पैडमैन की मशीन से यहां की छात्राएं बना रहीं सेनिटरी पैड, जानें कब और कैसे आया आइडिया

ग्वालियर के सिंधिया कन्या विद्यालय में लगी इन मशीनों से एक पैड बनाने पर आता है 1.26 रुपये का खर्च...

By Srishti VermaEdited By: Publish:Thu, 08 Feb 2018 02:33 PM (IST) Updated:Thu, 08 Feb 2018 02:35 PM (IST)
पैडमैन की मशीन से यहां की छात्राएं बना रहीं सेनिटरी पैड, जानें कब और कैसे आया आइडिया
पैडमैन की मशीन से यहां की छात्राएं बना रहीं सेनिटरी पैड, जानें कब और कैसे आया आइडिया

ग्वालियर (नईदुनिया)। नौ फरवरी को रिलीज हो रही अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन इस समय काफी चर्चा में है। फिल्म में अरुणाचलम मुरुगनाथम नामक व्यक्ति की कहानी दिखाई गई है। उन्होंने गांव की महिलाओं को मेंस्ट्रूअल हाइजीन देने के लिए कम कीमत पर पैड बनाने की मशीन तैयार की थी। उनके द्वारा डिजाइन की गई आठ मशीन मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर के सिंधिया कन्या विद्यालय में भी लगी हैं। इस मशीन से छात्राएं 2012 से सेनिटरी पैड बना रही हैं। इसके साथ ही इन्हें शहर के स्लम एरिया, जागरा और सौसा जैसे गांवों में बांट रही हैं। इतना ही नहीं, इन गांवों में भी मशीन लगाई गई हैं, जिससे महिलाओं को कम कीमत में पैड्स मिल सके। एक पैड की कीमत एक रुपया 26 पैसे है। छात्राओं द्वारा यह काम ‘संकल्प’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत किया जा रहा है।

सर्वे के बाद आया ख्याल : 2011 में सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राओं ने प्राचार्य निशी मिश्रा के निर्देशन में 15 महीने तक एक सर्वे किया। इसमें पाया कि शहर की एक बड़ी अबादी स्लम एरिया में रहती है, जहां उन्हें बुनियादी समस्याओं के लिए भी काफी परेशान होना पड़ता है। खासतौर से महिलाओं को माहवारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे सैनिटरी पैड नहीं खरीद सकती हैं। छात्राओं ने पाया कि इन दिनों में महिलाएं पुराने कपड़े, पत्ते तक का इस्तेमाल भी करती हैं। इसी को देखते हुए प्राचार्य निशी मिश्रा ने उन तक सेनिटरी पैड पहुंचाने का फैसला किया। काफी खोजबीन के बाद उन्हें ए. मुरगनाथम द्वारा बनाई गई ऐसी मशीन के बारे में पता चला, जिसके माध्यम से काफी कम दर पर सेनिटरी पैड बनाए जा सकते हैं। इसके बाद छात्राओं ने इस मशीन को खरीदने के लिए तीन लाख रुपये का फंड जुटाया। सारा पैसा स्कूल में लगने वाली हाउस सेल, फनफेयर, एल्युमिनी और अन्य संगठनों द्वारा दिए गए योगदान से आया।

इस तरह बनते हैं पैड

इन मशीनों की खास बात यह है कि इन्हें कहीं भी ले जाया जा सकता है और आसानी से वहीं पैड बनाया जा सकता है। पैड बनाने के लिए सबसे पहले रॉ कॉटन शीट और बाइंडिंग कॉटन को मिक्सर जार में डालकर चलाया जाता है। उसके बाद 12 ग्राम के इस मैटेरियल को सांचे में डाल कर कंप्रेस किया जाता है। इसके बाद इसे एक टिशू क्लॉथ में सील किया जाता है। इस पर स्ट्रिप्स भी लगाई जाती है, जिससे पैड्स को इस्तेमाल करने में आसानी हो। अंत में पैड्स को यूवी चैंबर में स्टेरलाइज किया जाता है और आठ के पैक में इन्हें बांटने के लिए पैक किया जाता है।

स्कूल में लगी हैं आठ मशीनें

2012 में स्कूल में आठ मशीन लगाई गईं, जिनका आकार स्कूल की एक डेस्क के बराबर है। इस मशीन में बायोडिग्रेडेबल मैटेरियल जैसे बनाना फाइबर, रुई आदि से पैड बनाए जाते हैं। छात्राओं को इनसे पैड बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिसके बाद वे 250 पैड हर महीने बनाकर आसपास के गांव में देती हैं। छात्राओं को कुछ बैच में बांटा गया है, जो महिलाओं से मिलकर इन्हें इस्तेमाल करने की जानकारी भी देती हैं।

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