जानिए क्या हैं हार्निया की बीमारी के लक्षण, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है इसका कारगर इलाज

डॉ. प्रदीप चौबे ने बताया कि एब्डॉमिनल हार्निया आंत और शरीर के अन्य अंगों की सर्जरी के लिए लेप्रोस्कोपी सबसे लोकप्रिय साबित हुई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 17 Feb 2020 03:38 PM (IST) Updated:Mon, 17 Feb 2020 03:38 PM (IST)
जानिए क्या हैं हार्निया की बीमारी के लक्षण, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है इसका कारगर इलाज
जानिए क्या हैं हार्निया की बीमारी के लक्षण, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है इसका कारगर इलाज

नई दिल्ली। मरीजों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के लिए चिकित्सा विज्ञान में नए शोध हो रहे हैं। पिन होल टेक्नोलॉजी से सर्जरी भी इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। हार्निया की सर्जरी अब बहुत कम चीरफाड़ के, बस एक छोटे से छेद के माध्यम से, की जा सकती है... हर क्षेत्र में टेक्नोलॉजी पहले से अधिक कांपैक्ट और हैंडी हो गई है, जिसमें मेडिकल का क्षेत्र भी पीछे नहीं है। एब्डॉमिनल, हार्निया, आंत और शरीर के अन्य अंगों की सर्जरी के लिए लेप्रोस्कोपी सबसे लोकप्रिय साबित हुई है। जानें क्‍या कहते है नई दिल्ली के मैक्स सुपर हॉस्पिटल सर्जिकल स्पेशलिटीज के चेयरमैन डॉ. प्रदीप चौबे

क्या हैं हार्निया के लक्षण

हार्निया की समस्या तब होती है जब शरीर का कोई हिस्सा अपनी जगह से बाहर निकल आता है। हार्निया के लक्षणों में वजन उठाते हुए दर्द का अनुभव, पेट में भारीपन, चक्कर और कब्ज आदि शामिल हैं। कई बार हार्निया के लक्षण महसूस हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं, जिसमें हल्के से तीव्र दर्द तक शामिल है। हार्निया वाला हिस्सा खांसी और छींकने के दौरान ज्यादा उभर सकता है। इसका इलाज अब पहले के मुकाबले काफी आसान हो गया है।

माइक्रो-लेप्रोस्कोपिक सर्जरी

हार्निया का इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही संभव है, इसमें भी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी मरीज की जल्द रिकवरी, कम दर्द और सामान्य जीवन में जल्द वापसी के लिए अधिक कारगर है। सर्जरी की प्रक्रिया में दर्द और घावों को कम करने की कोशिश में रूटीन लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज माइक्रो-लेप्रोस्कोपिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसका उद्देश्य सर्जरी की प्रक्रिया को कांपैक्ट और आसान बनाना है, जिससे चीरफाड़ की प्रक्रिया में कमी लाई जा सके।

सर्जरी में लगने वाले चीरे छोटे होते हैं

माइक्रोसर्जिकल लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण आकार में 3एमएम या उससे भी छोटे होते हैं, जिसके कारण यह प्रक्रिया (पिन होल) तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसमें लगने वाले चीरे बहुत छोटे होते हैं, जो आसानी से ठीक हो जाते हैं। यह टेक्नोलॉजी केवल आधुनिक उपकरणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें एनेस्थेटिस्ट की टीम भी शामिल है, जो यह सुनिश्चित करती है कि मरीज सर्जरी के बाद जल्द ही काम पर लौट सकें।

यह तो साबित हो चुका है कि छोटी चीजों वाली आधुनिक दुनिया ने विश्वस्तर पर क्रांति ला दी है। माइक्रो- लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी एक सुरक्षित, आसान और अन्य मिनिमल इनवेसिव प्रक्रियाओं का नया विकल्प है। भविष्य में सर्जिकल टेक्नोलॉजी में होने वाले विकास के साथ, सभी उपकरण और अधिक छोटे और कांपैक्ट हो जाएंगे, जिनके फायदे अभी की तुलना में कहीं अधिक होंगे।

पित्त की पथरी में भी लाभप्रद

पित्त की पथरी के लिए भी सर्जिकल प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। पित्त की पथरी के मुख्य लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में तीव्र दर्द शामिल है, जो मरीज को किसी भी वक्त महसूस हो सकता है। इसके अन्य लक्षणों में पीठ दर्द, कंधा दर्द, उल्टी व चक्कर, दाएं कंधे के नीचे दर्द आदि शामिल हैं। पित्त की पथरी के लिए लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी का इस्तेमाल लोकप्रिय हो रहा है। इसके खास फायदों में कम दर्द, छोटा चीरा, कम घाव, अस्पताल में कम दिन का स्टे और फास्ट रिकवरी आदि शामिल हैं।

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