टैक्सी, एग्रीगेटर्स को जारी परमिटों की होगी जांच

एक अनुमान के अनुसार अकेले दिल्ली में 35 हजार से ज्यादा प्राइवेट नंबर प्लेट वाली कारों, वैन व एसयूवी का स्कूल कैब के रूप में अवैध संचालन हो रहा है।

By Atul GuptaEdited By: Publish:Fri, 27 May 2016 02:04 AM (IST) Updated:Fri, 27 May 2016 08:47 AM (IST)
टैक्सी, एग्रीगेटर्स को जारी परमिटों की होगी जांच

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में चलने वाली काली-पीली टैक्सियों, रेडियो टैक्सियों तथा ओला और उबर जैसे एग्रीगेटर्स की मनमानी पर अंकुश लगाने की उठ रही मांग को देखते हुए सरकार ने इन्हें जारी परमिटों की जांच के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग सचिव संजय मित्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

समिति में केंद्रीय सड़क सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के संयुक्त सचिव (परिवहन) के अलावा दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना तथा मध्य प्रदेश सरकार के परिवहन सचिव सदस्य के रूप में जगह दी गई है। समिति इस बात का पता लगाएगी कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत विभिन्न राज्यों में टैक्सियों, रेडियो टैक्सियों और एग्रीगेटर्स को जारी किए गए परमिटों में नियमों का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। परमिट धारक निर्धारित नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं और क्या इनके लिए नए नियमों की आवश्यकता है। समिति को संभावित नए नियमों की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी भी दी गई है।

गौरतलब है कि दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में टैक्सी सेवाओं को लेकर सरकार को जनता की बड़ी शिकायतें प्राप्त हुई हैं। इन पर नियमों का उल्लंघन कर प्राइवेट कारों का उपयोग टैक्सी के रूप में करने, पेट्रोल की जगह डी़जल गाडि़यों का इस्तेमाल करने तथा बीच-बीच में अचानक किराया बढ़ाने के आरोप हैं। डी़जल टैक्सियों पर सुप्रीमकोर्ट की सख्ती के बाद पिछले दिनों दिल्ली में इन टैक्सी वालों ने बड़े पैमाने पर हड़ताल व धरना-प्रदर्शनों का आयोजन भी किया था, जिससे जनता को काफी परेशानी उठानी पड़ी थी।

एक अनुमान के अनुसार अकेले दिल्ली में 35 हजार से ज्यादा प्राइवेट नंबर प्लेट वाली कारों, वैन व एसयूवी का स्कूल कैब के रूप में अवैध संचालन हो रहा है। ये न केवल मोटर वाहन एक्ट, 1988 की धारा 93 का, बल्कि दिल्ली मोटर वाहन नियमावली 1993 के नियम 81 का भी सरेआम उल्लंघन करती हैं। इन डी़जल चालित अवैध टैक्सियों का प्रदूषण बढ़ाने में बड़ा योगदान है। परंतु मिलीभगत के कारण अधिकांश प्रवर्तन एजेंसियां इनकी ओर से आंखें मूंदे रहती हैं। यही नहीं, दिल्ली में तकरीबन 2500 टैवल फर्मो के अधीन 12500-15000 प्राइवेट कारें/वैन रोजाना 80 किलोमीटर अथवा आठ घंटे के हिसाब से सामान्य सवारियां ढोने का काम भी करती हैं और मनमाने किराये वसूलती हैं। इन्हें भी किसी भी नियम-कायदे की परवाह नहीं है।

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