भारत, अमेरिका ने मिलकर की थी चीन की जासूसी

चीन द्वारा वर्ष 1964 में किए गए पहले परमाणु बम परीक्षण के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए ने साम्यवादी राष्ट्र की जासूसी की थी। इसके लिए उसने नंदादेवी चोटी पर एक परमाणु ऊर्जा संचालित निगरानी उपकरण लगाने की कोशिश की थी। दरअसल, यह अभियान भारत और अमेरिका का संयुक्त कार्यक्रम था।

By Edited By: Publish:Sun, 01 Jan 2012 09:30 PM (IST) Updated:Mon, 02 Jan 2012 02:25 AM (IST)
भारत, अमेरिका ने मिलकर की थी चीन की जासूसी

नई दिल्ली। चीन द्वारा वर्ष 1964 में किए गए पहले परमाणु बम परीक्षण के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए ने साम्यवादी राष्ट्र की जासूसी की थी। इसके लिए उसने नंदादेवी चोटी पर एक परमाणु ऊर्जा संचालित निगरानी उपकरण लगाने की कोशिश की थी। दरअसल, यह अभियान भारत और अमेरिका का संयुक्त कार्यक्रम था।

अप्रैल, 1978 में एक अमेरिकी पत्रिका आउटसाइड में प्रकाशित रिपोर्ट के बाद इस जासूसी अभियान का रहस्योद्घाटन हुआ। रिपोर्ट में लिखा गया था कि सीआइए ने हिमालय की 25 हजार 645 फुट ऊंची चोटी पर रिमोट सेंसिंग उपकरण लगाने के लिए 1965 में एक दल भेजा था। मगर खराब मौसम ने उन्हें दो हजार फुट पहले ही रोक दिया। दल को प्लूटोनियम 238 से युक्त 125 पाउंड [करीब 57 किलोग्राम] के उपकरण को वहीं छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। एक साल बाद उसी जगह पहुंचे एक अन्य दल को यह उपकरण नहीं मिल पाया। इस उपकरण से पांच सौ साल तक रेडियोएक्टिव विकिरण का खतरा हो सकता था। एक साल बाद जब दल वापस उसी जगह पहुंचा तो उसे वह उपकरण नहीं मिला।

इस असफल प्रयास के बाद सीआइए ने इस उपकरण की तलाश का काम बंद कर दिया। इसकी जगह एक अन्य पर्वत चोटी शिखर नंदा कोट पर 1967 में गुपचुप तरीके से उपकरण स्थापित कर दिया।

राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि इससे विदेश, खासकर अमेरिका में भारतीय दूतावास काफी सक्रिय हो गए थे। उन्होंने स्थानीय मीडिया द्वारा इस मुद्दे को उछाले जाने से संबंधित नोट भेजने शुरू कर दिए थे।

दस्तावेजों के मुताबिक रहस्योद्घाटन के समय विदेश मंत्रालय के अधिकारी तक इस बात से अनभिज्ञ थे कि नंदादेवी अभियान वास्तव में भारत और अमेरिका का एक संयुक्त कार्यक्रम था। आउटसाइड के मुताबिक भारत की सीबीआइ ने सीआइए की खुफिया अभियान में मदद की थी और पर्वत शिखर पर उपकरण ले जाने के लिए कुली और वाहन मुहैया कराए थे।

भारत में उस समय अमेरिकी राजदूत रॉबर्ट गोहीन को विदेश मंत्रालय बुलाया कर स्पष्टीकरण मांगा गया था। रेडियो सक्रिय पदार्थ के गंगा नदी के जल को प्रदूषित करने की आशंका बढ़ती जा रही थी।

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि सीआइए और भारत में उसके एजेंटों ने उस समय भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस खुफिया अभियान से पूरी तरह अंधेरे में रखा। इस अभियान का उद्देश्य पड़ोसी देश चीन के परमाणु तथा मिसाइल परीक्षणों पर नजर रखना था। 17 अप्रैल, 1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने संसद को बताया कि भारत सरकार को नंदादेवी अभियान की पूरी जानकारी थी और यह दोनों देशों का संयुक्त प्रोजेक्ट था।

अमेरिकी मीडिया ने देसाई के इस बयान को भी प्रमुखता दी कि यदि वह उस वक्त प्रधानमंत्री होते तो अभियान को मंजूरी नहीं देते।

देसाई ने सदन को आश्वासन दिया कि इलाके में 1970 तक किए गए वैज्ञानिक परीक्षणों में किसी तरह के प्रदूषण के अंश नहीं मिले।

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