बजट 2017: गरीबों को न्यूनतम आय की सौगात दे सकती है सरकार

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को संसद में 'आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17' पेश किया।

By Manish NegiEdited By: Publish:Tue, 31 Jan 2017 09:03 PM (IST) Updated:Wed, 01 Feb 2017 02:55 AM (IST)
बजट 2017: गरीबों को न्यूनतम आय की सौगात दे सकती है सरकार
बजट 2017: गरीबों को न्यूनतम आय की सौगात दे सकती है सरकार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। मोदी सरकार गरीबी खत्म करने के लिए अब तक का सबसे बड़ा कदम उठा सकती है। सरकार को अगर 'आर्थिक सर्वेक्षण' की एक सिफारिश रास आई तो गरीबों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने के लिए बुधवार को पेश होने वाले आम बजट में 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' की घोषणा हो सकती है। ऐसा होने पर सरकार हर महीने एक निश्चित राशि गरीबों के बैंक खाते में भेजेगी।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को संसद में 'आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17' पेश किया। इसमें 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' की जोरदार वकालत की गई है। महात्मा गांधी के विचार- 'हर आंख से प्रत्येक आंसू पोंछने' का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि बेसिक इनकम एक ऐसा शक्तिशाली विचार है जिस पर गंभीर विचार विमर्श करने का वक्त आ गया है।

मा‌र्क्सवादियों, बाजार के मसीहा, भौतिकवादियों, व्यवहारवािदयों से बेहतर ढंग से महात्मा गांधी ने इस बात को समझा। अब तक गरीबी दूर करने के लिए जिन कार्यक्रमों की शुरुआत की गई वे सफल नहीं रहे। गरीबी उन्मूलन के मौजूदा सरकारी कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार, त्रुटिपूर्ण आवंटन और गरीबों को वंचित रखने जैसी खामियां हैं जिसके चलते ही सरकार गरीबों को बेसिक इनकम देने पर विचार कर रही है। जिस समय देश आजाद हुआ था उस समय तीन चौथाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे थे जो 2011-12 में घटकर 22 फीसद रह गए लेकिन हर आंख से आंसू पोंछने के लिए अब भी काफी कुछ करना बाकी है।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगर हर साल प्रति व्यक्ति 12000 रुपये की बेसिक इनकम प्रदान की जाती है तो इससे देश में गरीबी बिल्कुल खत्म हो जाएगी। इस पर राष्ट्रीय जीडीपी के 4 से 5 फीसद के बराबर खर्च आएगा। फिलहाल सरकार मध्यम वर्ग को खाद्य, पेट्रोलियम और खाद सब्सिडी के रूप में जीडीपी के करीब 3 फीसद के बराबर खर्च करती है।

सर्वे में कहा गया है बेसिक इनकम के दायरे से आबादी के एक चौथाई धनाढ्य वर्ग को बाहर रखना होगा और इसे लागू करने के लिए जैम (जन धन के बैंक खाते, आधार और मोबाइल) की आवश्यकता होगी। साथ ही इस पर होने वाले खर्च को वहन करने के संबंध में केंद्र और राज्यों को विचार विमर्श करना होगा। समीक्षा में यह आकलन भी किया गया है कि अगर हर साल प्रति व्यक्ति को करीब 12 हजार रुपये बेसिक इनकम दी जाती है तो इससे गरीबी लगभग खत्म होकर मात्र 0.5 फीसद रह जाएगी।

बेसिक इनकम के फायदे गिनाते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इससे न सिर्फ गरीबी खत्म होगी बल्कि इससे गरीबों को लक्षित करते हुए बेहतर ढंग से कार्यक्रम चलाया जा सकेगा। इससे अचानक लगने वाले झटकों से भी बचा जा सकेगा। साथ ही इससे वित्तीय समावेशन बढ़ेगा और मनोवैज्ञानिक लाभ होंगे। समीक्षा में इस योजना को लागू करने में आने वाली चुनौतियों का जिक्र भी किया गया है। बेसिक इनकम योजना से सरकारी योजनाओं की लीकेज भी रुक सकेगी।

चुनौतियां अभी कम नहीं है अर्थव्यवस्था के लिए

फिनलैंड ने इस तरह की योजना शुरू की है और अन्य देश भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं। हालांकि स्विट्जरलैंड में पिछले साल मतदाताओं ने बेसिक इनकम के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

कार और एयरकंडीशन वालों को नहीं मिलेगी बेसिक इनकम

आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि सरकार को यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना लागू करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका लाभ गरीबों को ही मिले और अमीरों को इससे दूर रखा जाए। लिहाजा जिन लोंगों के पास कार या एयरकंडीशन हैं उन्हें इसका लाभ नहीं दिया जाए। साथ ही एक निश्चित राशि से अधिक धन बैंक में जमा होने पर भी इसका लाभ न मिले।

सर्वेक्षण यह भी कहता है कि जिस तरह सरकार ने रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए 'गिव इट अप' अभियान चलाया वैसे ही इसके लिए भी चलाया जाना चाहिए। साथ ही बेसिक इनकम के लाभार्थियों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि कहीं कोई धनी व्यक्ति तो इसका लाभ नहीं ले रहा है। जन धन, आधार और मोबाइल के माध्यम से ऐसा तंत्र तैयार किया जाए जिससे लाभार्थी नियमित तौर पर खुद को वैरीफाइ कर सके।

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