चिश्ती को पाक जाने की इजाजत

हत्या के एक मामले मे आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 82 वर्षीय पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती को भारत मे 20 साल बिताने के बाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तो के साथ थोड़े समय के लिए पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी।

By Edited By: Publish:Thu, 10 May 2012 12:47 PM (IST) Updated:Thu, 10 May 2012 03:51 PM (IST)
चिश्ती को पाक जाने की इजाजत

नई दिल्ली। हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 82 वर्षीय पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती को भारत में 20 साल बिताने के बाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तो के साथ थोड़े समय के लिए पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी।

न्यायाधीश पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने चिश्ती को पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग में अपना पासपोर्ट जमा करने और दो सप्ताह के अंदर सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में पांच लाख रुपये जमा करने का आदेश भी दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि चिश्ती एक नवंबर तक भारत लौट आएं क्योंकि हत्या के मामले में उनको दोषी ठहराए जाने के निर्णय के खिलाफ दायर उनकी याचिका पर सुनवाई में तेजी लाई जाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि उनकी अपील पर सुनवाई 20 नवंबर से शुरू की जाऐगी।

इससे पहले, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल मोहन पराशरन ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत में चिश्ती के परिचित लोग उनकी तरफ से मुचलका भरें ताकि अपील पर सुनवाई के दौरान पाकिस्तानी वैज्ञानिक की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके। पीठ ने हालांकि ऐसी कोई शर्त लगाने से इन्कार कर दिया। पीठ ने कहा कि चिश्ती को छोड़ा जाना उन पर लगाई गई दो शर्तो को पूरा करने पर निर्भर करता है।

इससे पहले गत चार मई को सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान जाने की अनुमति देने के चिश्ती के आग्रह पर सुनवाई के लिए राजी हो गया था और इस बारे में केंद्र से उसका पक्ष पेश करने को कहा था।

बीस साल पुराने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद राजस्थान की अजमेर जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे चिश्ती को सुप्रीम कोर्ट ने गत नौ अप्रैल को जमानत दे दी थी। शीर्ष अदालत ने उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी थी, लेकिन अगले आदेश तक अजमेर नहीं छोड़ने को कहा था।

इससे पूर्व केंद्र ने चिश्ती को कुछ दिन के लिए पाकिस्तान जाने की अनुमति देने का विरोध करते हुए कहा था कि हो सकता है कि वह भारत न लौटें। अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ने दलील दी थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसा कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं है जिसके जरिए जमानत पर गए अभियुक्त की वापसी सुनिश्चित की जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि कहा था कि चिश्ती की विशेष स्थिति को देखते हुए वह उनके आग्रह पर विचार कर सकता है। पीठ ने कहा था कि चिश्ती एक विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और उनकी उम्र भी 82 साल की हो गई है। उनका कोई पहले का आपराधिक रिकार्ड भी नहीं है और यह द्विपक्षीय संबंधों से जुड़ा मामला है।

चिश्ती की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता यूयू ललित ने आग्रह किया था कि विशेष मामला मानते हुए उनके मुवक्किल को पाकिस्तान जाने की अनुमति दी जाए क्योंकि वह बुढ़ापे से जुड़ी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और पिछले बीस साल से अजमेर में ही हैं और अपनी सजा भी पूरी कर चुके हैं।

चिश्ती 1992 में अपनी बीमार मां को देखने राजस्थान आए थे और उसी दौरान एक झगड़े में पड़ गए। उसमें एक व्यक्ति मारा गया। इसी मामले में उन्हें सजा हुई थी।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखभाल करने वाले परिवार में ही चिश्ती का जन्म हुआ था। 1947 में भारत के बंटवारे के वक्त पढ़ाई कर रहे चिश्ती पाकिस्तान चले गए थे।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने चिश्ती को मानवीय आधार पर जमानत देने के साथ ही उन्हें कराची जाने देने की याचिका पर सुनवाई करना स्वीकार किया था, हालांकि उस वक्त न्यायालय ने उनसे इस मामले को लेकर अलग से आवेदन करने के लिए कहा था।

उस वक्त चिश्ती की ओर से उन्हें दिल्ली में ही रहने देने की गुहार लगाई गई थी। इस पर राजस्थान की सरकार ने विरोध किया और कहा कि वीजा जारी किए जाने की शर्त के मुताबिक वह सिर्फ अजमेर और आसपास रह सकते हैं। इस पर न्यायालय ने चिश्ती से कहा कि अगले आदेश तक वह अजमेर से बाहर नहीं जाएं।

अठारह साल तक चले मुकदमे में अजमेर की सत्र अदालत ने चिश्ती को हत्या का दोषी पाया था और उन्हें गत वर्ष 31 जनवरी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

सुनवाई के दौरान भी चिश्ती को जमानत दी गई थी लेकिन उनसे अजमेर से बाहर नहीं जाने को कहा गया था। मामले में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया था।

मुकदमे की सुनवाई के दौरान चिश्ती अपने भाई के पोल्ट्री फार्म स्थित आवास में रहा करते थे। उन्हें दिल की बीमारी, सुनने में दिक्कत और अन्य बीमारियां हैं।

उनका मामला उस समय प्रकाश में आया था जब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि पाकिस्तानी नागरिक को मानवीय आधार पर माफ कर देना चाहिए।

कराची मेडिकल कालेज में वायरोलाजी के प्रमुख प्रोफेसर चिश्ती ने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की थी।

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