अंतरराष्ट्रीय रंगहीनता दिवस 2019: जानें क्यों मनाया जाता हैं ये दिन और क्‍या है इसके खतरे

यह एक प्रकार की बीमारी है जिसमे त्वचा पर पिगमेंट की कमी हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो इंसान जानवर और पेड़ - पौधे किसी को भी हो सकती है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Wed, 12 Jun 2019 03:54 PM (IST) Updated:Thu, 13 Jun 2019 08:40 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय रंगहीनता दिवस 2019: जानें क्यों मनाया जाता हैं ये दिन और क्‍या है इसके खतरे
अंतरराष्ट्रीय रंगहीनता दिवस 2019: जानें क्यों मनाया जाता हैं ये दिन और क्‍या है इसके खतरे

नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल]। धरती के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के रंगों के लोग पाए जाते हैं, इनमें से कुछ प्राकृतिक रूप से काले या सफेद होते हैं तो कुछ कुछ चीजों की कमी के कारण ऐसे हो जाते हैं। जो शरीर में कुछ तत्वों की कमी की वजह से बेढ़गें रंगों के हो जाते हैं उनके लिए आज 13 जून को रंगहीनता दिवस मनाया जाता है। 

क्या है रंगहीनता (ऐल्बिनिज़म)
लैटिन ऐल्बस, "सफ़ेद" से इसकी उत्पत्ति हुई है। इसे ऐक्रोमिया, ऐक्रोमेसिया, या ऐक्रोमेटोसिस (वर्णांधता या अवर्णता) भी कहा जाता है) मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव या दोष की वजह से त्वचा, बाल और आँखों में रंजक या रंग के सम्पूर्ण या आंशिक अभाव द्वारा चिह्नित किया जाने वाला एक जन्मजात विकार है। ऐल्बिनिज़म, वंशानुगत तरीके से रिसेसिव जीन एलील्स को प्राप्त करने के परिणामस्वरूप होता है और यह मानव सहित सभी रीढ़धारियों को प्रभावित करता है। ऐल्बिनिज़म से प्रभावित जीवधारियों के लिए सबसे आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द "रजकहीन जीव (एल्बिनो) " है। ऐल्बिनिज़म कई दृष्टि दोषों के साथ जुड़ा हुआ है, जैसे फोटोफोबिया (प्रकाश की असहनीयता), और ऐस्टिगमैटिज्म (साफ दिखाई न देना) त्वचा रंजकता के अभाव में जीवधारियों में धूप से झुलसने और त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।

ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों में अकेलापन एक आम स्थिति है। अक्सर ऐसे लोगों के साथ समाज में ख़राब व्यवहार किया जाता है जिन्हें आमतौर पर ऐल्बिनिज़म के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। लेकिन ऐल्बिनिज़म वाले लोग अपनी ज़िंदगी में काफी कामयाब होते हैं। ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध लोगों में शामिल हैं, गौरव जैन (इंडियन आइडल फाइनलिस्ट) और प्रशांत नाइक जिन्हें बैंकिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2013 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा रोल मॉडल ऑफ द ईयर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी त्वचा और आपके बालों को रंग कहां से मिलता है? मेलेनिन नामक एक पिगमेंट, जिसका प्राथमिक कार्य सनस्क्रीन की तरह हानिकारक यूवी विकिरण से आपकी त्वचा की रक्षा करना है। लेकिन कुछ व्यक्तियों में, यह महत्वपूर्ण मेलेनिन बहुत कम होता है और यह एक जेनेटिक स्थिति का कारण बनता है जिसे ऐल्बनिज़म कहा जाता है। हर साल 13 जून को, दुनिया में ऐल्बिनिज़म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। जिसका मकसद इस समस्या पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने और इसके प्रति लोगों को जागरुक करना होता है। 

क्या आप ने अल्बिनो शब्द के बारे में सुना है?

यह एक प्रकर की बीमारी है जिसमे त्वचा पर पिगमेंट की कमी हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो इंसान, जानवर और पेड़ - पौधे किसी को भी हो सकती है। अल्बिनो की वजह से त्वचा का रंग हल्का हो जाता है।

किस वजह से होता है अल्बिनो?

अल्बिनो को समझने से पहले आपको मेलेनिन के बारे में समझना पड़ेगा। मेलेनिन एक प्रकार का पदार्थ है जो हमारे शरीर में पाया जाता है। मेलेनिन की कितनी मात्रा हमारे त्वचा में मौजूद है। इसी आधार पर हमरी त्वचा के रंग का निर्धारण होता है। जब बच्चे का शरीर उचित मात्रा में मेलेनिन का निर्माण नहीं कर पता है तब बच्चे के बाल और आँखों का रंग हल्का हो जाता है। कभी-कभी इस बीमारी में बच्चे का पूरा शरीर प्रभावित होता है जबकि कुछ मामलों में केवल बच्चे की आंखे ही प्रभावित होती हैं। अल्बिनो से प्रभावित बच्चों की आंखे दिखने में भूरी दिखती हैं। कभी-कभी आखें गुलाबी या लाल भी दिख सकती हैं। क्यूंकि आंखों की आईरिश का रंग ही गुलाबी या लाल है। यदि किसी के बच्चे को अल्बिनो की समस्या है तो उनको कुछ सावधानियां बरतनी पड़ेगी। शरीर में मौजूद मेलेनिन त्वचा को धुप से बचता है। धुप से बचाने के लिए ही जब आप धुप में बाहर निकलते हैं तो आप का रंग दब जाता है। इसका मतलब आप के शरीर में मौजूद मेलेनिन सुचारु रूप से काम कर रहा है। मेलेनिन के आभाव में - यानि - अल्बिनो से प्रभावित बच्चों को धुप से बचा के रखने की आवश्यकता है। इस बीमारी से प्रभावित बच्चों को खास ख्याल रखने की आवश्यकता है। यदि वो अधिक देर तक धूप में खेलते हैं तो उनको समस्या हो जाती है। 

जानिए क्या-क्या कारण है इसके-

- जब माता और पिता दोनों के शरीर में ऐल्बिनिज़मजीन होते हैं तो उनसे पैदा होने वाले बच्चे को रंगहीनता या ऐल्बिनिज़म होने की संभावना होती है। ऐसी संभावना 4 में से 1 मामले में देखी जाती है। ऐल्बिनिज़म एक दुर्लभ स्थिति है। अनुमान है कि 17000 लोगों में से एक को ऐल्बिनिज़म हो सकता है। भारत में वर्तमान में ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों की संख्या लगभग 1,00,000 है।

- ऐल्बिनिज़म तब होता है जब मानव शरीर भोजन को मेलेनिन में परिवर्तित करने में विफल रहता है। यह एक आनुवंशिक स्थिति है। भारत में लोग आमतौर पर सोचते हैं कि यह तब होता है जब मछली और दूध एक साथ खाए जाते हैं। यह एक ग़लतफ़हमी है।

- न्यिस्टागमस एक ऐसी स्थिति है जो ऐल्बिनिज़म से जुड़ी हुई है। इसमें आंखें तेज़ी से बाएं से दाहिनी ओर घूमती हैं जो आपकी दृष्टि को प्रभावित करती है। मेलेनिन की कमी से सूर्य की किरणें आंखों पर ज़्यादा प्रभाव डालती हैं और आपकी नज़र धुंधली हो जाती है।

- पिगमेंट मेलेनिन के आधार पर लगभग 10 से अधिक विभिन्न प्रकार के ऐल्बिनिज़म के मामले देखे जा सकते हैं।

- ऐल्बिनिज़म एक ऐसी स्थिति है जो केवल मनुष्यों में नहीं, बल्कि जानवरों और पौधों में भी देखी जाती है।

- प्राचीन भारतीय ग्रंथों में ऐल्बिनिज़म का पहला संदर्भ, इंद्र के पांच मुख वाले सफेद हाथी 'ऐरावत' के रुप में मिलता है।

- केन्या और तंज़ानिया में, ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों पर उनके शरीर के अंगों की वजह से हमला किया जाता है और उन्हें खराब भी कर दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनके रक्त, त्वचा और बालों की मदद से एचआईवी का इलाज किया जा सकता है।

ऐल्बिनिज़म के ज्यादातर रूप किसी व्यक्ति के दोनों माता-पिता से होकर गुजरने वाले आनुवंशिक रिसेसिव एलील्स (जींस) के जैविक विरासत का परिणाम है। कुछ दुर्लभ रूप केवल एक माता या पिता से विरासत में प्राप्त होता है। कुछ अन्य आनुवंशिक हैं जिनके ऐल्बिनिज़म से संबंधित होने की बात साबित हुई है। हालांकि सभी परिवर्तनों के फलस्वरूप शरीर में मेलेनिन के निर्माण में बदलाव आता है। ऐल्बिनिज़म आमतौर पर दोनों लिंगों में समान रुप से होती है।  

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी