देश के ज्यादातर इलाके पानी-पानी, जानें- बाढ़ को लेकर क्यों है ऐसी बेबसी

बारिश के सीजन में देश के ज्यादातर हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। सरकारों की तरफ से राहत कार्य चलाए जाते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ये सब कब तक।

By Lalit RaiEdited By: Publish:Tue, 15 Aug 2017 01:10 PM (IST) Updated:Tue, 15 Aug 2017 03:08 PM (IST)
देश के ज्यादातर इलाके पानी-पानी, जानें- बाढ़ को लेकर क्यों है ऐसी बेबसी
देश के ज्यादातर इलाके पानी-पानी, जानें- बाढ़ को लेकर क्यों है ऐसी बेबसी

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। मानसूनी बारिश, भारतीय कृषि की जीवनरेखा है। किसान जहां एक तरफ घने बादलों का इंतजार करते हैं, वहीं सरकार की उम्मीदें भी बेहतर मानसून पर टिकी होती हैं। लेकिन मानसूनी बारिश का एक दूसरा पक्ष भी है। जुलाई से लेकर सितंबर तक देश का करीब करीब हर कोना बाढ़ की समस्या का सामना करता है। हालांकि इसके पीछे सिर्फ बारिश ही नहीं जिम्मेदार है। उदाहरण के तौर पर यूपी, बिहार के नेपाल सीमा से सटे इलाकों को देखें तो वहां पर बाढ़ के लिए मानसूनी बारिश से ज्यादा कहीं नेपाल द्वारा छोड़ा गया पानी जिम्मेदार होता है। सरकारें हर वर्ष बाढ़ की चुनौती का सामना करने के वादे और दावे करती हैं, लेकिन हकीकत ये है कि बाढ़ की चुनौती अगली बारिश के साथ दस्तक देने लगती है। ऐसे में सवाल ये है कि भारत में इन दो से तीन महीनों में जल प्रलय के पीछे क्या सिर्फ मानसूनी बारिश ही जिम्मेदार है या सरकारी व्यवस्थाएं नाकाफी हैं। लेकिन बाढ़ की वजहों पर विचार करने से पहले उन इलाकों पर नजर डालने की जरूरत है, जहां बाढ़ की वजह से आम जनजीवन प्रभावित है। 

बाढ़ से बिहार बेहाल

नेपाल की बारिश ने कोसी-सीमांचल व उत्तर बिहार को तबाह कर दिया। बाढ़ से अब तक 50 लोगों से अधिक की मौत हो चुकी है। नदियों में उफान से 12 जिलों में हालात बेकाबू हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को राज्य के बाढ़ प्रभावित जिलों का हवाई सर्वेक्षण किया। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से बाढ़ की स्थिति पर बात की और केंद्र से हरसंभव मदद का भरोसा दिया।

बिहार में बागमती, कमला व मरहा नदी के तटबंध टूट गए हैं। पूर्णिया का पश्चिम बंगाल और किशनगंज से संपर्क भंग हो गया है। बगहा, रक्सौल एवं शिवहर शहर में पानी घुस गया है। किशनगंज जिला टापू में तब्दील हो गया है। अररिया का भी नेपाल के साथ सड़क और रेल संपर्क टूट चुका है। आपदा प्रबंधन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 81 प्रखंडों की 65 लाख आबादी प्रभावित है। एनडीआरएफ के 690 और एसडीआरएफ 421 जवान दिन-रात बचाव कार्य में जुटे हैं। दो हेलीकॉप्टर एवं 192 नावों के जरिए फंसे लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा रहा है। नीतीश कुमार ने केंद्र की मदद के लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री का आभार जताते हुए कहा कि उन्होंने जो भी मांग की वह तुरंत मिल गया। स्थिति को भयावह देखकर सेना के तीन सौ जवान और बिहार भेजे गए हैं।

जानकार की राय

Jagran.Com से खास बातचीत में आपदा मामलों के जानकार रोहित कौशिक ने बताया कि 1950 में हमारे यहां लगभग ढाई करोड़ हेक्टेयर भूमि ऐसी थी, जहां पर बाढ़ आती थी, लेकिन अब लगभग सात करोड़ हेक्टेयर भूमि ऐसी है, जिस पर बाढ़ आती है। इसकी निकासी का कोई समुचित तरीका भी नहीं है। हमारे देश में केवल चार महीनों के भीतर ही लगभग अस्सी फीसद पानी गिरता है। उसका वितरण इतना असमान है कि कुछ इलाके बाढ़ और बाकी इलाके सूखा झेलने को अभिशप्त हैं। इस तरह की भौगोलिक असमानताएं हमें बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हैं। पानी का सवाल हमारे देश की जैविक आवश्यकता से भी जुड़ा है।

बादल फटने से सेना का ट्रांजिट कैंप प्रभावित

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला स्थित दुंगदुंग व मालपा में सोमवार तड़के बादल फटे। इससे उफनाए नालों ने 18 किलोमीटर के दायरे में जबरदस्त तबाही मचाई। मालपा में तीन होटल, चार दुकानें बहने के साथ घटियाबगड़ में सेना का ट्रांजिट कैंप तबाह हो गया। इस दौरान 17 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 25 से ज्यादा लापता हैं। मृतकों में सेना का एक जेसीओ भी शामिल हैं, जबकि दो जेसीओ और पांच जवान लापता बताए जा रहे हैं। ट्रांजिट कैंप के पास खड़े सेना के तीन ट्रक सामान सहित बह गए। सड़क व पुल बह जाने से प्रशासन व राहत टीमें रास्ते में ही फंसी हैं। वहीं फिलहाल कैलाश मानसरोवर यात्रा रोक दी गई है।

स्थानीय लोगों के साथ सेना, आइटीबीपी व एसएसबी के जवान राहत एवं बचाव कार्य में जुटे हैं। पिथौरागढ़ के प्रभारी जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि फिलहाल मृतक और लापता लोगों की संख्या के बारे में ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। उन्होंने बताया कि कैलास मानसरोवर यात्रा दल के सभी यात्री सुरक्षित हैं और उन्हें अगले आदेश तक विभिन्न पड़ावों पर रोक दिया गया है। संचार व्यवस्था ध्वस्त है। दुर्गम क्षेत्र होने के कारण प्रशासन के लिए सूचनाएं जुटाना चुनौती बना हुआ है।

 

दरअसल समुद्र तल से करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलास-मानसरोवर यात्रा मार्ग का अहम पड़ाव मालपा पिथौरागढ़ से 140 किलोमीटर दूर है। धारचूला से 45 किलोमीटर दूर मालपा तक पहुंचने के लिए घटियाबगड़ तक सड़क है और इसके बाद नौ किमी पैदल चलना होता है। घटना सोमवार तड़के 2.45 बजे की है। दुंगदुंग और मालपा में भी बादल फटने से ननगाड़ और ठुलगाड़ व मालपा नाले उफान पर आ गए। इन नालों के प्रवाह से सिमखोला नदी विकराल हो गई और मालपा व घटियाबगड़ में जमकर तांडव मचाया। घटियाबगड़ में आर्मी ट्रांजिट कैंप सो रहे जवानों में से कुछ ने पहाड़ी पर चढ़कर जान बचाई। इस दौरान सेना के तीन ट्रकों सहित आधा दर्जन अन्य वाहन बह गए। चीन सीमा से सटा संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण सेना कैंप में मौजूद लोगों की संख्या बताने से परहेज कर रही है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पिथौरागढ़ की धारचूला घाटी व मदकोट के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में राहत बल तैनात हैं। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सबसे अधिक समस्या दूरसंचार संपर्क की आ रही है। नेपाल सीमा से लगा होने के कारण क्षेत्र में नेपाल की मोबाइल फ्रीक्वेंसी आती है। केंद्र से अनुरोध किया जा रहा है कि वह नेपाल से बात कर इस क्षेत्र में फ्रीक्वेंसी बढ़ाए, ताकि यहां दूरसंचार की व्यवस्था दुरुस्त हो सके।

उन्होंने कहा कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के अंतिम दल को सड़कों की स्थिति देखने के बाद ही मंजूरी दी जाएगी। सोमवार को पिथौरागढ़ जिले में आपदा प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर लौटे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्होंने धारचूला घाटी व बरम तक हवाई सर्वेक्षण किया। मौसम खराब होने के कारण वे आगे नहीं जा सके।

उप्र में हालात बेकाबू

उत्तर प्रदेश में खासकर तराई क्षेत्र में सैकड़ों गांव बाढ़ की चपेट में हैं। हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। चार लोग बाढ़ के पानी में बह गए, जिसमें से दो की मौत हो गई। आकाशीय बिजली से एक व्यक्ति की मौत हो गई। बहराइच में रेल ट्रैक पर पानी भर जाने से मिहींपुरवा से मैलानी जाने वाली छह ट्रेनें निरस्त कर दी गई हैं। नेपाल के डैम से रविवार को घाघरा में चार लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने की सूचना है।

असम और पश्चिम बंगाल में बाढ़ की स्थिति भयावह है। ऊपरी असम के इलाकों में ब्रह्मपुत्र कहर बरपा रही है। वहीं पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में बाढ़ की वजह से जनजीवन बेपटरी है। 

 

बाढ़ प्रभावित राज्यों को मदद

देशभर के कर अधिकारी बाढ़ प्रभावित राज्यों के लिए अपने एक दिन का वेतन दान करेंगे। कर अधिकारियों के संगठन ने सोमवार को बताया कि यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा की जाएगी। देशभर में करीब 3,000 भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) के अधिकारी हैं। भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद) एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने ब्रह्मपुत्र नदी के कारण हाल ही में देश के पूर्वोत्तर राज्यों में आई प्राकृतिक आपदा पर विचार-विमर्श किया था। देश के कई हिस्सों में भी फसल बर्बाद हो गई है। उत्तरी बिहार में भी स्थिति खतरनाक है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप श्रीवास्तव ने बताया, ‘एसोसिएशन के क्षेत्रीय खंडों व अन्य सेवाओं को भी योगदान देने को कहा गया है।

नदियों को जोड़ने की योजना

बाढ़ की समस्या से जूझने के लिए कुछ समय पहले नदियों को आपस में जोड़ने की योजना अस्तित्व में आई थी, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ सकी। पर्यावरणीय कारणों से कुछ पर्यावरणविदों ने भी इस परियोजना पर अपनी आपत्ति जताई थी। हालांकि चीन में नदियों को जोड़ने की परियोजना पर कार्य चल रहा है। मगर चीन की इस योजना से भारत और बांग्लादेश जैसे देश प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए भारत और बांग्लादेश को नदियों को जोड़ने वाली चीन की इस परियोजना पर एतराज है।

बहरहाल, नदियों को जोड़ने की परियोजना पर अभी बहस की गुंजाइश है। हालांकि देश में सूखे और बाढ़ से पीड़ित लोगों के लिए अनेक घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन मात्र घोषणाओं के सहारे ही पीड़ितो का दर्द कम नहीं होता है। सुनिश्चित करना होगा कि इन घोषणाओं का लाभ वास्तव में पीड़ितों तक भी पहुंचे।

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