हिंसा के बजाय बौद्धिक विचार-विमर्श के जरिए सुलझाए जाएं जटिल मुद्दे : वेंकैया नायडू
सीएए एनआरसी और एनपीआर को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंसात्मक घटनाओं का जिक्र किए बगैर वेंकैया नायडू ने कहा कि लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वर्तमान हालात में ज्वलंत मुद्दों को संविधान के दायरे में रहते हुए बौद्धिक विचार-विमर्श के माध्यम से सुलझाए जाने की जरूरत है। इसके लिए अरुण जेटली जैसा चरित्र, प्रतिभा और क्षमता चाहिए जिनमें सबको साथ लेकर जटिल विषयों को भी आसानी से सुलझा लेने की अद्भुत क्षमता थी। ये बात उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने स्वर्गीय जेटली पर लिखी गई पुस्तक 'दि रेनैसांस मैन : दि मैनी फेसेट्स ऑफ अरुण जेटली' का लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के साथ लोकार्पण करते हुए कही।
सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंसात्मक घटनाओं का जिक्र किए बगैर नायडू ने कहा कि लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। ज्वलंत मुद्दों को संसद, विधानसभाओं तथा जनता के बीच चर्चाओं के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए। जटिल विषयों पर आपस में चर्चा करें, जनता के बीच जाकर बहस करें, और फिर निर्णय जनता पर छोड़ दें, यही वक्त का तकाजा है। जाति, धर्म को हावी होने देने के बजाय हमें संवैधानिक तरीके से समस्याओं को सुलझाने की आदत डालनी चाहिए। यही अरुण जेटली को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जेटली के जन्म दिवस पर उनकी खूबियों को याद करते हुए वेंकैया ने कहा संसद में जब जब जटिल मुद्दे आएंगे, तब हमें अरुण जेटली की याद आएगी। वे कठिन से कठिन मुद्दों पर भी इतने प्यार भरे तरीके से अपनी बात रखते थे कि सभी को सहमत होना पड़ता था। संसद के सेंट्रल हाल में बड़ा जमावड़ा होता था तो सभी समझ जाते थे कि जेटली जी बैठे हैं। पत्रकार भी उन्हें बहुत पसंद करते थे क्योंकि वे खबरों के स्रोत थे।
वे असाधारण प्रतिभा के धनी ऐसे राजनेता थे जो सभी के लिए सहज सुलभ थे और अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लेते थे। पहली बार मिलने वाला भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। छोटा, बड़ा जो उनके पास गया उन्होंने हमेशा सबकी मदद की। उनमें कुशल वक्ता, असाधारण संवादकर्ता तथा आदर्श सांसद के सभी गुण मौजूद थे। वे देश से प्यार करने वाले ईमानदार नेता थे और भ्रष्टाचार से उन्हें सख्त नफरत थी। नई पीढ़ी को जेटली से सीखने की जरूरत है।
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नायडू ने जेटली से जुड़ी कुछ व्यक्तिगत यादें भी साझा कीं। उन्होंने कहा हम दोनो छात्र यूनियन लीडर थे। उनसे मेरी पहली मुलाकात जेपी आंदोलन के समय में हुई थी। जो बाद में अटल और फिर मोदी सरकार में मंत्री और राज्यसभा में सभापति बनने पर भी जारी रही। लगभग रोजाना ही विभिन्न मुद्दों पर उनसे चर्चा होती थी। वे खाने-खिलाने के बेहद शौकीन थे और ऐसी जगहों पर बैठकें आयोजित कराना पसंद करते थे जहां बढि़या रेस्त्रां हों। ताकि मीटिंग और ईटिंग साथ-साथ हो सके। अरुण जेटली के व्यक्तित्व के प्रभाव से मेरे बेटे हर्षवर्द्धन और बेटी दीपा वेंकट भी अछूते नहीं रहे और इसी का नतीजा है कि दोनो ने उनकी यादों को इस पुस्तक के रूप में संजोया है। कार्यक्रम में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी अरुण जेटली के साथ बीते अपने अनुभवों को साझा किया।