Amarnath Yatra: सत्यम शिवम और सुंदरम का एहसास कराने वाली अमरनाथ यात्रा में अमरत्व का रहस्य

अमरनाथ गुफा के पुजारी ही पूजा-अर्चना और आरती कर रहे हैं जिसे भक्तगण दूरदर्शन और श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर ऑनलाइन देख सकते हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 22 Jul 2020 03:15 PM (IST) Updated:Wed, 22 Jul 2020 03:21 PM (IST)
Amarnath Yatra: सत्यम शिवम और सुंदरम का एहसास कराने वाली अमरनाथ यात्रा में अमरत्व का रहस्य
Amarnath Yatra: सत्यम शिवम और सुंदरम का एहसास कराने वाली अमरनाथ यात्रा में अमरत्व का रहस्य

जम्मू, ललित शर्मा। शिव ही सत्य है और सत्य ही सनातन है। हिमालय की चोटियों व कंदराओं में शिव सनातन स्वरूप में विराजमान रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं अमरनाथ धाम। यहां आदि शिव और देवी पार्वती हिम स्वरूप में अवतरित होते हैं। शिव, शक्ति एवं प्रकृति के मिलाप की पवित्र अमरनाथ यात्रा अपने साथ लेकर आती है सांप्रदायिक सौहार्द और सुखद संदेश।

पिछले वर्षों में बम- बम भोले करते भक्त कच्चे-पक्के मैदान ही क्या, दरिया और पर्वत भी पार कर जाते रहे हैं। उत्साह, रोमांच और आस्था का संचार करने वाली अमरनाथ यात्रा पर पहली बार कोरोना ने व्यवधान डाला है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर आखिर कारण श्री बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने इस वर्ष वार्षिक अमरनाथ यात्रा को रद करने का एलान कर दिया है।

तीर्थयात्राएं मानव सभ्यता और आस्था से जुड़ी: अमरनाथ यात्रा के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि करीब तीन सौ वर्ष पहले एक चरवाहे ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी। कहानी के अनुसार, चरवाहे को एक साधु मिलते हैं, जो उसे कोयले से भरी कांगड़ी देते हैं। वह जब कांगड़ी को लेकर घर आता है, तो वह कोयला सोने में परिवर्तित हो जाता है। चरवाहा उस साधु को खोजने निकल पड़ता है, तब उसे पवित्र गुफा मिलती है। कहा जाता है कि इसके बाद से यह यात्रा आरंभ हो गई। हालांकि अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पुजारी राजेंद्र शास्त्री बताते हैं कि, ‘यह कहानी तथ्यों से मेल नहीं खाती। तीर्थयात्राएं मानव सभ्यता और आस्था से जुड़ी हैं।’

बाबा अमरनाथ की तीर्थयात्रा भी हजारों वर्षों से होती रही है। ऐसा कोई कालखंड नहीं मिलता, जिसमें अमरनाथ यात्रा का वर्णन न हो। स्कंद पुराण में भैरव-भैरवी संवाद में अमरनाथ यात्रा के फल के बारे में बताया गया है। अमरनाथ माहात्म्य और भृंगी संहिता जैसे ग्रंथों में अमरनाथ गुफा की भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन है। नीलमत पुराण में भगवान अमरनाथ का उल्लेख मिलता है।

महादेव ने मां पार्वती को अमर कथा सुनाने का निर्णय लिया: 12वीं शताब्दी की रचना कल्हण की राजतरंगिणी में भी इस यात्रा का उल्लेख है। महामंडलेश्वर रामेश्वर दास के अनुसार, स्कंदपुराण में शिव के तीर्थों की महिमा बताते हुए अमरेश तीर्थ को सब पुरुषार्थों का साधक बताया गया है। पुराणों के अनुसार, इसी गुफा में शिव ने देवी पार्वती को अमर कथा सुनाई थी। यह प्रसंग इस प्रकार है कि एक बार मां पार्वती ने महादेव से यह प्रश्न किया कि ऐसा क्यों है कि आप अजर-अमर है और मुझे हर जन्म में वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है। जब मुझे आपको ही प्राप्त करना है तो फिर मेरी यह तपस्या क्यों? देवी पार्वती के हठ के कारण अंततोगत्वा महादेव ने मां पार्वती को अमर कथा सुनाने का निर्णय लिया।

शिव-पार्वती का संवाद दो कबूतर भी सुन रहे थे: मान्यता है कि जब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरकथा सुनाने का निश्चय किया, तब वे अपने गणों को छोड़ते गए और अमरनाथ गुफा की ओर बढ़ते गए। जहां अनंत नामक नाग को छोड़ा, वह स्थान अनंतनाग कहलाता है। जहां शेष नाग को छोड़ा, वह शेषनाग नाम से विख्यात है। जहां अपने नंदी बैल को छोड़ा, वह स्थान बैलग्राम हुआ और बैलग्राम से ही अपभ्रंश होकर पहलगाम बना। चंदनवाड़ी में चंद्रमा को अलग कर दिया। अगला पड़ाव गणेश टाप पड़ता है। इस स्थान पर उन्होंने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया। इसे महागुणा पर्वत भी कहा जाता है। पिस्सू घाटी में पिस्सू को छोड़ दिया। परंपरागत तौर पर इसी मार्ग से यात्रा चलती है। जब गुफा में एकांत में भगवान शिव, मां पार्वती को अमरत्व का रहस्य बता रहे थे, तब माता को नींद आ गई। उस समय गुफा में शिव-पार्वती का संवाद दो कबूतर भी सुन रहे थे, इस प्रकार वे भी अमर हो गए।

आस्था की प्रतीक यात्रा: बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा करीब 100 फीट लंबी और 150 फीट चौड़ी है। इसमें करीब 14 फीट ऊंचा शिवलिंग होता है। श्रावणी पूर्णिमा को रक्षाबंधन वाले दिन बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन छड़ी मुबारक करती है। इसके साथ ही वार्षिक यात्रा संपन्न हो जाती है। श्री अमरनाथ यात्रा के दो मार्ग हैं- पहलगाम और बालटाल। बालटाल मार्ग छोटा है, लेकिन पहलगाम मार्ग से कठिन है।

रहस्य बना हुआ है: हिमलिंग का बनना समुद्र तल से करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ की विशाल प्राकृतिक गुफा में हिमलिंग बनता है। यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है अर्थात गुफा में एक-एक बूंद पानी नीचे गिरता है और वही धीरे-धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है। लेकिन अब सवाल उठता है कि गर्मी में तो बर्फ पिघलनी शुरू होती है, तब कैसे बनता है यह हिमलिंग? ऐसे में भगवान शिव के हिमलिंग का अवतरण अभी भी इंसान के लिए रहस्य बना हुआ है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को पर्वतों, पानी, ठंडी हवा और ग्लेशियर से होकर गुजरना पड़ता है।

कोरोना काल में कम नहीं है श्रद्धालुओं का उत्साह: कोरोना संक्रमण के कारण यात्रा के परंपरागत स्वरूप में बदलाव करना पड़ा है। पर श्रद्धालुओं के उत्साह में कमी नहीं आई है। प्रशासन सड़क मार्ग से सीमित संख्या में यात्रियों को अनुमति देने पर विचार कर रहा था। इसके लिए केवल बालटाल मार्ग से ही यात्रा की तैयारी चल रही थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर में बढ़ता कोरोना संक्रमण इस चिंता को बढ़ाने का प्रमुख कारक है। ऐसे में श्रद्धालुओं की श्रद्धा का ध्यान रखते हुए पहली बार नित्य आरती के टीवी पर लाइव प्रसारण का प्रबंध किया गया था।

कोविड टेस्ट अनिवार्य होगा: जम्मू के डिवीजनल कमिश्नर संजीव वर्मा ने बताया कि यात्रा की संभावना के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर के प्रवेश द्वार लखनपुर में टर्मिनल और काउंटर बनाए जाएंगे। यात्रा की स्थिति में कोरोना की रोकथाम के लिए जारी नियमों का पालन होगा। श्रद्धालुओं का कोविड-19 टेस्ट अनिवार्य बनाया गया है। जम्मू में यात्री निवास को भी श्रद्धालुओं के लिए खाली करवा लिया गया है।

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