कभी चंबल के बीहड़ों में भी टहलते थे डायनासोर!, यकीं न हो तो ख़बर पढ़ लो

डाकुओं की शरणस्थली के रूप में बदनाम रहे चंबल के बीहड़ों में कभी डायनासोर का भी बसेरा हुआ करता था। चंबल नदी का पानी इनकी प्यास बुझाता था।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Sat, 16 Jun 2018 09:12 PM (IST) Updated:Sat, 16 Jun 2018 09:12 PM (IST)
कभी चंबल के बीहड़ों में भी टहलते थे डायनासोर!, यकीं न हो तो ख़बर पढ़ लो
कभी चंबल के बीहड़ों में भी टहलते थे डायनासोर!, यकीं न हो तो ख़बर पढ़ लो

मुरैना [शिवप्रताप सिंह जादौन]। डाकुओं की शरणस्थली के रूप में बदनाम रहे चंबल के बीहड़ों में कभी डायनासोर का भी बसेरा हुआ करता था। चंबल नदी का पानी इनकी प्यास बुझाता था। ये कल्पना 1998 में पहली बार विशेषज्ञों के सामने हकीकत बनकर आई। 20 साल पहले चंबल के किनारे मिट्टी के एक विशाल टीले के ढहने से कई फीट लंबाई-चौड़ाई का अस्थि पिंजर बाहर आया था। इस पिंजर के कुछ हिस्से ही पुरातत्व विभाग मुरैना लेकर आने में सफल रहा था। यह हड्डियां संग्रहालय में मौजूद हैं। इसके बाद इस टीले से हड्डियां निकलने का सिलसिला जारी है। इस साल भी ठीक वैसी ही हड्डियां इस टीले ने उगली हैं, जैसी 20 साल पहले उगली थीं। पुरातत्व अधिकारी इस टीले की जांच के लिए वरिष्ठ कार्यालय को पत्र लिखने की बात कह रहे हैं।

चंबल किनारे बसे मुरैना, मप्र के बिंडवा गांव के घाट पर मिट्टी का विशाल टीला है। चंबल में बाढ़ आने पर टीले का क्षरण होता है और पानी घटने पर टीले की मिट्टी ढहनी शुरू हो जाती है। गांव के लोगों का दावा है कि टीले के धसकने पर यहां विशाल अस्थि पिंजर निकलते हैं। ग्रामीणों का यह दावा झूठा नहीं है। खुद पुरातत्व विभाग के अधिकारी इस पर मोहर लगा रहे हैं। पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा के मुताबिक जब 1998 में वे जिला पुरातत्व संघ के संग्रहालय प्रभारी थे, तब अस्थि पिंजर निकलने की सूचना पर वे खुद अपनी टीम के साथ चंबल के इस घाट पर पहुंचे थे। यहां उन्होंने विशालकाय अस्थि पिंजर देखा। लेकिन सड़क मार्ग और सुविधा न होने से सिर्फ इस पिंजर के जबड़े को मुरैना लाया जा सका था। पिंजर का बाकी हिस्सा अंध विश्र्वास के चलते ग्रामीणों ने क्षतिग्रस्त कर दिया।

इस बार निकला तीन फीट का जबड़े का टुकड़ा:
इस बार चंबल के इसी बिंडवा घाट पर फिर से ऐसी ही हड्डियां निकली हैं। इनमें सबसे बड़ा टुकड़ा तीन फीट लंबा और करीब इतना ही चौड़ा है। इसके निचले हिस्से में बड़े-नुकीले दांत साफ दिखाई दे रहे हैं। यह टुकड़ा 20 साल पहले मिले जबड़े के उस हिस्से से हू-ब-हू मिलता है, जो संग्रहालय में रखा गया है। यहां हर साल विशाल अस्थि पिंजर निकलने के कारण इस टीले को ग्रामीण दानव का टीला कहकर पुकारते हैं।

भूल गया था पुरातत्व विभाग:
जिला पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा के मुताबिक 20 साल पहले इस यहां अस्थि पिंजर मिलने के बाद ग्वालियर और भोपाल के जूलॉजिस्ट और विशेषज्ञों ने इसकी जांच की थी और इसे कई वर्ष पुराना पाया। उस समय टीले की खुदाई पर ध्यान नहीं दिया गया और फिर इस जगह को भुला दिया गया। लेकिन एक बार फिर से हड्डियां निकलने के बाद पुरातत्व विभाग इन हड्डियों के सैंपल को लैब भेजने और टीले की जांच व खोदाई का काम विशेषज्ञों से करवाने की बात कह रहा है।

20 साल पहले टीले से पहली बार विशालाकाय जीव का अस्थि पिंजर निकाला था। जिसके छोटे-छोटे हिस्से ही संग्रहालय लाए जा सके थे। शेष पिंजर को लोग चुरा ले गए थे। इस बार फिर से यहां वैसे ही अवशेष निकले हैं। हम टीले को सुरक्षित कर इसकी जांच करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को प्रस्ताव भेज रहे हैं।
-अशोक शर्मा, पुरातत्व अधिकारी मुरैना

chat bot
आपका साथी