सावधान- कहीं आपका भी तो नहीं बदल गया गुड मॉर्निंग मैसेज भेजने का समय, ये हैं गड़बड़ी के संकेत

यदि आप वर्षों से एक निश्चित समय पर सुबह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को सोशल मीडिया के जरिये गुड मॉर्निंग का संदेश भेजते रहे हैं लेकिन इस समय में बदलाव आ रहा है तो यह आपके लिए खतरे का संकेत हो सकता है।

By Tilak RajEdited By: Publish:Mon, 21 Sep 2020 11:37 PM (IST) Updated:Mon, 21 Sep 2020 11:37 PM (IST)
सावधान- कहीं आपका भी तो नहीं बदल गया गुड मॉर्निंग मैसेज भेजने का समय, ये हैं गड़बड़ी के संकेत
विशेषज्ञों की राय - सोने और जागने का समय सही रखें।

रायपुर, संदीप तिवारी। कोरोना वायरस ने पिछले कुछ महीनों में हमारी जिंदगी में काफी कुछ बदल दिया है। इनमें छोटे-छोटे से लेकर कई बड़े बदलाव भी शामिल हैं। यदि आप वर्षों से एक निश्चित समय पर सुबह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को सोशल मीडिया के जरिये गुड मॉर्निंग का संदेश भेजते रहे हैं, लेकिन इस समय में बदलाव आ रहा है, तो यह आपके लिए खतरे का संकेत हो सकता है। संभव है कि आपकी जैविक घड़ी में बदलाव हो रहा हो। इससे आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो सकती है। साथ की बुद्धिमत्ता में कमी, मधुमेह, कार्यप्रणाली में सुस्ती, उच्च रक्तचाप और दिन में नींद आने जैसे विकार के भी आप शिकार हो सकते हैं। यह कहना है पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर की जैविक विज्ञान अध्ययनशाला के प्रोफेसर डॉ. एके पति का।

डॉ. पति और उनके शोधार्थी राकेश कुमार स्वाइन ने आदतन मोबाइल पर नियमित गुड मॉर्निंग करने वालों की सरकेडियन रिदम यानी जैविक घड़ी का अध्ययन किया। यह अध्ययन रिपोर्ट हाल ही में बायोलॉजिकल रिदम रिसर्च यूनाइटेड किंगडम के टेलर एंड फ्रांसिस शोभपत्र में प्रकाशित हुई है। इस शोध के माध्यम से अध्ययनकर्ताओं ने मोबाइल और संचार कंपनियों को सुझाव दिया है कि वे मोबाइल के लिए ऐसा एप विकसित करें, जो लोगों को उनकी जैविक घड़ी में हो रहे बदलाव से अलर्ट कर सके।

नौ महीने लगातार की निगरानी

अध्ययनकर्ताओं ने पांच सौ से अधिक ऐसे लोगों की निगरानी की, जोकि सुबह नियमित समय पर गुड मॉर्निंग मैसेज भेजते थे। इनमें से आठ ऐसे लोगों का चयन किया जोकि अनुशासित होकर तीन महीने तक लगातार एक निश्चित समय पर गुड मॉर्निंग मैसेज भेजते रहे। फिर इनकी नौ महीने तक निगरानी की। कुछ लोगों में मैसेज भेजने के समय में 40 से 60 मिनट का बदलाव आया। जब ऐसे लोगों की दिनचर्या को समझा गया तो पाया गया कि उसमें बदलाव के कारण ऐसा हुआ। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, 40 से 60 मिनट का यह समय जैविक घड़ी में बदलाव के संकेत हो सकता है। ऐसे लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।

विशेषज्ञों ने ये दिए सुझाव

- सोने और जागने का समय सही रखें।

- खाने के समय की नियमितता बरकरार रखें।

- सोने से पहले एक घंटे तक मोबाइल से दूर रहें।

क्या होती है जैविक घड़ी

जीवधारियों के शरीर में समय निर्धारण की एक आंतरिक व्यवस्था होती है, जिसे हम जैविक घड़ी या (बायोलॉजिकल क्लॉक) कहते हैं। मनुष्य में जैविक घड़ी का मूल स्थान हमारा मस्तिष्क है। हमारे मस्तिष्क में करोड़ों कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें हम न्यूरॉन कहते हैं। ये कोशिकाएं पूरे शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित एवं निर्धारित करती हैं। जिस तरह से समय बताने वाली घड़ी होती है, उसी तरह हमारे शरीर के अंग भी प्रकृति के अनुसार, अपने आपको ढाल लेते हैं। मसलन, अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन रात नौ बजे सोता है, तो नौ बजे के पहले ही शरीर नींद का संकेत देने लगता है, क्योंकि शरीर ने नौ बजे के समय को सोने के लिए तय कर लिया है। इसे ही जैविक घड़ी कहते हैं।

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