Dalai Lama: घड़ियों की मरम्मत का शौक रखने वाले 88 वर्षीय बुजुर्ग गुरु के कारण भारत को चुकानी पड़ी थी ये कीमत

Happy Birthday Dalai Lama 6 जुलाई को तिब्बतियों के धर्मगुरु और14वें दलाई लामा का जन्मदिन है।आइये उनके जन्मदिन के अवसर पर आपको बताते है दलाई लामा के उस सफर के बारे में जिसके कारण आज हम उन्हें इतना सम्मान देते है।माना जाता है कि 1937 में जब तिब्बत के धर्मगुरुओं ने दलाई लामा को देखा था तो उन्हें वे 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार में नजर आए थे।

By Nidhi AvinashEdited By: Publish:Tue, 04 Jul 2023 05:16 PM (IST) Updated:Tue, 04 Jul 2023 05:16 PM (IST)
Dalai Lama: घड़ियों की मरम्मत का शौक रखने वाले 88 वर्षीय बुजुर्ग गुरु के कारण भारत को चुकानी पड़ी थी ये कीमत
घड़ियों की मरम्मत का शौक रखने वाले 88 वर्षीय बुजुर्ग गुरु के कारण भारत को चुकानी पड़ी थी ये कीमत

HighLights

  • 6 जुलाई, 1935 को तेनजिन ग्यात्सो का जन्म पूर्वोत्तर तिब्बत के तकत्सेर में हुआ
  • मेडिटेशन और गार्डनिंग के अलावा, दलाई लामा को घड़ियों की मरम्मत करने का काफी शौक है
  • दलाई लामा 31 मार्च, 1959 को भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Happy Birthday Dalai Lama: 'मेरा शरीर तिब्बती है लेकिन मन से मैं एक भारतीय हूं'। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को 64 साल पहले 31 मार्च, 1959 में तिब्बत से भागना पड़ा था। तब से वो भारत में ही रह रहे हैं।

6 जुलाई, 1935 को तिब्बतियों के धर्मगुरु और 14वें दलाई लामा का जन्मदिन है। वह 88 साल के हो जाएंगे। आइये उनके जन्मदिन के अवसर पर आपको बताते है दलाई लामा के उस सफर के बारे में जिसके कारण आज हम उन्हें इतना सम्मान देते है।

जब चीन ने तिब्बत पर किया हमला

1950 के दशक की शुरुआत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बत पर आक्रमण करना शुरू किया। 1951 में तिब्बत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद चीन का तिब्बत पर कब्जा हो गया था। 18 अप्रैल, 1959 को तिब्बत के 14वें दलाई लामा की घोषणा हुई, तिब्बत का चीन के साथ हुआ समझौता जबरन हुआ था। तिब्बत पर अवैध कब्जा होने के बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और आज भी उसका कब्जा तिब्बत पर बना हुआ है।

किसे कहते है दलाई लामा

दलाई लामा तिब्बत के सबसे बड़े धार्मिक नेता को कहा जाता है। लामा का मतलब गुरु होता है जो अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। तिब्बत के वर्तमान दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं, जो 1959 से ही भारत में रह रहे हैं।

13वें दलाई लामा का अवतार

6 जुलाई, 1935 को 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का जन्म पूर्वोत्तर तिब्बत के तकत्सेर में हुआ। माना जाता है कि 1937 में जब तिब्बत के धर्मगुरुओं ने दलाई लामा को देखा था तो उन्हें वे 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार नजर आए थे। धर्मगुरुओं ने दलाई लामा को धार्मिक शिक्षा दिलाई और महज 6 साल की उम्र में ही वे तिब्बत के 14वें दलाई लामा बन गए। दलाई लामा को शिक्षा में बौद्ध धर्म, मेडिटेशन, तर्क विज्ञान, संस्कृति, प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-साथ संगीत और ज्योतिष की शिक्षा दी गई। 15 साल की उम्र में उन्हें तिब्बत के राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता की भूमिका निभाने का अवसर मिला। अपनी आध्यात्मिक समझ को गहरा करते हुए उन्हें एक राष्ट्र पर शासन करने की चुनौतियों का भी सामना करना।

दलाई लामा को घड़ियों की मरम्मत करने का शौक

मेडिटेशन और गार्डनिंग के अलावा, दलाई लामा को घड़ियों की मरम्मत करने का काफी शौक है। कथित तौर पर घड़ियों में उनकी रुचि अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट द्वारा उन्हें दी गई रोलेक्स से आई थी। दलाई लामा को बचपन से ही तकनीकी सामान ठीक करने में रुचि रही है। उन्होंने कारों और एक पुराने फिल्म प्रोजेक्टर जैसी चीजों की भी मरम्मत की है।

दलाई लामा ने भारत में कब रखा कदम

17 मार्च, 1959 को दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही भारत आने के लिए निकल गए थे। हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए महज 15 दिन के अंदर ही वे भारत की सीमा पार कर चुके थे। 31 मार्च को वह भारतीय सीमा में दाखिल हुए और यहीं के होकर रह गए। इस कठिन यात्रा के दौरान दलाई लामा को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। चीन की नजरों से बचने के लिए उन्हें केवल रात को ही सफर करना पड़ा था।

भारत से चलाते है तिब्बत की निर्वासित सरकार

दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते है और यही से तिब्बत की निर्वासित सरकार को चलाते है। इसका चुनाव भी होता है, जिसके लिए दुनियाभर के तिब्बती शरणार्थी वोट करते हैं। वोट डालने के लिए शरणार्थी तिब्बतियों को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होता है।

तिब्बती लोग चुनाव के दौरान अपने सिकयोंग यानी राष्ट्रपति को चुनते हैं। भारत की तरह वहां की संसद का कार्यकाल 5 सालों का होता है। जानकारी के लिए बता दें कि चुनाव लड़ने और वोट डालने का अधिकार केवल उन तिब्बतियों को होता है जिनके पास ग्रीम बुक होती है। ये ग्रीन बुक 'सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन'द्वारा जारी की जाती है। ये एक तरह का पहचान पत्र होता है

1962 के युद्ध के पीछे चीन की नाराजगी, दलाई लामा थे कारण

आप ये सुनकर चौंक सकते है लेकिन, चीन ने 1962 में दलाई लामा और उनकी सरकार के भारत भाग जाने की घटना को युद्ध शुरू करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया था। 1959 के तिब्बती विद्रोह में भारत की कोई योजना नहीं थी लेकिन फिर भी चीन ने इसके लिए भारत को दोषी ठहराया।

चीन ने आरोप लगाया कि भारत ने योजना बनाई थी कि दलाई लामा तिब्बती क्षेत्र से कैसे भाग सकते हैं और दावा किया कि नई दिल्ली चीन विरोधी प्रचार और सीमा पर आक्रामकता में शामिल थी। मार्च 1959 में दलाई लामा के तिब्बत से भागने और भारत द्वारा शरण दिलाए जाने का चीन ने कड़ा विरोध किया था। इसी का बदला लेने के लिए 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला किया।

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