जम्‍मू-कश्‍मीर में स्थानीय स्तर पर बढ़ी जनभागीदारी से टूटी अलगाववाद की कमर, बदला माहौल

जम्मू-कश्मीर में 2011 के बाद पंचायत और 2005 से नगर निकायों के चुनाव नहीं हुए थे। इस कारण पंचायती राज कानून के तहत स्थानीय निकायों को मिलने वाली केंद्रीय सहायता रुक गई थी।

By Tilak RajEdited By: Publish:Sat, 01 Aug 2020 09:16 PM (IST) Updated:Sat, 01 Aug 2020 09:16 PM (IST)
जम्‍मू-कश्‍मीर में स्थानीय स्तर पर बढ़ी जनभागीदारी से टूटी अलगाववाद की कमर, बदला माहौल
जम्‍मू-कश्‍मीर में स्थानीय स्तर पर बढ़ी जनभागीदारी से टूटी अलगाववाद की कमर, बदला माहौल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। स्थानीय निकायों के चुनाव और उन्हें दी गई आर्थिक व प्रशासनिक आजादी जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की कमर तोड़ने में अहम साबित हुआ है। बड़े पैमाने पर स्थानीय स्तर पर जनप्रतिनिधियों के सामने आने और रोजमर्रा की समस्याओं के निवारण आम लोगों में व्यवस्था के प्रति भरोसा कायम करने में मदद मिली है। इसकी परिणति पत्थरबाजी की घटनाओं से लेकर आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में कमी के रूप में देखा जा सकता है, जबकि अनुच्छेद 370 और 35ए निरस्त होने के बाद आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही थी।

गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और अलगाववाद पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती का अपना महत्व है। लेकिन स्थानीय स्तर पर आम लोगों को अलगाववादी और आतंकी गतिविधियों से दूर करना सबसे जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह स्थानीय निकाय के चुनावों के कारण संभव हो पाया है। आम लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने में स्थानीय निकायों की अहम भूमिका को देखते हुए केंद्र सरकार अब इसे और भी अधिक आर्थिक स्वायत्ता देने पर विचार कर रही है।

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में 2011 के बाद पंचायत और 2005 से नगर निकायों के चुनाव नहीं हुए थे। चुनाव नहीं होने के कारण पंचायती राज कानून के तहत स्थानीय निकायों को मिलने वाली केंद्रीय सहायता रुक गई थी। 2018-19 तक यह लगभग 4300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। जाहिर है चुनाव होते ही केंद्र सरकार ने स्थानीय निकायों के हिस्से की रकम देनी शुरू कर दी। इसके साथ ही पंचायतों और नगर निकायों को विकास की योजनाएं बनाने और उसके लिए खर्च की स्वतंत्रता भी प्रदान की गई। इससे स्थानीय स्तर पर गली-मुहल्ले में विकास योजनाओं के क्रियान्वयन के रास्ता साफ हो गया। अलगाव और आतंक की राह में सबसे बड़ी रूकावट बने पंचों, सरपंचों व अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों को निशाना बनाने की भी कोशिश हुई। लेकिन हाल ही में सरकार ने उनके लिए 25 लाख रुपये की बीमा करा दिया और सुरक्षा भी मुहैया कराई गई।

गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, स्थानीय निकाय के लिए 40 हजार से अधिक जनप्रतिनिधियों के चुनाव के साथ ही आम लोगों के दरवाजे तक प्रशासन को पहुंचाने की कोशिश की गई। इसके लिए 'गांव की ओर वापसी' अभियान चलाया। इस अभियान के तहत वरिष्ठ अधिकारियों को गांव में जाकर कुछ बिताना अनिवार्य किया गया। इस दौरान ये अधिकारी संबंधित गांव में चल रही विकास योजनाओं का मुआयना भी करते थे और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को सही तरीके से विकास योजनाओं को बनाने और उनके क्रियान्वयन में भी मदद करते थे। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के ठीक पहले जून 2019 में एक हफ्ते चले इस अभियान ने प्रशासन में आम लोगों का भरोसा कायम करने में अहम भूमिका निभाई।

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