26 साल जेल में रहने का बाद साबित हुआ निर्दोष, मुआवजे में मिले 75000 रुपये

गुजरात के एक व्यक्ति ने अपनी जिंदगी के 26 साल एक ऐसे अपराध के आरोप में जेल मे बिता दिए जो कभी हुआ ही नहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 12 Sep 2018 03:33 PM (IST) Updated:Wed, 12 Sep 2018 03:36 PM (IST)
26 साल जेल में रहने का बाद साबित हुआ निर्दोष, मुआवजे में मिले 75000 रुपये
26 साल जेल में रहने का बाद साबित हुआ निर्दोष, मुआवजे में मिले 75000 रुपये

अहमदाबाद [जेएनएन]। उत्तर गुजरात के एक व्यक्ति ने अपनी जिंदगी के 26 साल एक ऐसे अपराध के आरोप में जेल मे बिता दिए जो कभी हुआ ही नहीं। हत्या के झूठे आरोप में पुलिस ने जयंती भाई राणा को फंसा दिया, मार-मारकर कबूल भी करा लिया लेकिन इसका भांडा उस वक्त फूट गया जब जिस व्यक्ति की हत्या के आरोप में उसे जेल में डाला गया वहीं कुछ साल बाद जिंदा मिल गया। मजे की बात है कि जयंती 26 साल बाद रिहा होकर भी अदालत के फैसले पर खुशी जता रहा है।

बनासकांठा के डीसा कस्बे की स्थानीय अदालत ने कथित मृतक रामसिंह यादव के जिंदा सामने आने के बाद उसकी हत्या के आरोप में जेल में बंद जयंती भाई राणा को रिहा कर दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जयंती राणा की जवानी के 26 साल जेल में बीत गए उसके बदले मुआवजा भी मिला तो 75 हजार रु का।

जयंती राणा की पत्नी लीला बेन बताती हैं कि उनके पति को करीब 26 साल पहले पुलिस ने पकड़ लिया था, रामसिंह यादव नामक व्यक्ति की हत्या का आरोप लगाते हुए पुलिस निरीक्षक एम जी धराजिया ने उन्हें मार-मारकर गुनाह कबूल भी करा लिया। तब से जयंती भाई जेल में बंद हैं।

बचाव पक्ष के वकील गंगाराम पोपट बताते हैं कि तीस साल पहले की घटना में अदालत ने आरोपी जयंती राणा को निर्दोष करार दिया। पुलिस ने उनके खिलाफ एक झूठा मुकदमा बनाकर फंसाया था। गौरतलब है कि पुलिस निरीक्षक ने जयंती से रुपए ऐंठने चाहे लेकिन पैसा नहीं देने पर उनको रामसिंह के केस में फंसा दिया।

गौरतलब है कि रामसिंह की हत्या हुई ही नहीं जब खुद रामसिंह अदालत पहुंचकर खुद के जिंदा होने तथा हत्या की कहानी झूठी होने की बात कही तो अदालत ने जयंती राणा को निर्दोष करार देने के साथ 75 हजार रुपए के मुआवजे का ऐलान करते हुए पुलिस निरीक्षक धराजिया व उनके साथी को कड़ी सजा का भी आदेश किया।

26 साल बाद जेल से रिहा होने के बाद जयंती राणा के मुंह से फिर भी यहीं निकला कि अदालत के आदेश का हम हर्ष व उत्साह के साथ सम्मान करते हैं, अब बाकी जिंदगी परिवार वालों के साथ बिताते हुए उसे संवारने का प्रयास करेंगे।  

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