केरल मछुआरों की हत्‍या : इटली के नौसैनिकों के मामले में भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण

इस विवाद के संबंध में इटली के अनुरोध पर 26 जून 2015 को यूएनसीएलओएस की धाराओं के तहत न्यायाधिकरण का गठन किया गया था।

By Tilak RajEdited By: Publish:Thu, 02 Jul 2020 09:31 PM (IST) Updated:Thu, 02 Jul 2020 09:31 PM (IST)
केरल मछुआरों की हत्‍या : इटली के नौसैनिकों के मामले में भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण
केरल मछुआरों की हत्‍या : इटली के नौसैनिकों के मामले में भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण

नई दिल्ली, प्रेट्र। वर्ष 2012 में इटली के दो नौसैनिकों मस्सी मिलियानो लटोरे और साल्वाटोरे गिरोने के दो भारतीय मछुआरों की गोली मारकर हत्या के मामले को देख रहे एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने इस घटना पर भारत की कार्रवाई को सही ठहराया है। साथ ही इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल का कहना है कि इटली के नौसैनिकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भारत के पास वैध कानूनी आधार है। इसी के साथ इन नौसैनिकों को भारत में हिरासत में रखने के लिए मुआवजे के इटली के दावे को खारिज कर दिया।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गुरुवार को बताया कि न्यायाधिकरण ने यूएनसीएलओस (समुद्र संबंधी कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि) के प्रावधानों के तहत भारतीय अधिकारियों के आचरण को सही पाया है। भारत ने 15 फरवरी 2012 को केरल तट के पास दो भारतीय मछुआरों की गोली मारकर हत्या करने के मामले में इटली के तेल टैंकर एमवी एनरिका लेक्सी पर सवार दो इतालवी नौसैनिकों पर आरोप लगाया था।

इस विवाद के संबंध में इटली के अनुरोध पर 26 जून, 2015 को यूएनसीएलओएस की धाराओं के तहत न्यायाधिकरण का गठन किया गया था। अब न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि इतालवी सैन्य अधिकारियों की हरकत से इटली ने यूएनसीएलओएस की विभिन्न धाराओं के तहत भारत की नौवहन स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ नेविगेशन) का उल्लंघन किया है।

श्रीवास्तव ने ऑनलाइन मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'न्यायाधिकरण ने पाया कि इस घटना पर भारत और इटली के बीच समवर्ती अधिकार क्षेत्र हैं और नौसैनिकों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के लिए वैध कानूनी आधार हैं।' उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण ने नौसैनिकों को हिरासत में रखने के लिए मुआवजे के इटली के दावे को खारिज कर दिया। हालांकि, यह पाया कि सरकारी अधिकारियों की तरह नौसैनिकों को मिली छूट भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र के लिए अपवाद है और इसलिए उन्हें नौसैनिकों के खिलाफ फैसला करने से रोक दिया।

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