कैशलेस राशन प्रणाली के प्रस्ताव से बैंकों के होश उड़े

सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का बुनियादी ढांचा इस लायक नहीं है, जिससे करोड़ों राशन कार्ड धारकों के कैशलेस भुगतान की सुविधा दी जा सके।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Fri, 13 Jul 2018 10:18 PM (IST) Updated:Fri, 13 Jul 2018 10:18 PM (IST)
कैशलेस राशन प्रणाली के प्रस्ताव से बैंकों के होश उड़े
कैशलेस राशन प्रणाली के प्रस्ताव से बैंकों के होश उड़े

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कैशलेस बनाने के सरकार के प्रस्ताव को लेकर बैंकों से होश उड़े हुये हैं। इसे लेकर बुलाई बैठक में बैंकों की ओर से असमर्थता जताई गई। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का बुनियादी ढांचा इस लायक नहीं है, जिससे करोड़ों राशन कार्ड धारकों के कैशलेस भुगतान की सुविधा दी जा सके। इंटरनेट कनेक्टिीविटी भी एक बड़ी चुनौती है।

बैठक में खाद्य मंत्रालय ने भी इस तरह के प्रावधान पर अपनी सहमति नहीं जताई है। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय इसे लागू कराने पर जोर है। इसीलिए उसने इस मुद्दे पर खाद्य मंत्रालय और बैंकिंग विभाग को कोई पुख्ता उपाय तलाशने को कहा है। माना जा रहा है कि देश के प्रत्येक जिले में किसी एक राष्ट्रीय बैंक को नोडल बैंक घोषित कर दिया जाए, जो इसे लागू करे। वैकल्पिक प्रस्ताव यह भी है कि बैंकों को उपभोक्ताओं के ट्रांसएक्शन शुल्क का एकमुश्त भुगतान वित्त मंत्रालय की ओर से किया जा सकता है।

देश में 23 करोड़ राशन कार्ड धारक उपभोक्ता हैं, जिनमे से 15 करोड़ उपभोक्ता हर महीने नियमित रुप से राशन दुकानों से रियायती दर पर अनाज उठाते हैं। राशन दुकानों से मोटा अनाज एक रूपये किलो, गेहूं दो रुपये और चावल तीन रुपये किलो दिया जाता है। इनमें भी कई राज्यों में हर तरह के अनाज का मूल्य सिर्फ एक रूपये किलो रखा गया है। प्रणाली को कैशलेस बनाकर उपभोक्ताओं को उनके अंगूठे के निशान से अनाज देने का प्रस्ताव है। अनाज के मूल्य का भुगतान उपभोक्ताओं के बैंक खाते से किया जाएगा, जिसके लिए उनके बैंक के एटीएम कार्ड का प्रयोग किया जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक बैठक में बैंकों ने इस प्रस्ताव पर अपनी असमर्थता जताते हुए कहा कि इस तरह के गैर बैंकिंग कारोबार से कोर बैंकिंग का काम बुरी तरह प्रभावित होगा। इस तरह के काम से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है। उपभोक्ताओं से ट्रांसएक्शन शुल्क वसूली को लेकर संदेह बना हुआ है। दरअसल, महीने में अधिकतम सौ रुपये का राशन खरीदने वाले उपभोक्ताओं से ट्रांसएक्शन शुल्क देना भारी पड़ सकता है।

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