सूरजमुखी में विटामिन की मात्रा बढ़ाएंगी कोशिकाएं, अब दस गुना ज्यादा होगा विटामिन ई का उत्पादन
शोधकर्ताओं ने कहा कि विटामिन ई का उत्पादन बढ़ाने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग और सेलुलर इंजीनियरिंग का उपयोग करना फायदेमंद साबित हुआ।
नई दिल्ली, प्रेट्र। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास के वैज्ञानिकों ने सूरजमुखी के पौधे की कोशिकाएं विकसित की हैं, जो सामान्य सूरजमुखी के मुकाबले दस गुना ज्यादा विटामिन ई का उत्पादन कर सकते हैं। नई तकनीक से विटामिन ई का प्रभावी और कुशल व्यावसायिक उत्पादन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। बायोकेमिकल इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि विटामिन ई का सबसे सक्रिय रूप ‘अल्फा-टोकोफेरॉल’ शरीर में उत्पन्न होने वाले कुछ विषैले रसायनों से ऊतकों को बचाने में मदद करता है, जिन्हें रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पिशीज के रूप में जाना जाता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, प्रयोगशालाओं में रासायनिक रूप से संश्लेषित ‘अल्फाटोकोफेरॉल’ पौधों में पाए जाने वाले अपने प्राकृतिक रूप से कम सक्रिय होता है, इसलिए उन्होंने एक ऐसी तकनीक पर काम शुरू किया, जिसमें विटामिन ई का उत्पादन बढ़ाया जा सके। शोधकर्ताओं ने कहा, ‘सूरजमुखी के फूल में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके पौधे की कार्यप्रणाली को ध्यान में रखते हुए हमने प्रयोगशाला में सूरजमुखी के पौधे की कोशिकाओं में बदलाव कर एक नई कोशिका विकसित की, जो तेजी से अल्फा-टोकोफेरॉल का उत्पादन कर सकती है।’
ऐसे तैयार की कोशिका
अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने सूरजमुखी से विटामिन ई का उत्पादन करने वाले जीनों को अरबिडोप्सिस नामक पौधे में डाला। कंप्यूटेशनल सिमुलेशन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों का मेल होने से अल्फा-टोकोफेरॉल का उत्पादन काफी बढ़ गया था।
कारगर है नया दृष्टिकोण
शोधकर्ताओं ने कहा कि विटामिन ई का उत्पादन बढ़ाने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग और सेलुलर इंजीनियरिंग का उपयोग करना फायदेमंद साबित हुआ। विज्ञान की भाषा में इसे तर्कसंगत दृष्टिकोण भी कहा जाता है। इसके जरिये उन्होंने यह अनुमान लगाया कि यदि अरबिडोप्सिस कोशिकाओं में थोड़ा बदलाव किया जाए तो कौन से एंजाइम अधिक अल्फा-टोकोफेरॉल का उत्पादन करते हैं। जब शोधकर्ताओं ने प्रयोगात्मक रूप से कोशिकाओं में एक एंजाइम की मात्रा को बढ़ाया, तो सामान्य कोशिकाओं की तुलना में प्रयोगशाला में विकसित कोशिकाओं ने दस गुना अधिक अल्फाटोकोफेरॉल का उत्पादन किया।
समय और धन की बचत
आइआइटी मद्रास के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक कार्तिक रमन ने कहा, ‘नया तरीका पारंपरिक ‘हिट एंड ट्रायल’ तरीकों के काफी फायदेमंद हो सकता है क्योंकि यह प्रक्रिया मूल्यवान संसाधनों के साथ-साथ समय और धन की बचत कर सकती है।’ इस अध्ययन की सह-लेखिका स्मिता श्रीवास्तव ने कहा, ‘मॉडल आधारित तकनीक एक प्लेटफॉर्म तकनीक के रूप में काम कर सकती है, जिसमें हम किसी भी पौधे से जैव ईंधन जैसे वांछित उत्पाद तैयार कर सकते हैं।’