खुशी हो या गम, फूल ही मानवीय भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उचित माध्यम

क्या कभी किसी ने सोचा है कि अगर फूल नहीं होते तो क्या होता? क्या शादियों और अन्‍य समारोहों की रौनक रहती? हमारे धार्मिक स्थलों व शहीदों को पुष्प समेत श्रद्धांजलि दी जा सकती?

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sun, 07 Jun 2020 11:57 AM (IST) Updated:Sun, 07 Jun 2020 12:04 PM (IST)
खुशी हो या गम, फूल ही मानवीय भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उचित माध्यम
खुशी हो या गम, फूल ही मानवीय भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उचित माध्यम

नई दिल्ली [अंशु सिंह]। कोविड-19 ने न सिर्फ फूलों को मुरझा दिया, उसके कारोबार को ध्वस्त कर दिया, बल्कि किसानों को उन्हें कचरे में फेंकने के लिए विवश भी कर दिया। यह कहानी उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु जैसे अनेक राज्यों में दोहरायी गई। पर इसके बीच उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं देश के कुछ युवा उद्यमी। 

ये राज्य सरकारों व इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट जैसी सहयोगी संस्थाओं की मदद से किसानों को सस्टेनेबल फ्लॉवर मैनेजमेंट से करा रहे हैं रूबरू, ताकि बढ़ा रहे उनका मनोबल और वे तैयार हो सकें भविष्य की हर आपदा से मुकाबले के लिए। फ्रांसीसी कवि गेरार्ड डी नर्वल ने एक बार कहा था, हर पुष्प एक आत्मा की तरह है, जो प्रकृति की गोद में खिलता है। 

धरा पर खिलने वाले ये रंग-बिरंगे फूल सहज ही मानव मन को आकर्षित कर, उसे खुशियों व उमंग से भर देते हैं। अवसर खुशी का हो या गम का, फूल ही मानवीय भावनाओं को प्रकट करने का माध्यम बनते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि अगर फूल नहीं होते, तो क्या होता? क्या शादियों और अन्‍य समारोहों की रौनक रहती? हमारे धार्मिक स्थलों व शहीदों को पुष्प समेत श्रद्धांजलि दी जा सकती? नहीं न।

 

आज वही फूल तकलीफ में हैं, उन्हें उगाने वाले किसान परेशान हैं। एक किसान जब खेतों में फूल उगाता है, तो वह अपने भविष्य को लेकर कई उम्मीदें भी संजोता है। लेकिन जब वही सपने आंखों के सामने दम तोड़ने लगते हैं, तो व्यक्ति की मन:स्थिति को समझना मुश्किल नहीं है।

फूलों की खेती को लेकर असमंजस 

आमतौर पर अप्रैल-मई के महीने में देश के किसान व कारोबारी फूलों से लाखों की कमाई करते थे, जो आज एकदम से शून्य हो गई। किसान इस हद तक हताश और निराश हैं कि आत्महत्या तक की सोच रहे हैं। देहरादून जिले के काल्सी ब्लॉक के छोटे से गांव के किसान रूप राम सिंह चौहान कुछ वर्षों से गरबेरा एवं ग्लेडोलिया की खेती कर रहे थे। 

मई-जून महीने तक उनका सारा उत्पादन बाजार तक पहुंच जाता था, जो इस साल नहीं हो सका। वे मायूस होने के साथ असमंजस में हैं कि आगे फूलों की खेती करें या नहीं? दरअसल, हमारे देश के अधिकतर किसान पारंपरिक एवं सुरक्षित खेती से ही जुड़े रहे हैं। व्यावसायिक खेती में जोखिम होने के कारण वे इसे जल्द नहीं अपनाते। बीते कुछ वर्षों से उनका रुख इस ओऱ हुआ है, जिसमें फूलों की खेती भी एक है।

लेकिन इस साल जो नुकसान उठाना पड़ा है, उसे देखते हुए किसानों का मनोबल टूट गया है। ऐसे में जब रूप सिंह को पता चला कि फूलों के वैकल्पिक प्रयोग से भी लागत की भरपाई की जा सकती है, तो उनका हौसला बढ़ा और अब वे ऑनलाइन ट्रेनिंग के जरिये खुद को आगे के लिए तैयार कर रहे हैं। 

सस्टेनेबल फ्लॉवर्स प्रोजेक्ट की शुरुआत 

सोच में बदलाव की यह कहानी शुरू होती है बेंगलुरु से। कुछ किसानों ने विलेज स्टोरी की संस्थापक अनामिका बिष्ट को फोन कर अपनी मार्मिक आपबीती सुनाई थी कि कैसे उनके फूल बर्बाद हो रहे हैं और वे कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं। उन्होंने उनकी मदद करने का फैसला लिया। एक ऐसा सस्टेनेबल फ्लॉवर्स प्रोजेक्ट तैयार किया, जिसके अंतर्गत किसानों को फूलों से अगरबत्ती, नेचुरल डाई, बायो फर्टिलाइजर, क्राफ्ट पेपर, कंपोस्ट, हवन सामग्री, होली के रंग आदि बनाने की विधि सिखाने से लेकर उनके उत्पाद को मार्केट तक पहुंचाने का प्रबंध किया जा सके।

अनामिका बताती हैं, 'हम एक ऐसा सस्टेनेबल फ्लॉवर मॉडल बनाने पर काम कर रहे हैं, जो इस वैश्विक महामारी के बाद भी किसानों के लिए कारगर साबित हो। वे भविष्य में आने वाली किसी भी आपदा के लिए तैयार हो सकें। किसी एक गतिविधि पर निर्भर रहने की बजाय वैकल्पिक क्षेत्रों को एक्सप्लोर कर सकें।' फिलहाल, उत्तराखंड से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है, जिसके तहत विलेज स्टोरी के विशेषज्ञों के अलावा अन्य प्रदेशों के फ्लोरीकल्चर उद्योग से जुड़े युवा उद्यमी किसानों को जूम एवं गूगल मीट के जरिये फूल प्रोसेस करने की ऑनलाइन ट्रेनिंग दे रहे हैं। जीरो वेस्ट मैनेजमेंट के उद्देश्य के साथ किसानों को टेक्निकल एवं एथिकल सपोर्ट दिया जा रहा है।

उद्यमी देते किसानों को ऑनलाइन ट्रेनिंग 

किसानों को ऑनलाइन ट्रेनिंग देने वाले करण रस्तोगी बताते हैं, यह मुश्किल दौर है। किसानों को नई चीज के लिए कनविन्स करना आसान नहीं है। जब तक कि वे अपने सामने प्रोडक्ट को बनता न देख लें। फिर भी उन्‍हें प्रेरित करता हूं कि वे उम्मीद न हारें। फिलहाल, उन्हें फूल तोड़ने, उन्हें सुखाने और स्टोर करने की विधि बता रहा हूं। लॉकडाउन खत्म होने पर उन्हें इसके आगे की प्रक्रिया की जानकारी व प्रशिक्षण दूंगा।

कानपुर के करण ने पांच साल पहले अपने दोस्त के साथ मिलकर 'हेल्प अस ग्रीन' की स्थापना की थी। इसके जरिये वे मंदिर-मस्जिद आदि से फूलों को इकट्ठा कर उससे अगरबत्ती, वर्मी कंपोस्ट व नेचुरल कलर्स तैयार करते हैं। इस लॉकडाउन में काम बंद-सा है, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से ये पीछे नहीं हटे हैं।

संगठन में काम करने वाली महिलाओं को राशन और जरूरत के मुताबिक पैसे दे रहे हैं। साथ ही, किसानों के ट्रेनर की भूमिका भी बखूबी निभा रहे हैं। वे कहते हैं, हमारी तरह अगर और स्टार्टअप व उद्यमी इस तरह के कार्यों में सहयोगी बनें, तो इस मुश्किल का हल निकाला जा सकता है। 

गढ़े जा सकते हैं रोजगार के नए अवसर 

गया के प्रवीण चौहान पेशे से फैशन डिजाइनर हैं। टेक्सटाइल में खास विशेषज्ञता रखते हैं। लेकिन बीते एक-डेढ़ साल से वे 'हैप्पी हैंड' प्रोजेक्ट के तहत बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर से फूलों को इकट्ठा कर उससे प्राकृतिक डाई बनाने का काम कर रहे हैं। इस डाई से खादी के वस्त्रों की रंगाई की जाती है। ये बोधगया के अलावा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे कुछ अन्य स्थानों पर भी कार्य करते हैं।

बताते हैं, गांवों में पहले से ही रोजगार का संकट रहा है। आधी से अधिक आबादी तो शहरों में पलायन कर गई थी। जो हिम्मत करके गांव में रहते हैं, उन्हें इस वर्ष कोविड-19 के कारण बड़ा धक्का लगा है। विशेषकर फूलों की खेती करने वाले किसान व इसके कारोबारी प्रभावित हुए हैं। प्रवीण के अनुसार, वे किसानों को ‘नो वेस्टेज’ के कॉन्सेप्ट पर प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्हें समझा रहे हैं कि वे कैसे लंबे समय तक फूल की पत्तियों व उसकी टहनियों को सुखाकर उन्हें सुरक्षित रख सकते हैं। 

जैसे-जैसे हालात सामान्य होंगे, उन्हें फाइनल प्रोडक्ट तैयार करने की प्रक्रिया से अवगत कराया जाएगा। वैसे, प्रवीण का मानना है कि फ्लोरीकल्चर की तरह कृषि से जुड़े अन्य क्षेत्रों को अगर प्रोत्साहित किया जाए, तो गांवों में लघु व कुटीर उद्योग शुरू किए जा सकते हैं। इससे ग्राम स्तर पर नए रोजगार सृजित होंगे। लॉकडाउन में शहरों से गांवों की ओर लौटे लोगों को भी रोजगार के नए विकल्‍प मिलेंगे।

किसानों का बढ़ा मनोबल 

काल्सी स्थित किसान समूह (क्लस्टर) के नेता शिवशंकर बिष्ट की मानें, तो सुदूर गांवों के किसान तकनीक को लेकर उतने सहज नहीं हैं। नेटवर्क कनेक्शन की दिक्कतें होती हैं सो अलग। बावजूद इसके, वे इन ऑनलाइन सत्रों में गहरी रुचि दिखा रहे हैं। विशेषज्ञों से बेझिझक सवाल पूछ रहे हैं। उनमें कहीं न कहीं एक आस जगी है कि वे भविष्य के लिए खुद को बेहतर तरीके से तैयार कर सकते हैं।

उनमें एक आत्मविश्वास आया है कि रास्ते पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। व्यावहारिकता भी यही कहती है कि जहां समाधान है, वहां सफलता भी छिपी है। बिष्ट बताते हैं, सत्र में शारीरिक दूरी का पूरा ध्यान रखा जाता है। जो किसान नहीं आ पाते हैं, उन तक पर्चों के जरिये जानकारी पहुंचाई जाती है। आज उत्तराखंड के आसपास के किसान व उद्यमी भी रुचि दिखा रहे हैं।

भविष्य के लिए कर रहे तैयार 

लॉकडाउन के कारण उत्तराखंड की फ्लोरीकल्चर इंडस्ट्री को करीब 250 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ऐसे में हमने किसानों को हतोत्साहित होने से बचाने का फैसला लिया, ताकि वे आगे फूलों की खेती करने से डरे नहीं। वाराणसी, ऋषिकेश, गया, हरिद्वार जैसे शहरों में फ्लॉवर वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे लोगों एवं एजेंसियों से संपर्क किया गया है। 

ऑनलाइन माध्यम से उनकी विशेषज्ञता का लाभ किसानों तक पहुंचाया जा रहा है। इस प्रक्रिया को तीन-चार चरणों में आगे बढ़ाया जाएगा। फाइनल प्रोडक्ट को बकायदा मार्केट तक पहुंचाने का पूरा खाका तैयार किया गया है, ताकि भविष्य में किसी आपदा के बाद भी किसानों के पास आय का वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हो। -संजय सक्सेना, प्रोग्राम मैनेजर (एग्रीकल्चर एवं हार्टीकल्चर), आइएलएसपी-यूजीवीएस, उत्तराखंड 

इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड सपोर्ट प्रोजेक्ट से मदद 

फ्लोरीकल्चर से जुड़े किसानों को बीज, बल्ब्स, पॉलीहाउस से लेकर प्रोटेक्टिव एरिगेशन में अच्छी-खासी पूंजी लगानी होती है, लेकिन फूलों की मांग होने के कारण वे लागत की भरपाई कर मुनाफा तक कमा लेते हैं। खासकर, मार्च से मई के पीक सीजन (शादियों, धार्मिक यात्रा, उत्सव आदि का समय) में सबसे अधिक कमाई होती है किसानों की, जो इस लॉकडाउन में प्रभावित हुई। ऐसे में हमने उत्तराखंड सरकार के साथ पहले से चल रहे इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड सपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत फ्लॉवर प्रोजेक्ट को समर्थन दिया है। तकनीकी रूप से आइएफएडी एक फाइनेंसर के तौर पर इस प्रोजेक्ट से जुड़ा है। 

- मीरा मिश्रा, कंट्री को-ऑर्डिनेटर, आइएफएडी


सस्टेनेबल खेती से निकलेगी राह 

हम चाहते हैं कि किसान सिर्फ खेती नहीं, सस्टेनेबल खेती करें यानी फूल या आम उगाने के साथ उससे बनने वाले प्रोडक्ट्स के बारे में भी जानें। उसे अपनी आय का साधन बनाएं, ताकि आपदा आने के बावजूद नुकसान की थोड़ी ही सही, भरपाई हो सके। इसी को ध्यान में रखकर, विलेज स्टोरी और उत्तराखंड सरकार के लाइवलीहुड सपोर्ट प्रोजेक्ट ने साथ मिलकर प्रदेश के फूल उत्पादक किसानों की मदद करने का बीड़ा उठाया है।

हम अपने पार्टनर फेसिलिटेटर्स की मदद से किसानों के लिए ऑनलाइन सेशंस संचालित कर रहे हैं। कुल 46 क्लस्टर्स बनाए गए हैं, जिनमें प्रत्येक क्लस्टर को चार हफ्ते की ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जाएगी। पहले क्लस्टर के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के आधार पर इसे शेष समूहों में शुरू किया जाएगा। हमारी कर्नाटक सरकार से भी बात चल रही है। वहां भी फ्लोरीकल्चर इंडस्ट्री को करोड़ों का नुकसान हुआ है। 

- अनामिका बिष्ट, संस्थापक, विलेज स्टोरी 

chat bot
आपका साथी