त्वरित टिप्पणी: योगी मंत्रिमंडल में नए प्रयोगों का जोखिम लिया भाजपा ने
उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने रविवार को शपथ ली।
नई दिल्ली (प्रशांत मिश्र)। विधानसभा चुनाव में जिस धमक के साथ भाजपा को भारी बहुमत मिला है, उससे उसकी चुनाव पूर्व बनायी गई रणनीति पर मुहर लग गई है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का अगला कदम लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ चुका है।
राय मंत्रिमंडल के गठन में शाह और मोदी की जोड़ी ने अपनी रणनीति को और विस्तार दिया है। यही वजह है कि पार्टी प्रबंधकों ने राय में केसरिया रंग को और गहराने के मकसद से ही कई नए प्रयोग किये और बड़ी चुनौतियां स्वीकार की हैं। इनमें अगड़ी जाति के नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने से लेकर कई ऐसे चेहरों को मंत्री बनाना भी शामिल है। इनमें कई एक तो किसी सदन के सदस्य तक नहीं है और न ही उन्होंने कोई चुनाव लड़ा।
पार्टी के ऐसे नेताओं की चुनाव में राजनीतिक भागीदारी व भूमिका को नेतृत्व ने पूरा महत्व दिया है। यानी जिन लोगों ने यूपी चुनाव के यज्ञ में आहुति दी, उन्हें सरकार में शामिल किया गया। शीर्ष नेतृत्व ने यह जोखिम तब लिया है, जब सूबे की सियासत में पार्टी ने रिकार्ड बहुमत प्राप्त करते हुए सवा तीन सौ सीटें मिली हैं। इसीलिए रविवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा ने जबर्दस्त शक्ति प्रदर्शन भी किया।
खुद प्रधानमंत्री सहित कई रायों के मुख्यमंत्री और ज्यादातर केंद्रीय मंत्री भी समारोह में शामिल हुए। पार्टी नेतृत्व ने इस मिथ को भी तोड़ दिया कि आने वाले दिनों में अब कभी यूपी में अगड़ी जाति का मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री और केशव मौर्य के उप मुख्यमंत्री बनाये जाने से रिक्त होने वाली लोकसभा की दोनों सीटों पर उप चुनाव कराने का भी पार्टी ने जोखिम लिया है।
इसी तरह कई ऐसे नेताओं को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गई है, जो किसी दल के सदस्य तक नहीं हैं। यानि उनके लिए भी उपचुनाव होगा। तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद में मनोनीत कर सदस्य बनाने का रास्ता पहले ही बंद हो चुका है। वहां सिर्फ एक सीट खाली है, जिसे स्थानीय निकाय चुनाव के रास्ते भरा जा सकता है। इन उप चुनावों में विपक्ष की संभावित एकजुटता भारी पड़ सकती है।
चुनाव के लिए विभिन्न जातियों, समुदाय और क्षेत्र के बीच संतुलन बनाते हुए पार्टी नेतृत्व ने जो चुनावी गुलदस्ता बनाया था, उसमें सभी को साधने की सफल कोशिश की गई थी। मंत्रिमंडल के गठन में उस गुलदस्ते को व्यापक बनाया गया है। चुनाव में किसी मुस्लिम को प्रत्याशी न बनाने के आरोपों से मुक्त होने के लिए मोहसिन रजा को मंत्री बनाया गया है। टिकट बंटवारे के समय अगड़े पिछड़े के बीच भेदभाव के उठ रहे सवालों को भी सरकार के गठन के साथ खत्म करने की कोशिश की गई है। भावी संसदीय चुनाव की तैयारियों की दृष्टि से जो भी उचित लगा, पार्टी को उसे करने से गुरेज नहीं था, जिसे उसने खुलकर किया भी।