यहां हम हो गए चीन से ज्यादा ताकतवर, सिर्फ अमेरिका है आगे

कभी रूस में एडमिरल गोर्शकोव के नाम से मशहूर विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य लंबी बाट जोहने के बाद 16 नवंबर को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने जा रहा है। रक्षा इतिहास में अब तक की सबसे लंबी अधिग्रहण प्रक्रिया से गुजरने वाले आएनएस विक्रमादित्य का हस्तांतरण रूस द्वारा 16 नवंबर को किया जाएगा।

By Edited By: Publish:Fri, 15 Nov 2013 11:40 AM (IST) Updated:Fri, 15 Nov 2013 12:14 PM (IST)
यहां हम हो गए चीन से ज्यादा ताकतवर, सिर्फ अमेरिका है आगे

नई दिल्ली। कभी रूस में एडमिरल गोर्शकोव के नाम से मशहूर विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य लंबी बाट जोहने के बाद 16 नवंबर को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने जा रहा है। रक्षा इतिहास में अब तक की सबसे लंबी अधिग्रहण प्रक्रिया से गुजरने वाले आएनएस विक्रमादित्य का हस्तांतरण रूस द्वारा 16 नवंबर को किया जाएगा। इस यादगार मौके पर रूस में भारतीय रक्षा मंत्री उपस्थित रहेंगे। तकरीबन तीन महीने की यात्रा के बाद विक्रमादित्य भारत पहुंचेगा। आइएनएस विराट के बाद बेड़े में शामिल होने वाला यह दूसरा विमानवाहक युद्धपोत होगा।

पढ़ें: क्यों खास है आईएनएस विक्रांत?

चीन के पास इस तरह का केवल एक युद्धपोत है। इस मामले में हम चीन से एक कदम आगे होंगे।

युद्धपोत

बाकू के नाम से यह इस पोत का 1987 में जलावतरण हुआ था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद इसका नाम बदलकर एडमिरल गोर्शकोव रखा गया।

शीतयुद्ध के खत्म होने और 1994 में इसके ब्यॉलर रूम में आग लगने के बाद रूस को इसका बजट अखरने लगा। लिहाजा 1996 इसको सेवामुक्त करते हुए बेचने का फैसला किया

सौदा नौसेना की क्षमता बढ़ाने को बरकरार भारत ने उसको खरीदने की इच्छा जताई। वर्षों की बातचीत के बाद 20 जनवरी 2004 को दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ। इसके तहत पोत मुफ्त मिलना था। उन्नत स्तर और वर्तमान जरूरतों के हिसाब से इसका जीर्णोद्धार करने के लिए 4881.67 [987 मिलियन डॉलर] का भुगतान करना था

पढ़ें : क्यों खास है आइएनएस विक्रमादित्य

प्रोजेक्ट इसके तहत अप्रैल , 2004 में इसकी मरम्मत का काम शुरू हुआ। प्रोजेक्ट को 52 महीनों में पूरा करते हुए 2008 में भारत को डिलीवरी मिलनी थी

2007 में रूस कहने लगा कि कीमत का सही ढंग से मूल्यांकन नहीं किया गया और ढेर सारा काम करने के लिए कीमतों में संशोधन की जरूरत है । दो वर्षो की बातचीत के बाद दोनों पक्ष 2.3 अरब डॉलर पर सहमत हुए

डिलीवरी की तारीख नंवबर 2012 रखी गई , लेकिन परीक्षण के दौरान गड़बड़ पाए जाने के बाद समय सीमा को एक बार फिर बढ़ाया गया

मकसद मुख्य भूमि से दूर आपात स्थितियों से निपटने में नौसेना अधिक प्रभावी साबित होगी

हिंद महासागर में चीन ग्वादर [पाकिस्तान] से हम्बनटोटा [श्रीलंका] तक भारतीय उपमहादूीप को घेरने के लिए 'स्टि्रंग ऑफ पर्ल' [मोतियों की माला] रणनीति बना रहा है।

चीनी आक्रामकता का जवाब देने के लिए बड़ी मजबूत रणनीति की दरकार थी। विक्रमादित्य उसको पूरा करने में अहम भूमिका निभा सकता है

खासियतकिसी भी मौसम में एयरकाफ्ट को दिशा निर्देश देने में सक्षम अत्याधुनिक नेवीगेशन तंत्र।

वायु सर्विलांस रडार का सुरक्षा कवच। 300 किमी रेडियस से ही खतरा भांपने में माहिर। एडवांस तकनीक के कारण वायु, सतह और जल के भीतर से दुश्मन के खतरों को भांपने की अन्य पोतों से बेहतर क्षमता

माइक्रोवेव लैडिंग स्टिम की अद्भूत क्षमता। इससे लड़ाकू विमानों को उतरने में कई विकल्प उपलब्ध हैं।

देश------विमानवाहक पोत

अमेरिका----11

भारत-------02

इटली-------02

चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, स्पेन, ब्राजील और थाइलैंड - 01 [सभी]

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर

chat bot
आपका साथी