संख्या बल के अलावा कानूनी पेंच में भी अखिलेश यादव निकले खिलाड़ी

आयोग ने माना है कि उत्तर प्रदेश के 228 में से 205 विधायकों और मुलायम को छोड़ सभी लोकसभा सांसदों ने अखिलेश के समर्थन का शपथपत्र दिया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Mon, 16 Jan 2017 09:48 PM (IST) Updated:Tue, 17 Jan 2017 11:52 AM (IST)
संख्या बल के अलावा कानूनी पेंच में भी अखिलेश यादव निकले खिलाड़ी
संख्या बल के अलावा कानूनी पेंच में भी अखिलेश यादव निकले खिलाड़ी

नई दिल्ली, [मुकेश केजरीवाल]। समाजवादी पार्टी पर कब्जे के पिता-पुत्र के दंगल में अखिलेश ना सिर्फ संख्या बल में अपने पिता पर भारी पड़े, बल्कि कानूनी दाव-पेंच में भी वे ज्यादा सतर्क दिखाई दिए। आयोग ने माना है कि उत्तर प्रदेश के 228 में से 205 विधायकों और मुलायम को छोड़ सभी लोकसभा सांसदों ने अखिलेश के समर्थन का शपथपत्र दिया। इसी तरह रामगोपाल को पार्टी से निकालने से ले कर टिकट बांटने तक में मुलायम ने सामान्य से नियमों का दिखावे तक के लिए पालन नहीं किया।

अखिलेश की हुई साइकिल

सपा के झगड़े पर सोमवार को आए आयोग ने 42 पन्ने के लंबे-चौड़े आदेश में कई ब्योरे बेहद दिलचस्प हैं। सरकार के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी यानी सोलीसीटर जनरल के पद पर रह चुके मोहन परासरन के नेतृत्व में 11 वकीलों की भारी-भरकम टीम मुलायम गुट का दावा पेश कर रही थी। मगर आयोग के फैसले में दिए ब्योरों को देख कर लगता नहीं कि इन्होंने अपनी जीत के लिए जरा भी जोर लगाया हो।

आयोग ने कहा है कि इसने प्रक्रिया के मुताबिक चार जनवरी को ही अखिलेश गुट की ओर से सौंपे गए शपथपत्र और सभी कागजात मुलायम गुट को सौंपे दिए थे। उन्हें नौ जनवरी तक इस पर एतराज दर्ज करने का समय दिया गया था। मगर इस पर भी वे कोई स्पष्ट एतराज पेश नहीं कर सके। आयोग को अखिलेश गुट ने 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 विधान पार्षदों, 24 में से 15 सांसदों, 46 में से 28 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों और 5731 में से 4716 डेलीगेट के शपथपत्र सौंपे थे। मुलायम गुट दावा कर रहा था कि ये शपथपत्र फर्जी हैं।

दस्तावेजी सबूत में मुलायम पर भारी पड़े अखिलेश

अखिलेश गुट ने पार्टी संविधान के उल्लंघन के तमाम मामले आयोग को पेश किए हैं। इसने कहा है कि पार्टी के संविधान के मुताबिक हर दो महीने में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलानी अनिवार्य है। मगर जून 2014 से ही कार्यकारिणी की कोई बैठक नहीं बुलाई गई थी। यह पार्टी संविधान का गंभीर उल्लंघन है। इसी तरह पार्टी संविधान के तहत सात सदस्यों वाली केंद्रीय संसदीय बोर्ड को ही अघिकार है कि वह राज्य विधासभा या संसद के चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करे। लेकिन मुलायम ने बिना एक बार भी इसकी बैठक बुलाए ही उम्मीदवारों की घोषणा कर दी।

पढ़ेंः चुनाव आयोग का बड़ा फैसला, अखिलेश करेंगे 'साइकिल' की सवारी

अखिलेश गुट की ओर से रामगोपाल यादव ने दावा किया कि पार्टी के 3474 प्रतिनिधियों ने दस्तखत कर पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने की अपील की। इस संबंध में पार्टी अध्यक्ष मुलायम को कई बार अनुरोध किया गया कि वे अधिवेशन बुलाएं। मगर वे राजी नहीं हुए। ऐसे में एक जनवरी को मजबूर हो कर इन्हें अधिवेशन बुलाना पड़ा। जब इसमें भी अध्यक्ष शामिल नहीं हुए तो पार्टी संविधान के मुताबिक उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने इसकी अध्यक्षता की। इस दौरान अधिवेशन में ध्वनि मत से अखिलेश को अध्यक्ष चुना। इसी तरह रामगोपाल यादव को पार्टी से निकालने में भी पार्टी संविधान का ध्यान नहीं रखा गया। इसके मुताबिक ऐसा करने से पहले पार्टी की तीन सदस्यों की समिति गठित कर मामले की जांच करनी जरूरी होती है।

जब मुलायम ने कहा नहीं आती अंग्रेजी

उधर, मुलायम गुट की ओर से सिर्फ इतना ही एतराज किया गया कि अखिलेश के समर्थन में दिए गए बहुत से शपथपत्र अंग्रेजी में हैं, जबकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती और यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि उन्होंने इसे अपनी भाषा में पढ़ लिया है। इसी तरह कई शपथपत्रों में 'हेल्ड' को 'हेल्प' लिख दिया गया है। कई शपथपत्र में एक जैसी गलती होने के आधार पर दावा किया गया कि उन्हें दबाव में ले कर इस पर दस्तखत करवाए गए हैं। हालांकि आयोग ने इन तर्क को नहीं माना। क्योंकि मुलायम की ओर से दिए गए अमर सिंह के पत्र में भी टाइपिंग की बहुत बड़ी गलती थी।

आयोग ने अपने विस्तृत फैसले में कहा है कि उसे मुख्य रूप से दो बातों को तय करना था। एक तो यह कि क्या पार्टी में टूट हुई है और दूसरा कि अगर हुई है तो इस पर किसका अधिकार हो। बाकी मामलों की सुनवाई सिविल अदालतों में होगी। आसन्ना चुनावों को देख आयोग को तुरंत अपना फैसला देना जरूरी है।

पढ़ेंः 'साइकिल' जीतने के बाद पिता मुलायम से आशीर्वाद लेने पहुंचे अखिलेश यादव

किसने दिया साथ

यूपी विधायक 228 में 205

यूपी विधान पार्षद 68 में 56

सांसद 24 में 15

रा. कार्यकारिणी सदस्य 46 में 28

पार्टी डेलीगेट 5731 में 4716

पार्टी संविधान का उल्लंघन

- जून, 14 से ही कार्यकारिणी की बैठक नहीं बुलाई

- टिकट बांटने के लिए संसदीय बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई

- रामगोपाल को निकालने के लिए समिति नहीं बनाई

- 3474 डेलीगेट की अपील पर भी राष्ट्रीय अधिवेशन नहीं बुलाया

मुलायम से अखिलेश तक
21 जून, 2016 : शिवपाल यादव ने माफिया से राजनेता बने मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल (कौएद) का सपा में विलय का एलान किया।
22 जून, 2016: नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने कौएद के विलय में महत्वूर्ण भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से निकाला।
25 जून, 2016: अखिलेश की नाराजगी के बाद संसदीय बोर्ड की बैठक हुई और कौएद का विलय रद।
14 अगस्त, 2016: शिवपाल ने कहा अफसर बात नहीं सुनते, जमीनों पर कब्जे हो रहे हैं। माफिया पर कार्रवाई नहीं हुई तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे।
15 अगस्त, 2016 : मुलायम ने कहा अगर शिवपाल इस्तीफा देंगे तो पार्टी की ‘ऐसी-तैसी’ होगी।
12 सितंबर, 2016: अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोप में गायत्री प्रजापति और राजकिशोर को मंत्रिमंडल से निकाला।
13 सितंबर, 2016: अखिलेश ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाया।
13 सितंबर, 2016: मुलायम ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के स्थान पर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
13 सितंबर, 2016 : मुख्यमंत्री अखिलेश ने चाचा शिवपाल से तीन मंत्रलय छीन लिए।
14 सितंबर, 2016 : अखिलेश ने कहा, झगड़ा परिवार का नहीं सरकार का।
14 सितंबर, 2016: अखिलेश ने कहा- कलह की वजह बाहरी लोगों का दखल, इशारा अमर सिंह की ओर था।
15 सितंबर, 2016: शिवपाल यादव ने सभी पदों से इस्तीफा भेजा, इस्तीफा वापस हुआ।
23 अक्टूबर, 2016: मुख्यमंत्री अखिलेश ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया।
23 अक्टबूर, 2016 : मुलायम ने राम गोपाल को पार्टी से निकाला।
27 दिसंबर, 2016: शिवपाल यादव ने विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों की सूची जारी की।
29 दिसंबर, 2016: अखिलेश यादव ने 235 प्रत्याशियों की अपनी सूची जारी की।
एक जनवरी, 2017: विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।
एक जनवरी, 2017: मुलायम सिंह ने रामगोपाल यादव, किरन मय नंदा, नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकाला।
2 जनवरी, 2017: मामला चुनाव आयोग पहुंचा।
16 जनवरी, 2017: चुनाव आयोग ने साइकिल निशान व पार्टी पर अखिलेश यादव का अधिकार बताया।

chat bot
आपका साथी