अर्बन नक्सली बताए गए 13 मानवाधिकारवादियों को एक-एक लाख मुआवजा देने का निर्देश

एनएचआरसी ने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को एक-एक लाख रुपये मुआवजा भुगतान के निर्देश दिए हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 08:44 PM (IST) Updated:Thu, 06 Aug 2020 08:44 PM (IST)
अर्बन नक्सली बताए गए 13 मानवाधिकारवादियों को एक-एक लाख मुआवजा देने का निर्देश
अर्बन नक्सली बताए गए 13 मानवाधिकारवादियों को एक-एक लाख मुआवजा देने का निर्देश

अनिल मिश्रा, जगदलपुर। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को एक-एक लाख रुपये मुआवजा भुगतान के निर्देश दिए हैं। आयोग ने बस्तर पुलिस द्वारा दो अलग-अलग मामलों में इन कथित अर्बन नक्सलियों पर 2016 में दर्ज केसों की सुनवाई करते हुए बुधवार को यह फैसला सुनाया। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को छह सप्ताह के अंदर पीड़ि‍तों को मुआवजे का भुगतान करना है। दोनों मामले बस्तर में आईजी एसआरपी कल्लूरी की पदस्थापना के दौरान दर्ज किए गए थे। 

2016 में दर्ज किया गया था मामला 

पांच नवंबर 2016 को दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर व अर्चना प्रसाद के साथ विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू कवासी व मंगलराम कर्मा के खिलाफ हत्या, शस्त्र अधिनियम व जनसुरक्षा कानून की विभिन्न धाराओं में मामलों दर्ज किया गया था। प्रोफेसरों के दल ने बस्तर के गांवों का दौरा किया था। दल के लौटने के बाद दरभा इलाके के नामा गांव में नक्सलियों ने शामनाथ बघेल नाम के ग्रामीण की हत्या कर दी। मृतक की विधवा विमला बघेल की शिकायत पर दर्ज केस में आरोप लगाया कि उक्त मानवाधिकारवादियों ने हत्या की साजिश रची थी। 

क्षेत्र में मानवाधिकारवादियों के खिलाफ पुतले जलाते हुए प्रदर्शन भी थे। इसके बाद नंदिनी सुंदर की याचिका पर 15 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। फिर दो साल तक जांच ठंडे बस्ते में रही। 2018 में नंदिनी सुंदर ने फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की तो छत्तीसगढ़ पुलिस ने दर्ज एफआइआर को ही गलत बता दिया। इसके बाद फरवरी 2019 में प्रदेश सरकार ने एफआइआर से नंदिनी सुंदर व उनके सहयोगियों का नाम हटा दिया। उधर मानवाधिकार आयोग ने 2016 में इस प्रकरण को स्वत: संज्ञान में लिया था। आयोग ने तत्कालीन आईजी कल्लूरी को तलब किया परंतु वह उपस्थित नहीं हुए। 

दूसरे मामले में तेलंगाना के वकीलों की टीम बस्तर में फैक्ट फाइंडिंग के लिए पहुंची थी। 25 दिसंबर 2016 को किस्टारम थाने में तेलंगाना के वकीलों सीएच प्रभाकर, बी दुर्गा प्रसाद, बी रविंद्रनाथ, डी प्रभाकर, आर लक्ष्मैया, मोहम्मद नासिर, के राजेंद्र प्रसाद पर नक्सल सहयोगी होने का मामला दर्ज किया गया। यह सभी लोग सात महीने तक जेल में रहे। बाद में सुकमा कोर्ट ने आरोपों को फर्जी पाया और सभी को बरी कर दिया।

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से डीजीपी डीएम अवस्थी ने आयोग के सामने दोनों मामलों के गलत होने की बात स्वीकारी। एनएचआरसी ने जारी आदेश में कहा कि झूठी एफआइआर निश्चित रूप से प्रताड़ना है। इसमें मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है इसलिए सरकार को मुआवजा देना चाहिए।

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