आदि से पड़ता है क्योंकि तब विदेशी निवेशक वास्तव में निवेश करते हैं।

अनुकूल हालात का फायदा नहीं उठा पाई मोदी सरकार

कुछ गिनती की सरकारी सेवाओं को छोड़ दें तो इस समय फिलहाल कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिससे कुछ उम्मीद की किरण दिखायी पड़ जाए। सच्चाई तो यह है कि जितने अनुकूल हालात व मौके मोदी सरकार को मिले हैं उसके चौथाई भी केंद्र की गठबंधन वाली तत्कालीन मनमोहन सरकार को मयस्सर नहीं हुए थे पर मोदी सरकार वक्त व हालातों का फायदा उठाने में नाकामयाब रही है। चालू वर्ष की दूसरी तिमाही यानी सितंबर 2017 के दौरान 1050 कंपनियों व उनके संबंधित उद्योगों में चिंताजनक परिणाम दर्ज किए गए हैं। यहां तक की फार्मा, आइटी व एफएमसीजी जैसे सदाबहार मुनाफे वाले दिग्गज सेक्टर भी धराशायी पड़े हैं। सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय रेटिंग संस्थायें अपने आकलन में उनके मनोनुकूल परिवर्तन करने को राजी नहीं हैं जो इस बात का द्योतक है कि अर्थव्यवस्था के उचित प्रबंधन में यह सरकार असफल रही है।

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