India Pakistan 1965 War: जब पाकिस्‍तान की पूरी टैंक रेजीमेंट के निशाने पर था भारत के एक जवान 'अब्‍दुल हमीद' का नाम

India Pakistan 1965 War अब्‍दुल हमीद ने 1965 में पाकिस्‍तान की सेना के ऐसे पांव उखाड़े की वो फिर दोबारा अपनी वापसी नहीं कर सकी। पाकिस्‍तान की टैंक रेजीमेंट में उनका खौफ था।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 10 Sep 2020 10:01 AM (IST) Updated:Fri, 11 Sep 2020 07:52 AM (IST)
India Pakistan 1965 War: जब पाकिस्‍तान की पूरी टैंक रेजीमेंट के निशाने पर था भारत के एक जवान 'अब्‍दुल हमीद' का नाम
India Pakistan 1965 War: जब पाकिस्‍तान की पूरी टैंक रेजीमेंट के निशाने पर था भारत के एक जवान 'अब्‍दुल हमीद' का नाम

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। India Pakistan 1965 War 10 सितंबर 1965 का दिन भारत और पाकिस्‍तान के युद्ध इतिहास का बेहद खास दिन है। इसी दिन भारतीय फौज का एक जवान पाकिस्‍तान की पूरी टैंक रेजीमेंट पर भारी पड़ा था। यही वजह थी कि पूरी टैंक रेजीमेंट के निशाने पर केवल एक ही नाम था। वो नाम था कंपनी क्‍वार्टर मास्‍टर हवलदार अब्‍दुल हमीद का। अब्‍दुल हमीद 4 ग्रेनेडियर के सिपाही थे। खेमकरण के चीमा गांव में हुए इस युद्ध में भारत की पैदल सेना के सामने पाकिस्‍तान की पूरी टैंक रेजीमेंट थी, जो लगातार जबरदस्‍त गोलाबारी कर भारतीय सेना का रास्‍ता रोक रही थी। ऐसे में भारतीय सेना के पास में खुली जीप पर लगी आरसीएल गन (गन माउंटेड जीप) थी जिसको तीन साथी जवानों के साथ अब्‍दुल हमीद लीड कर रहे थे।

भारतीय सेना के लिए मुश्किल पल था। तभी अब्‍दुल हमीद आगे आए और उन्‍होंने अपने साथी जवानों पाकिस्‍तानी पैटन टैंकों पर निशाना बनाने का आदेश दिया। अपनी पोजिशन को लगातार बदलते हुए उन्‍होंने एक के बाद कई पैटन टैंक तबाह कर दिए थे। तभी पाकिस्‍तानी टैंक का एक गोला उनकी जीप के करीब आकर गिरा जिसमें उनके सभी साथी जवान शहीद हो गए। जीप के साथ वो अकेले थे, लेकिन उन्‍होंने हार नहीं मानी।

वो लगातार अपनी पोजिशन को बदलते रहे और पाकिस्‍तान की टैंक रेजीमेंट पर अचूक वार करते रहे। उन्‍होंने पाकिस्‍तान के 7 पैटन टैंक तबाह कर दिए थे। तभी पाकिस्‍तान की आर्टिलरी के कमांडर ने अब्‍दुल हमीद की जीप को निशाना बनाने का हुक्‍म दिया और देखते ही देखते कई टैंकों का रुख हमीद की तरफ हो गया। उनके ऊपर कई गोले बरसाए गए जिसमें से एक सीधा उनकी जीप पर आकर लगा। इसमें वो बुरी तरह से जख्‍मी हो गए और जमीन पर गिर पड़े। जब उनके अधिकारी की नजर उनके ऊपर गई, तब तक वो अंतिम सांसे गिन रहे थे। उन्‍होंने अपने अधिकारी को सैल्‍यूट कर जय हिंद कहा और हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। उन्‍होंने इस लड़ाई भारतीय सेना की जो नींव रखी उसकी बदौलत भारत ने पाकिस्‍तान के काफी अंदर तक कब्‍जा कर लिया था। इस लड़ाई की अहमियत सिर्फ इतनी ही नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक है।

दरअसल, पैटन टैंक के इतिहास में ये पहला मौका था जब एक छोटी-सी दिखाई देने वाली आरसीएल गन ने उन्‍हें किसी खिलौने की तरह हवा में उड़ाकर तबाह कर दिया था। ये पैटन टैंक पाकिस्‍तान ने अमेरिका से लिए थे और ये उस वक्‍त के सबसे ताकतवर और अत्‍याधुनिक टैंक भी थे। खेमकरण के इस युद्ध के बाद अमेरिका ने पैटन टैंक की इस तरह से हुई तबाही को लेकर एक कमेटी बनाकर जांच करवाई और उसमें कुछ बदलाव भी किए। लेकिन इस युद्ध में सबसे ताकतवर टैंकों की इस तरह से हुई बर्बादी पर अमेरिका भी हैरान था। इस युद्ध में हवलदार अब्‍दुल हमीद ने जिस वीरता का परिचय दिया उसकी बदौलत ही उन्‍हें भारत का सबसे बड़ा सम्‍मान परमवीर चक्र दिया गया। 1965 में पाकिस्‍तान ने भारत में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों के मद्देनजर ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की थी। इसका मकसद भारत को कई मोर्चों पर घेरना भी था। इसकी शुरुआत में ही भारत को पता चला कि पाकिस्‍तान ने इसके लिए 30 हजार जवानों को गुरिल्‍ला वार का प्रशिक्षण दिया था। खेमकरण युद्ध की शुरुआत 8 सितंबर 1965 को उसल उताड़ गांव पर हुए हमले से हुई थी।

वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई 1933 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता दर्जी थे लिहाजा फौज में भर्ती होने से पहले उन्‍होंने भी इसी काम से अपना गुजारा किया था। 27 दिसंबर 1954 को हामिद भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। इसके बाद उनकी तैनाती 4 ग्रेनेडियर बटालियन में कर दी गई। उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं। हमीद चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान भी 7वीं इंफेंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थे। इस ब्रिगेड ने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में चीन की सेना से लोहा लिया था।

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