क्षेत्रीय दलों के लिए सिरदर्द बने भाजपा के टीवी विज्ञापन

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा का टीवी विज्ञापन विरोधी दलों के लिए भले ही सिरदर्द बन गया है। युवा पीढ़ी खासकर किशोरों-बच्चों का विज्ञापन की एक पंक्ति 'कुठे नेउन ठेवलाय महाराष्ट्र माझा' (मेरे महाराष्ट्र को कहां ला छोड़ा) खूब पसंद आ रहा है। राज्य में यह पंक्ति वैसे ही लोकप्रिय हो गई है जैसा लोस चुनाव के दौरान

By Sanjay BhardwajEdited By: Publish:Tue, 07 Oct 2014 08:25 PM (IST) Updated:Tue, 07 Oct 2014 08:25 PM (IST)
क्षेत्रीय दलों के लिए सिरदर्द बने भाजपा के टीवी विज्ञापन

मुंबई [राज्य ब्यूरो]। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा का टीवी विज्ञापन विरोधी दलों के लिए भले ही सिरदर्द बन गया है। युवा पीढ़ी खासकर किशोरों-बच्चों का विज्ञापन की एक पंक्ति 'कुठे नेउन ठेवलाय महाराष्ट्र माझा' (मेरे महाराष्ट्र को कहां ला छोड़ा) खूब पसंद आ रहा है। राज्य में यह पंक्ति वैसे ही लोकप्रिय हो गई है जैसा लोस चुनाव के दौरान अबकी बार, मोदी सरकार नारा हुआ था।

नासिक के एक मराठी परिवार के दो वर्षीय अर्जुन मुले ने हाल ही में बोलना शुरू किया है, लेकिन टीवी पर दिन में दर्जनों बार बोली जा रही पंक्ति कुठे नेउन ठेवलाय महाराष्ट्र माझा अपनी तोतली बोली में दिन भर रटता रहता है। किशोर और युवा पीढ़ी भी इस पंक्ति को दोहराती दिखाई देती है। यही कारण है कि राकांपा के मुखिया शरद पवार से लेकर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे तक भाजपा के इन विज्ञापनों की आलोचना करते दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में पवार ने एक जनसभा में कहा था कि भाजपा अपने विज्ञापनों के जरिए महाराष्ट्र का अपमान कर रही है। वास्तव में भाजपा ने महाराष्ट्र की कुछ अहम समस्याओं, मसलन किसानों की खुदकुशी, पेयजल संकट, महंगाई एवं बेरोजगारी आदि को लेकर कुछ ऐसे विज्ञापन बनवाए हैं, जिनमें महिलाओं, बुजुर्गो, युवाओं को जीवंत अभिनय के साथ समस्या का वर्णन करने के बाद उपरोक्त पंक्ति बोलते दिखाया जाता है।

भाजपा के विज्ञापनों को सोशल मीडिया पर बदलाव के साथ पेश किए जाने से अन्य दलों के समक्ष करेला ऊपर से नीमचढ़ा जैसी स्थिति हो गई है। सोशल मीडिया में जिन समस्याओं को उठाया गया है, महाराष्ट्र के लोग रोजाना ही उनसे दो चार होते हैं, इसलिए विज्ञापन की पंक्तियां आसानी से उनके दिल में जगह बना रही है। भाजपा के विरोधियों के लिए यही सबसे बड़ी समस्या है। चूंकि भ्रष्टाचार के ज्यादातर आरोप राकांपा कोटे के मंत्रियों पर हैं, इसलिए उसके नेताओं को ये विज्ञापन सबसे ज्यादा चुभ रहे हैं।

शिवसेना और मनसे महाराष्ट्रवाद के नाम पर इन विज्ञापनों का विरोध कर रही हैं। वह अपने मतदाताओं को यह बताने का प्रयास कर रही हैं कि भाजपा इन विज्ञापनों के जरिए गुजरात को महाराष्ट्र से श्रेष्ठ साबित करने में लगी है।

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