जानिए, वायु प्रदूषण रोकने के किन उपायों से 4 वर्ष भारतीयों की बढ़ जाएगी उम्र

वायु प्रदूषण की वजह से देश में हजारों-लाखों लोग समय से पहले मर रहे हैं या फिर बीमारी भरा जीवन जीने को मजबूर हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 13 Aug 2018 09:47 PM (IST) Updated:Mon, 13 Aug 2018 10:00 PM (IST)
जानिए, वायु प्रदूषण रोकने के किन उपायों से 4 वर्ष भारतीयों की बढ़ जाएगी उम्र
जानिए, वायु प्रदूषण रोकने के किन उपायों से 4 वर्ष भारतीयों की बढ़ जाएगी उम्र

नई दिल्ली, जागरण स्‍पेशल। भारत में वायु प्रदूषण के कारण काफी संख्‍या में लोगों को खामियाजा भुगतना पड़ता है। हालांकि सरकारें इसके लिए प्रयास कर रही हैं लेकिन वो नाकाफी साबित हो रही है। भारत में वायु प्रदूषण को लेकर नई रिपोर्ट सामने आई है। 'रोडमैप टुवर्ड्स क्लीनिंग इंडियाज एयर' नाम के एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है कि अगर भारत वायु गुणवत्ता के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से तय किए गए मानकों तक पहुंच जाता है तो भारतियों की औसत उम्र 4 साल और बढ़ जाएगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो और हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में भारत में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर ध्यान दिलाते हुए बताया गया है कि भारत को हर साल सिर्फ इस कारण 5 खरब डॉलर यानी करीब 350 खरब रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है। वायु प्रदूषण की वजह से देश में हजारों-लाखों लोग समय से पहले मर रहे हैं या फिर बीमारी भरा जीवन जीने को मजबूर हैं। शोधकर्ताओं के समूह ने इस समस्या से उबरने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं जिनमें अत्यधिक उत्सर्जन करने पर आर्थिक दंड शामिल है। इसी अध्ययन में कहा गया है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों तक पहुंचे तो भारत के लोग औसत से 4 साल ज्यादा जी पाएंगे।

66 करोड़ भारतीय रहते हैं प्रदूषित इलाके में

यह अध्ययन 66 करोड़ ऐसे भारतीयों के जीवन पर आधारित है जो देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित इलाकों में रहते हैं। अध्ययन में प्रदूषण से निजात पाने के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उनमें उत्सर्जन पर सही समय पर डाटा मुहैया कराना, अत्याधिक उत्सर्जन करने वालों पर जुर्माना लगाना, लोगों को प्रदूषकों के बारे में जानकारी देना शामिल है।

पुराने समय में मानव के आगे वायु प्रदूषण जैसी समस्या सामने नहीं आई क्योंकि प्रदूषण का दायरा सीमित था साथ प्रकृति भी पर्यावरण को संतुलित रखने का लगातार प्रयास करती रही। उस समय प्रदूषण सीमित होने के कारण प्रकृति ही संतुलित कर देती थी लेकिन आज मानव विकास के पथ पर अग्रसर है और उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है। मानव ने अपने औद्योगिक लाभ के लिए बिना सोचे-समझे प्राकृतिक साधनों को नष्ट किया जिससे प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ने लगा और वायुमंडल भी इससे न बच सका।

वायु प्रदूषण के कारण

विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने प्राकृतिक साधनों का अधिक उपयोग किया है। औद्योगीकरण से बड़े-बड़े शहर बंजर बनते जा रहे हैं। इन शहरों व नगरों की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, इससे शहरों और नगरों में आवास-समस्या उत्पन्न हो गई है। इस आवास-समस्या को सुलझाने के लिए लोगों ने बस्तियों का निर्माण किया और वहां पर जल निकासी, नालियों आदि की समुचित व्यवस्था नहीं होने से गंदी बस्तियों ने वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। उद्योगों से निकलने वाला धुआं, कृषि में रसायनों के उपयोग से भी वायु प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही कारखानों की दुर्घटना भी भयंकर होती है। आए दिन ऐेसी दुर्घटना देखनों को मिलती है। ।

आवागमन के साधनों की वृद्धि आज बहुत अधिक हो रही है। इन साधनों की वृद्धि से इंजनों, बसों, वायुयानों, स्कूटरों आदि की संख्या बहुत बढ़ी है। इन वाहनों से निकलने वाले धुएँ वायुमण्डल में लगातार मिलते जा रहे हैं जिससे वायुमण्डल में असन्तुलन हो रहा है।

वनों की कटाई से वायु प्रदूषण बढ़ा है क्योंकि वृक्ष वायुमण्डल के प्रदूषण को निरन्तर कम करते हैं। पौधे हानिकारक प्रदूषण गैस कार्बन डाई आक्साइड को अपने भोजन के लिए ग्रहण करते हैं और जीवनदायिनी गैस आक्सीजन प्रदान करते हैं, लेकिन मानव ने आवासीय एवं कृषि सुविधा हेतु इनकी अन्धाधुन्ध कटाई की है और हरे पौधों की कमी होने से वातावरण को शुद्ध करने वाली क्रिया जो प्रकृति चलाती है, कम हो गई है। 

 

वायु प्रदूषण के प्रभाव

1. यदि वायुमण्डल में लगातार अवांछित रूप से कार्बन डाइ आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन, आक्साइड, हाइड्रो कार्बन आदि मिलते रहें तो ऐसे प्रदूषित वातावरण में सांस लेने से सांस संबंधी बीमारियां होंगी। साथ ही उल्टी घुटन, सिर दर्द, आँखों में जलन आदि बीमारियां होनी सामान्य बात है।

2.वाहनों व कारखानों से निकलने वाले धुएं में सल्फर डाइ आक्साइड की मात्रा होती है जो कि पहले सल्फाइड व बाद में सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) में परिवर्तित होकर वायु में बूदों के रूप में रहती है। वर्षा के दिनों में यह वर्षा के पानी के साथ पृथ्वी पर गिरती है जिसमें भूमि की अम्लता बढ़ती है और उत्पादन-क्षमता कम हो जाती है। साथ ही सल्फर डाइ आक्साइड से दमा रोग हो जाता है।

3. कुछ रासायनिक गैसें वायुमण्डल में पहुँच कर वहां ओजोन मंडल से क्रिया कर उसकी मात्रा को कम करती हैं। ओजोन मंडल अंतरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकरणों को अवशोषित करती है। हमारे लिए ओजोन मंडल ढाल का काम करता है लेकिन जब ओजोन मंडल की कमी होगी, तब त्वचा कैंसर जैसे भयंकर रोग से ग्रस्त हो सकती है।

4.वायु प्रदूषण से भवनों, धातु व स्मारकों आदि का क्षय होता है। ताजमहल को खतरा मथुरा तेल शोधक कारखाने से हुआ है।

5.वायुमंडल में आक्सीजन का स्तर कम होना भी प्राणियों के लिए घातक है क्योंकि आक्सीजन की कमी से प्राणियों को श्वसन में बाधा आएगी।

6.कारखानों से निकलने के बाद रासायनिक पदार्थ व गैसों का अवशोषण फसलों, वृक्षों आदि पर करने से प्राणियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

 

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

।. कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित करना चाहिए, साथ ही ऐसी तकनीक उपयोग में लाने के लिए बाध्य करना चाहिए जिससे कि धुएं का अधिकतर भाग अवशोषित हो और अवशिष्ट पदार्थ व गैसें अधिक मात्रा में वायु में न मिल पायें।

2.जनसंख्या शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाए ताकि जनसंख्या वृद्धि को बढ़ने से रोका जाए।

3. शहरीकरण और शहरों की ओर पलायन रोकने के लिए गांवों व कस्बों में ही रोजगार व कुटीर उद्योगों व अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराना चाहिए।

4. वाहनों में ईंधन से निकलने वाले धुएं को ऐसे समायोजित, करना होगा जिससे की कम-से-कम धुआं बाहर निकले।

5. बिना धूएं वाले चूल्हे व सौर ऊर्जा की तकनीकी को प्रोत्साहित करना चाहिए।

6. ऐसे ईंधन के उपयोग की सलाह दी जाए जिसके उपयोग करने से उसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाय व धुआं कम-से-कम निकले।

7. वनों की हो रही अन्धाधुन्ध अनियंत्रित कटाई को रोका जाना चाहिए। इस कार्य में सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएं व प्रत्येक मानव को चाहिए कि वनों को नष्ट होने से रोके व पौधरोपण कार्यक्रम में भाग लें।

8. शहरों-नगरों में अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के लिए सीवरेज सभी जगह होनी चाहिए।

9. इसको पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत की जानी चाहिए।

10. इसकी जानकारी व इससे होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने के लिए प्रचार माध्यम जैसे टीवी चैनल, रेडियो पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से प्रचार करना चाहिए।

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