'मोदी' नहीं 'प्रभु' का है यह रेल बजट

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के पहले रेल बजट में कहीं भी मोदी सरकार का आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा है। शायद दिल्ली चुनावों में मिली हार का ये नतीजा है कि केंद्र सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। विशेषज्ञों को इस रेल बजट से जितनी उम्मीदें थी, वह पूरी

By Sachin kEdited By: Publish:Thu, 26 Feb 2015 04:17 PM (IST) Updated:Thu, 26 Feb 2015 05:25 PM (IST)
'मोदी' नहीं 'प्रभु' का है यह रेल बजट

शशि भूषण कुमार, नई दिल्ली। रेल मंत्री सुरेश प्रभु के पहले रेल बजट में कहीं भी मोदी सरकार का आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा है। शायद दिल्ली चुनाव में मिली हार का ये नतीजा है कि केंद्र सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। विशेषज्ञों को इस रेल बजट से जितनी उम्मीदें थी, वह पूरी नहीं हो पाई हैं। वहीं, आम लोगों की उम्मीदों पर भी यह बजट खरा नहीं उतर पाया है।

मोदी के विजन के मुताबिक, रेलवे के कायाकल्प के लिए जिन कदमों को उठाने की जरूरत थी। उसमें सबसे प्रमुख है रेलवे का आधुनिकीकरण। अब आधुनिकीकरण के लिए सबसे जरुरी है रेल की पटरियों का अपग्रेडेसन, सिगनलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण व नए रूटों का निर्माण। लेकिन इस बजट में इनमें से एक के लिए भी कोई ठोस घोषणा नहीं की गई है।

दूसरी तरफ, रेलवे को घाटे से निकालने की भी कोई योजना इस बजट में नही दिखाई देती। सरकार किसी ठोस निवेश की बजाए पीपीपी मॉडल की बात कर रही है। लेकिन निजी कंपनियां तो वहीं अपना पैसा लगाएगी, जहां उन्हें मुनाफे की संभावना दिखती हो। सरकार योजनागत खर्च को बढा़ने की बात कर रही है, लेकिन इसके लिए वह बाजार पर निर्भर है। यानि इस दिशा में कुछ ठोस होने की संभावना कम ही दिख रही है।

रेलवे स्टेशन और ट्रेनों सफाई के लिए नया विभाग का गठन करने की घोषणा की गई है। लेकिन इससे क्या बदल जाएगा। इसकी बजाए वर्तमान विभाग के कायाकल्प व मॉनिटरिंग पर जोर दिया जाता तो नतीजा जल्दी सामने आता। महज विभाग का गठन होने से ही कामकाज बेहतर हो जाएगा, ऐसा संभव नहीं है। जब तक पारदर्शिता और जिम्मेदारी तय नहीं की जाएगी और दोषियों को सजा देने की नजीर कायम नहीं की जाएगी, तब तक सुधार संभव नहीं है।

सरकार ने रेलवे रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलने की बात की है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय चेयर फ़ॉर रेलवे टेक्नोलॉज़ी की घोषणा भी की गई है। जो अच्छा कदम है, लेकिन रेलवे में अल्पकालिक निवेश व सुधार की जरूरत कहीं ज्यादा है। सरकार ने शिकायतों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। लेकिन शिकायतों का समाधान किस प्रकार होगा। क्या एक्शन लिया जाएगा और किसकी जिम्मेदारी होगी यह अभी साफ नहीं है।

जहां तक रेलवे में भोजन की क्वालिटी सुधारने की बात है तो वो तभी सुधरेगी, जब ठेकेदारों के बीत प्रतिस्पर्धा हो। आईआरसीटीसी के बेवसाइट से आनलाइन खाना मंगवाने की बात कही गई है। लेकिन खराब क्वालिटी का खाना भेजने पर यात्रियों के पास क्या विकल्प होगा। यात्री उसे लौटा सकें यह व्यवस्था भी करनी चाहिए।

रेलवे में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी लगाने पर जोर दिया गया है। लेकिन क्या सीसीटीवी लगाने से ही महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी। इसके लिए कोई ठोस योजना दिखाई नहीं देती। रेलवे सुरक्षा बल की संख्या बढा़ने व उनकी कार्यप्रणाली सुधार की ज्यादा जरूरत है। रेलवे सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार व रेलवे विभाग में तालमेल की कमी को दूर करने के लिए रेल मंत्री ने कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि रेलवे हेल्प लाइन नंबर व महिलाओं के लिए विशेष हेल्प लाइन नंबर एक स्वागतयोग्य कदम है।

रेल मंत्री ने निवेश दोगुना करने की बात की है, लेकिन आय बढ़ाने का कोई ठोस खाका नहीं पेश किया है। रेलवे को सबसे ज्यादा आमदनी माल ढुलाई से होती है। लेकिन मालगाड़ी को चलाने के लिए पटरियों की कमी है। पिछली सरकार ने डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनाने की बात की थी। उस काम को आगे बढा़ने की कोई योजना नहीं दिखी है।

पहली बार रेल मंत्री ने अरुणाचल व मेघालय को सीधे राजधानी से जोड़ने की घोषणा की है। यह भाजपा सरकार का क्रांतिकारी कदम है। यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। हालांकि रेल मंत्री का भाषण तो प्रेरणा से भरपूर था और बजट में काफी अच्छी-अच्छी बाते कहीं गई। लेकिन कोई ठोस तस्वीर नहीं दिखती कि इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा।

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