आतंकवाद से निबटने में आड़े आ रहा है कोर्ट का आदेश

सरकार का कहना है कि फैसला देते समय कोर्ट ने अफस्पा और गैरकानूनी गतिविधि रोक कानूनों और जमीनी हकीकत पर गौर नहीं किया।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Wed, 12 Apr 2017 11:36 PM (IST) Updated:Thu, 13 Apr 2017 03:11 AM (IST)
आतंकवाद से निबटने में आड़े आ रहा है कोर्ट का आदेश
आतंकवाद से निबटने में आड़े आ रहा है कोर्ट का आदेश

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर कहा है कि कोर्ट का आदेश आतंकवाद से निबटने में आड़े आ रहा है। कोर्ट मणिपुर में आतंकियों के खिलाफ सेना के मुठभेड़ मामले में दिये गये अपने गत वर्ष 8 जुलाई के फैसले पर फिर विचार करे।

बुधवार को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से क्यूरेटिव याचिका पर खुली अदालत में जल्द सुनवाई किये जाने की मांग की। कोर्ट ने उन्हें याचिका दाखिल होने पर विचार करने का भरोसा दिलाया। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में सेना के मुठभेड़ का मुद्दा उठाने वाली याचिका पर फैसला देते हुए गत 8 जुलाई के आदेश में कहा था कि सेना जरूरत से ज्यादा बल का इस्तेमाल नहीं कर सकती। आत्मरक्षा के लिए न्यूनतम बल का इस्तेमाल होना चाहिए। कोर्ट ने मुठभेड़ों की जांच के आदेश दिये थे। केंद्र की पुनर्विचार याचिका खारिज हो चुकी है और अब सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है।

यह भी पढ़ें : 'पाइका क्रांति' की यादों के जरिए भाजपा की ओडिशा में पैठ बनाने की कोशिश

बुधवार को रोहतगी ने कहा कि फैसले का असर आ‌र्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट और गैर कानूनी गतिविधि रोक अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों में सेना को मिले संरक्षण पर भी पड़ रहा है। उन्होंने कोर्ट से मामले पर खुली अदालत मे जल्दी सुनवाई करने का आग्रह किया। सरकार ने अपनी क्यूरेटिव याचिका में कहा है कि कोर्ट ने आदेश देते समय सेना द्वारा आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों पर विचार नहीं किया। आदेश का सीधा प्रभाव सेना के उग्रवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों पर पड़ रहा है।

यह भी पढ़ें : 24 लाख के पुराने टैंक में मिला 16 करोड़ का सोना

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मणिपुर में सेना जरूरत से ज्यादा बल का प्रयोग नहीं कर सकती। लेकिन इस आदेश के देश के उग्रवाद प्रभावित इलाकों में दूरगामी प्रभाव हो रहे हैं। सरकार का कहना है कि फैसला देते समय कोर्ट ने अफस्पा और गैरकानूनी गतिविधि रोक कानूनों और जमीनी हकीकत पर गौर नहीं किया। भारतीय सेना को ऐसी परिस्थितियों में तत्काल फैसला लेने का अधिकार देना होगा। उन फैसलों की बाद में हत्या के सामान्य मामलों की अपील की तरह आलोचना नहीं होनी चाहिए। मिलेट्री आपरेशन की अन्य मामलों की तरह न्यायिक समीक्षा नहीं होनी चाहिए। सरकार का कहना है कि अभियान के दौरान सेना द्वारा की गई कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। ये भी कहा है कि पिछले दो तीन दशकों में जो कार्रवाइयां हुई हैं उस बारे में अब एक्शन लेने से सेना का मनोबल टूटेगा।

यहां तक कि इसका सर्विग और सेवानिवृत हो चुके सैन्य अधिकारियों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जिन्होंने सारा जीवन देश को सुरक्षित और अखंड बनाए रखने में लगा दिया। सेना पर फर्जी मुठभेड़ के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर विचार करते समय कोर्ट को सेना का अशांत घोषित क्षेत्र में अफस्पा के तहत मणिपुर मे की गई कार्रवाई और परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। सेना को देश के विभिन्न हिस्सों में उग्रवाद से निबटने के लिए शक्तियां दी गई हैं। घरेलू और विदेशी बहुत से ऐसे संगठन हैं जो देश को कमजोर करना चाहते हैं जबकि सेना देश की एकता और अखंडता की रक्षा करती है।

chat bot
आपका साथी