पहाड़ों में छिपे बंकरों को भी खत्म करेगा ब्रह्मोस

बालासोर। देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मोस मिसाइल की उन्नत किस्म का सफल परीक्षण किया। ओडिशा के बालासोर जिले में 290 किलोमीटर तक सटीक लक्ष्य भेदने वाली सुपर सोनिक मिसाइल का परीक्षण किया गया। ये मिसाइल पहाड़ों, बादलों या इमारतों के पीछे छिपे लक्ष्य को भी सटीक रूप से भेद सकता है। चांदीपुर परीक्षण रेंज पर मंगलवार सुबह 10.38 बजे मिसाइल को लक्ष्य पर छोड़ा गया। ये 290 किलोमीटर की दूरी महज 500 सौ सेकंड में तय कर लेगा।

By Edited By: Publish:Tue, 08 Jul 2014 12:27 PM (IST) Updated:Tue, 08 Jul 2014 07:21 PM (IST)
पहाड़ों में छिपे बंकरों को भी खत्म करेगा ब्रह्मोस

बालासोर। देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मोस मिसाइल की उन्नत किस्म का सफल परीक्षण किया। ओडिशा के बालासोर जिले में 290 किलोमीटर तक सटीक लक्ष्य भेदने वाली सुपर सोनिक मिसाइल का परीक्षण किया गया। ये मिसाइल पहाड़ों, बादलों या इमारतों के पीछे छिपे लक्ष्य को भी सटीक रूप से भेद सकता है। चांदीपुर परीक्षण रेंज पर मंगलवार सुबह 10.38 बजे मिसाइल को लक्ष्य पर छोड़ा गया। ये 290 किलोमीटर की दूरी महज 500 सौ सेकंड में तय कर लेगा।

ब्रह्मोस प्रमुख ए सिवाथानु ने बताया कि नई प्रणाली के तहत मिसाइल की लक्ष्य भेदने की सटीक क्षमता को बढ़ाया गया है। इसे कई सैटेलाइट के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है, जिसमें एल्गोरिद्म सॉफ्टवेयर पर आधारित गगन सिस्टम भी शामिल है। पूरी तरह भारतीय तकनीक से विकसित इस प्रणाली के माध्यम से मिसाइल की भेदन क्षमता सुई की नोक जितनी सटीक बन गई है। उन्होंने बताया कि इससे पहले किए गए परीक्षण में मिसाइल लक्ष्य के करीब 10 मीटर की परिधि में गिरा था लेकिन इस बार ये परिधि पांच किलोमीटर की ही रही। इसकी सहायता से युद्ध के दौरान पहाड़ों की ओट में बने दुश्मनों के बंकर नष्ट करना आसान होगा।

सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन [डीआरडीओ] के अनुसार ये मिसाइल अपने साथ करीब तीन सौ किलो विस्फोटक ले जा सकता है। एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी के अनुसार ब्रह्मोस की दो तरह की मिसाइलों को पहले ही थल व नौसेना में शामिल किया जा चुका है, जबकि इसका वायुसेना का वर्जन आखिरी चरण में है। इसके अलावा मिसाइल को सबमरीन से भी छोड़े जाने की तकनीक विकसित की जा रही है। ब्रह्मोस का ये 44वां परीक्षण था, जिसे सेना के दो रेजीमेंट की सहायता से पूरा किया गया।

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