Climate Change: मौसम के गणित को बिगाड़ रहा जलवायु परिवर्तन; दुनियाभर की एजेंसियों के लिए पूर्वानुमान लगाना हुआ कठिन

Climate Change Crises जलवायु परिवर्तन ने दुनिया के सामने मुश्किल चुनौतियां खड़ी की हैं। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने मौसम संबंधी गंभीर घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की क्षमता को प्रभावित किया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 07 Aug 2022 07:39 PM (IST) Updated:Sun, 07 Aug 2022 07:39 PM (IST)
Climate Change: मौसम के गणित को बिगाड़ रहा जलवायु परिवर्तन; दुनियाभर की एजेंसियों के लिए पूर्वानुमान लगाना हुआ कठिन
Climate Change Crisis: जलवायु परिवर्तन ने मौसम पूर्वानुमान एजेंसियों की क्षमता को प्रभावित किया है।

नई दिल्ली, एजेंसी। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम संबंधी गंभीर घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की विश्वभर की पूर्वानुमान एजेंसियों की क्षमता को प्रभावित किया है। लिहाजा, आइएमडी इस चुनौती से निपटने के लिए और अधिक रडार स्थापित कर रहा है और अपनी उच्च प्रदर्शन वाली गणना प्रणाली (हाई परफार्मेस कंप्यूटिंग सिस्टम) को अपडेट कर रहा है।

एक साक्षात्कार में भारत में मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर महापात्र ने कहा, हमारे पास 1901 से लेकर अब तक का मानसूनी वर्षा का डिजिटल डाटा उपलब्ध है। इसके तहत उत्तर, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा में कमी, जबकि पश्चिम राजस्थान जैसे पश्चिम के कुछ क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि हुई है। महापात्र ने कहा, पूरे देश पर गौर करें तो मानसूनी वर्षा का कोई स्पष्ट रुझान नजर नहीं आता। मानसून अनियमित है और इसमें व्यापक स्तर पर उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।

समाचार एजेसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने 27 जुलाई को संसद को बताया था कि उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मेघालय और नगालैंड में बीते 30 वषरें (1989 से 2018 तक) में दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली वर्षा में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। इन पांच राज्यों और अरुणाचल प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में वार्षिक औसत वर्षा में भी उल्लेखनीय कमी आई है।

महापात्र ने कहा कि हालांकि 1970 से लेकर अब तक के वर्षा के दैनिक डाटा के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में भारी वर्षा के दिनों में वृद्धि हुई है, जबकि हल्की या मध्यम स्तर की वर्षा के दिनों में कमी आई है। इसका मतलब है कि अगर वर्षा नहीं हो रही है तो एकदम नहीं हो रही है और अगर हो रही है तो बहुत ज्यादा पानी बरस रहा है।

अध्ययनों ने साबित किया है कि भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि और हल्की वर्षा के दिनों में कमी जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। जलवायु परिवर्तन से वातावरण में अस्थिरता बढ़ गई है जिससे गरज-चमक, बिजली और भारी वर्षा की गतिविधियां बढ़ गई हैं। अरब सागर में चक्रवातों की तीव्रता भी बढ़ती जा रही है।

महापात्र ने बताया कि प्रभाव आधारित पूर्वानुमान में सुधार होगा और यह 2025 तक अधिक सटीक बन जाएगा। आगामी वर्षों में विभाग पंचायत स्तर और शहरों के किसी खास क्षेत्र के पूर्वानुमान भी उपलब्ध करा पाएगा। उन्होंने कहा कि विभाग पूर्वानुमान में सुधार के लिए अपने रडार, स्वचालित मौसम केंद्रों, वर्षामापियों और सेटेलाइट की संख्या बढ़ाकर अपने अवलोकन तंत्र को मजबूत कर रहा है।

उन्होंने बताया, 'हमने उत्तर-पश्चिम हिमालय में छह रडार स्थापित किए हैं और इस साल चार और रडार स्थापित किए जाएंगे। पूर्वोत्तर हिमालय क्षेत्र के लिए आठ रडार की खरीद प्रक्रिया जारी है। देश के शेष हिस्सों में कुछ खाली इलाके हैं जिन्हें 11 रडार से भरा जाएगा। 2025 तक रडार की संख्या वर्तमान 34 से बढ़कर 67 हो जाएगी।'

महापात्र ने बताया कि वर्तमान में विभाग के वेदर माडलिंग सिस्टम का रेजोल्यूशन 12 किलोमीटर है और इसे छह किलोमीटर करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्ष में अवलोकन तंत्र में सुधार से गंभीर मौसम की घटनाओं के पूर्वानुमान की सटीकता में लगभग 30-40 प्रतिशत का सुधार हुआ है। 

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