हल्के में न लें डायबिटीज, स्टेम सेल का मोह छोड़ जीवनशैली में परिवर्तन से करें नियंत्रित
अस्वस्थ जीवनशैली के कारण डायबिटीज तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। कुछ लोग इस तरह के दावे कर रहे हैं कि स्टेम सेल के जरिए इसका इलाज संभव है। जानें- क्या है सच्चाई...
[रणविजय सिंह]। डायबिटीज को हल्के में लेने की गलती न करें। यह लिवर, हार्ट अटैक, किडनी फेल्योर, ब्रेन स्ट्रोक जैसी कई घातक बीमारियों का कारण बन सकती है। इन दिनों स्टेम सेल से इसके इलाज के दावे किए जा रहे हैं, जबकि मधुमेह के विशेषज्ञ डॉक्टर कहते हैं कि स्टेम सेल या ऐसे दावों पर मरीज विश्वास न करें।
जीवनशैली में सुधार व बेहतर खानपान अपनाकर ही इस बीमारी से काफी हद तक बचाव संभव है। दिक्कत यह है कि लोग अक्सर इसको गंभीरता से नहीं लेते। शुरुआत में ही जीवनशैली में सुधार कर लिया जाए तो व्यायाम, पौष्टिक भोजन व तनावमुक्त जीवन इसे नियंत्रित रख सकते हैं।
स्टेम सेल से इलाज का नहीं प्रमाण
अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिससे यह साबित हो कि स्टेम सेल से मधुमेह ठीक हो सकता है। स्टेम सेल से मधुमेह टाइप-1 के इलाज को लेकर अभी शोध चल रहा है। आमतौर पर मधुमेह टाइप-1 बच्चों में होता है। ज्यादातर लोग मधुमेह टाइप-2 बीमारी से पीड़ित हैं। स्टेम सेल से इसका इलाज दुनिया के किसी भी देश में अभी तक उपलब्ध नहीं है।
दो दशक से इस पर शोध कार्य जरूर जारी हैं। स्टेम सेल से मधुमेह के इलाज के नाम पर लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी कोई लाभ नहीं होने वाला है। केंद्र सरकार ने स्टेम सेल को लेकर 2018 में कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं, जिसमें कहा गया है कि पहले इसका क्लीनिकल ट्रायल होना चाहिए।
इलाज के कई विकल्प हैं मौजूद
मधुमेह के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण है स्वास्थ्यकर जीवनशैली। इसके अलावा, हर साल कोई न कोई नई दवा उपलब्ध होती है। पिछले 10 सालों में इसका इलाज बिल्कुल बदल गया है।
खानपान भी बन रहा वजह
लोगों की शारीरिक गतिविधियां कम हो रही हैं। लोगों का खानपान भी बदल गया है। अब फास्ट फूड्स व सॉफ्ट ड्रिंक्स का चलन बढ़ गया है। ये पौष्टिक नहीं हैं। विदेशी फास्ट फूड्स ही नहीं, स्वदेशी फास्ट फूड्स भी उतने ही नुकसानदेह हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि फास्ट फूड्स मैदा व रिफाइंड ऑयल के इस्तेमाल से बने होते हैं। इससे भी मधुमेह हो रहा है।
तब जरूरी है दवा
बच्चों में टाइप-1 मधुमेह का कारण अभी स्पष्ट नहीं है। इसका जीवनशैली से संबंध नहीं है। मधुमेह टाइप-2 अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली और मोटापे के कारण हो सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसका लक्षण पता नहीं चलता। एचबीए1सी टेस्ट 6.5 से 7 तक हो तो ज्यादातर मरीजों को जीवनशैली में सुधार करने की सलाह दी जाती है। हालांकि यह मरीज पर निर्भर करता है। यदि मरीज अपनी जीवनशैली के प्रति लापरवाह हो और एचबीए1सी 6.6 भी आए तो दवा देने से मना नहीं करते। वैसे एचबीए1सी 7 के ऊपर हो तो दवा देना आवश्यक हो जाता है।
इंसुलिन का डर बेवजह
मधुमेह से पीड़ित मरीजों पर एक समय बाद ओरल दवाएं ज्यादा असर नहीं करतीं। ऐसी स्थिति में इंसुलिन देनी पड़ती है। खासतौर पर यदि एचबीए1सी 10 के ऊपर हो तो इंसुलिन देना जरूरी है। इसके अलावा, गर्भवती महिला को भी जरूरत पड़ने पर इंसुलिन देनी पड़ती है। यह गलत धारणा है कि एक बार इंसुलिन शुरू होने के बाद कभी यह बंद नहीं होती। हर मामले में ऐसा नहीं होता।
इंसुलिन पंप से बच्चों का इलाज
बाजार में नए तरह के इंसुलिन पंप उपलब्ध हो चुके हैं। इंसुलिन पंप का इस्तेमाल बच्चों (मधुमेह टाइप-1) के इलाज में काफी कारगर है। हालांकि अभी यह तकनीक बहुत महंगी है। इंसुलिन पंप एक छोटा डिवाइस है, जिसे बेल्ट में लगा दिया जाता है। उसमें एक तार होता है, जिससे इंसुलिन लगातार शरीर में पहुंचती रहती है।
40 साल की उम्र वाले 15 से 20 फीसदी लोग और 60 की उम्र वाले करीब एक तिहाई लोग मधुमेह से पीड़ित हैं दिल्ली में। एक देशव्यापी अध्ययन में भी देखा गया है कि जहां शहरीकरण तेजी से हुआ है, वहां तो मधुमेह की बीमारी तेजी से बढ़ी ही है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह पांव पसार रही है। स्वास्थ्यकर जीवनशैली की उपेक्षा इसका मुख्य कारक पाया गया।
डॉ.अंबरीश मित्तल
(चेयरमैन- एंडोक्राइनोलॉजी डिपार्टमेंट), मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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