अनफिट फिटनेस तंत्र के सहारे कैसे खिंचे सड़क सुरक्षा की गाड़ी

नियमानुसार वाहन की फिटनेस जांचने के लिए आरटीओ के पास कम से कम 250 मीटर का टेस्ट ट्रैक होना चाहिए।

By Atul GuptaEdited By: Publish:Tue, 06 Dec 2016 07:06 PM (IST) Updated:Wed, 07 Dec 2016 06:55 AM (IST)
अनफिट फिटनेस तंत्र के सहारे कैसे खिंचे सड़क सुरक्षा की गाड़ी

नई दिल्ली, संजय सिंह। सड़क हादसों का एक बड़ा कारण सड़कों पर दौड़ते अनफिट वाहन हैं। किसी भी सड़क से गुजरो आपको गहरा काला धुआं छोड़ते टेढ़े-मेढ़े, खटर-पटर करते ट्रक या टैंपो दिख जाएंगे। इन्हें सड़क पर चलने की इजाजत किसने दी? इनके पास फिटनेस सर्टिफकेट है या नहीं?है तो जारी कैसे हो गया, ये ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनके जवाब नीति निर्माताओं को पता हैं, लेकिन देना नहीं चाहते है।

केंद्रीय मोटर वाहन नियमावली-1989 के नियम-62 के अनुसार प्रत्येक ट्रांसपोर्ट वाहन के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य है। नए वाहन के लिए दो साल में, जबकि पुराने वाहन के लिए हर साल फिटनेस सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य है। सर्टिफिकेट न होने की स्थिति में पहली मर्तबा दो हजार रुपये तथा दूसरी मर्तबा पांच हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।

लेकिन यथार्थ में इन नियमों का शायद ही पालन होता है। भ्रष्ट आरटीओ अफसरों, ट्रांसपोर्टरों और दलालों की मिलीभगत के कारण ज्यादातर कामर्शियल वाहन स्वामी ले-देकर बिना समुचित जांच के ही फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेते हैं। यह स्थिति विकसित देशों से एकदम उलट है, जहां फिटनेस जांचने का तंत्र इतना सख्त और वैज्ञानिक है कि सड़कों पर दिखने वाले ज्यादातर वाहन एकदम नए से दिखाई पड़ते हैं।

वैसे भारत में अनफिट वाहन दिखाई देने की एक बड़ी वजह आरटीओ में बुनियादी ढांचे का अभाव होना भी है। पिछले दिनो महाराष्ट्र हाईकोर्ट के एक फैसले से यह बात सामने आई कि ज्यादातर आरटीओ के पास वाहनों की फिटनेस जांचने के लिए ट्रैक और पिट ही नहीं हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के लगभग 89 आरटीओ में से एक में भी उपयुक्त टै्रक नहीं है। जबकि टेस्ट पिट केवल पांच आरटीओ के पास हैं। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों का भी है। इस संबंध में केंद्र सरकार के पास भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं है।

नियमानुसार वाहन की फिटनेस जांचने के लिए आरटीओ के पास कम से कम 250 मीटर का टेस्ट ट्रैक होना चाहिए। ताकि 40 किलोमीटर की रफ्तार पर चलाकर तथा ब्रेक लगाकर वाहन की हालत को परखा जा सके। ब्रेक लगाने पर वाहन कितनी दूरी पर रुकता है, इससे सस्पेंशन की हालत का पता चल जाता है। लेकिन ज्यादातर आरटीओ के पास या तो ट्रैक हैं ही नहीं और हैं तो उनकी लंबाई सौ-डेढ़ सौ मीटर से ज्यादा नहीं हंै। नतीजतन, आरटीओ कर्मचारी वाहन को खड़ी हालत में स्टार्ट कर आंखों और कानों के सहारे फिटनेस जांच की औपचारिकता निभाते हैं। इससे हेडलाइट्स, ब्लिंकर लाइट्स, फॉग लाइट्स, टायर, रिम जैसी ऊपरी चीजों की पड़ताल तो हो जाती है। मगर क्लच, गियर, सस्पेंशन जैसे भीतरी पुर्जो की हालत का पता नहीं चल पाता। फिटनेस जांच के लिए आवश्यक उपकरणों तथा तकनीशियनों का भी आरटीओ में अभाव देखा गया है। जबकि हेडलाइट्स की बीम सही या नहीं, इसका पता मशीन से ही चल पाता है।

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