SC Verdict on Modi's Schemes: मोदी सरकार के 9 साल और नौ बड़े फैसले, अनुच्छेद 370 से पहले इन मामलों में भी लगी 'सुप्रीम' मुहर

SC Verdict on Modis Schemes भाजपा सरकार 2014 में सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ आई। अपने इन नौ साल के सफर में सरकार कई अहम फैसले लेकर आई। इन सभी फैसलों पर कई बार विपक्ष का तो कई बार आम जनता की नाराजगी का सामना भी पार्टी ने किया। इन फैसलों को मिली चुनौती में सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीम मुहर अंतत लगी।

By Babli KumariEdited By: Publish:Mon, 11 Dec 2023 03:48 PM (IST) Updated:Mon, 11 Dec 2023 03:48 PM (IST)
SC Verdict on Modi's Schemes: मोदी सरकार के 9 साल और नौ बड़े फैसले, अनुच्छेद 370 से पहले इन मामलों में भी लगी 'सुप्रीम' मुहर
नौ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिए कई दमदार फैसले (जागरण ग्राफिक्स)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 26 मई 2014 वह दिन है जब भाजपा ने भारी बहुमत हासिल कर सरकार बनाई। पार्टी की जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। यह वही साल था जब 'मोदी लहर' की बयार में बीजेपी केंद्र में सत्तारूढ़ हुई। यह साल बीजेपी के लिए किसी ऐतिहासिक साल से कम नहीं था, लेकिन बीजेपी के नाम यह जीत सिर्फ भारी बहुमत से सरकार बनाने की नहीं रही। नौ साल में यह पार्टी एक लंबे सफर को तय कर चुकी है।

एक कार्यकाल खत्म होने के बाद दूसरी बार गद्दी इस सरकार को अपने लिए गए अहम फैसलों की वजह से मिला, अगर ऐसा कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता पर कब्जा जमाया। पार्टी की यह जीत उसकी सरकारी योजनाओं और बड़े फैसलों की अहम भूमिका की वजह से हुई।

वहीं अब तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी तैयार है और इससे पहले 370 के ऊपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में यह दिखाती है कि आगामी चुनाव में भी पार्टी को इसका फायदा जरूर होगा। आइए जानते हैं, मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल के दौरान लिए गए बड़े फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट का क्या पक्ष रहा और उन फैसलों के पीछे सरकार की क्या मंशा रही...

अनुच्छेद 370 कानून

अनुच्छेद 370 का जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है। इस अनुच्छेद के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी मसले से जुड़े कानून को राज्य में सीधे प्रभावी नहीं बना सकती थी। भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर की सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य था। सरकार इस कानून को खत्म करने की मांग कर रही थी। पांच अगस्त 2019 को केंद्र की बीजेपी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर औऱ लद्दाख में बांट दिया था।

कानून पर क्या रहा विवाद

सरकार के इस फैसले को लेकर याचिकाकर्ता अदालत गए। याचिकाकर्ताओं कोर्ट से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने को रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 370 हटाना उस विलय पत्र के विरुद्ध था, जिसके ज़रिए जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया था कि यह लोगों की इच्छा के खिलाफ लिया जाने वाला फैसला है जो सिर्फ लोगों पर थोपा जा रहा है। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने आज अनुच्छेद 370 की वैधता को बरकरार रखा है और सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा खत्म करने का राष्ट्रपति का आदेश वैध था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।

ट्रिपल तलाक का कानून

सुप्रीम कोर्ट ने सालों पुरानी तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक बता सरकार को कानून बनाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्देश के बाद केंद्र सरकार ने तीन तलाक पर कानून बनाया। इस कानून में यह बताया गया कि एकसाथ तीन बार तलाक बोलना या लिखकर निकाह खत्म करना अपराध माना जाएगा और इस अपराध के लिए अधिकतम तीन साल कैद की सजा का प्रावधान भी रखा।

कानून पर क्या रहा विवाद

सरकार द्वारा लाए गए कानून को लेकर आपत्ति जताया गया। इस कानून को लेकर गैर इस्लामिक बताया गया।  तीन तलाक को खत्म करने की मंशा से बनाए गए कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई।  

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

तीन तलाक पर SC का फैसला अगस्त 2017 में आया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी इसे असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया। तीन तलाक कानून, जिसे औपचारिक रूप से मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 कहा गया। संसद में गहन बहस के बाद 1 अगस्त, 2019 को पारित किया गया था।

नोटबंदी

सरकार का क्या था नोटबंदी फैसला 

नोटबंदी फैसले को लेकर वैसे तो सरकार ने कई कारण बताए थे। लेकिन सबसे प्रमुख कारण भ्रष्टाचार बताया।    केंद्र सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को अचानक देश में नोटबंदी का एलान किया था। इस फैसले के तहत 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया। 

नोटबंदी पर क्या रहा विवाद

सरकार द्वारा लाए गए इस फैसले को लेकर आपत्ति जताया गया। याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा था कि इस फैसले में कई खामियां थीं और इसे रद्द करने की मांग की थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा 1000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराया था। 

दिल्ली अध्यादेश विधेयक

दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था। जिसमें दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे। इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए थे।

दिल्ली अध्यादेश पर क्या रहा विवाद?

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनाते ही वर्ष 2015 में एक आदेश दिया था कि जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था से जुड़ी तमाम फाइलें पहले उनके पास आनी चाहिए। इसके बाद उन्हें एलजी के पास भेजा जाएगा। इसके बाद इस अध्यादेश को लेकर केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था। कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। केंद्र ने 'गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023' लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया।

आधार वैधानिकता कानून

आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। आधार के लिए एकत्र किए जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की बात कही गई थी।

आधार की वैधानिकता पर क्या रहा विवाद?

याचिकर्ताओं ने आधार की वैधानिकता पर कहा था कि यह मौलिक अधिकार का हनन है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी थी कि एकत्र किए जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। यह भी आरोप लगाया कि आधार का डाटा मिलान न होने के कारण सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित हो रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। वहीं आधार को लेकर कहा कि प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों से आधार कार्ड नहीं मांग सकेंगी।

सेंट्रल विस्टा परियोजना

पुराने संसद भवन की स्थिरता की चिंताओं के कारण 2010 में मौजूदा भवन को बदलने के लिए नए संसद भवन के प्रस्ताव के लिए एक समिति की स्थापना तत्कालीन अध्यक्ष मीरा कुमार ने 2012 में की थी। भारत सरकार ने 2019 में एक नए संसद भवन के निर्माण के साथ प्रधानमंत्री के लिए नया कार्यालय और संसद भवन की संकल्‍पना के साथ सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना शुरू हुई। नए भवन के लिए भूनिर्माण अक्टूबर 2020 में शुरू हुआ और 10 दिसंबर 2020 को पीएम द्वारा आधारशिला रखी गई थी।

सेंट्रल विस्टा परियोजना को लेकर क्या था विवाद

नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी की ओर से किये जाने से दो दिन पहले, शीर्ष अदालत की एक अवकाशकालीन पीठ ने तमिलनाडु की वकील जया सुकिन द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। परियोजना के खिलाफ पहला अदालती मामला 2020 में राजीव सूरी और अनुज श्रीवास्तव और अन्य द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर किया गया था।

पहले दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा विवाद

उच्च न्यायालय ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी। इसके बाद ये विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी, 2021 को अपना फैसला सुनाया और 2:1 के बहुमत से 13,500 करोड़ रुपये की सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को हरी झंडी दे दी।

राफेल डील

भारत सरकार और फ्रांस के बीच लड़ाकू विमान राफेल को लेकर एक करार हुआ था। भारत ने इस करार के तहत फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल खरीदे थे। ये सौदा साल 2015 में पीएम मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान हुआ था। इस मामले में विपक्ष द्वारा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। विपक्ष का आरोप था कि राफेल सौदा अधिक कीमत पर किया गया। राफेल मामले की गूंज चुनाव तक सुनाई दी। हालांकि, सरकार ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया।

राफेल पर क्या रहा विवाद

कांग्रेस का आरोप था कि NDA सरकार 36 विमानों के लिए 58 हजार करोड़ दिया है, जबकि यूपीए सरकार 126 विमानों के लिए 54 हजार करोड़ रुपये दे रही थी। यूपीए सरकार में एक राफेल विमान की कीमत 428 करोड़ रुपये थी, जो मोदी सरकार में 1555 करोड़ रुपये है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील को लेकर दो बार याचिकाएं दायर की गई थी। कोर्ट ने राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर अपनी अंतिम मुहर लगा दी थी।

अग्निपथ योजना

अग्निपथ योजना के तहत बनने वाले 'अग्निवीर' सशस्त्र बलों की तीन सेवाओं में कमीशन अधिकारियों के पद से नीचे के सैनिकों की भर्ती के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई यह एक नई योजना है। इस योजना की घोषणा 16 जून 2022 को की गई थी। अग्निवीर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार और उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद करेगी। सरकार ने अग्निवीरों के रूप में चार साल की अवधि के लिए तीनों सेवाओं के 'अधिकारी रैंक से नीचे' कैडर में पुरुष और महिला दोनों उम्मीदवारों को भर्ती करने के लिए 15 जून, 2022 को अग्निपथ योजना शुरू की थी।

अग्निपथ योजना को लेकर क्या था विवाद

अग्निपथ योजना की घोषणा जैसे ही की गई इसको लेकर विपक्ष के साथ-साथ युवाओं में भी रोष देखा गया। चार साल के लिए सेना में नियुक्ति की इस योजना को लेकर देश के युवा नाराज़ दिखे और सड़कों पर उतर आए थे। बिहार, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में युवाओं ने कई जगहों पर रेलगाड़ियों को आग के हवाले किया और कई जगहों पर रेलवे के दफ्तरों में तोड़फोड़ भी की थी। इस योजना की वैधता को लेकर कई याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

सरकार के अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद योजना की वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि यह योजना सरकार की मनमानी योजना नहीं कहलाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फैलसा सुनाते हुए कहा कि सार्वजनिक हित अन्य विचारों से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

10 फीसदी सवर्णों को आरक्षण

मोदी सरकार ने साल 2019 में 10 फीसदी सवर्णों को आरक्षण देने के लिए संसद में संशोधन विधेयक पेश किया था, जिसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई थी। इसके तहत सवर्णों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को नौकरी मिलने का रास्ता साफ हो गया था। हालांकि, इसे लेकर विवाद बढ़ा और EWS आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया गया।

सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

साल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले EWS आरक्षण को लाया गया था। हालांकि, मामले ने तूल पकड़ा और राजनीतिक दलों ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। याचिकाओं में कहा गया कि 10 फीसदी आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला

साल 2022 में EWS आरक्षण को लेकर पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण को सही ठहराया। संविधान पीठ ने बहुमत के साथ इसे वैध करार दिया। पीठ ने कहा कि इससे संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ है।

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