पढ़िए द्वितीय विश्‍व युद्ध की कहानी जब हवाइ हमले के कारण भारत के लाखों लोगों की अटकी थीं सांसें

मद्रास में दहशत का माहौल था और इस दौरान शहर से 50 हजार लोग रोजाना पलायन कर रहे थे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 08 May 2019 04:52 PM (IST) Updated:Thu, 09 May 2019 08:35 AM (IST)
पढ़िए द्वितीय विश्‍व युद्ध की कहानी जब हवाइ हमले के कारण भारत के लाखों लोगों की अटकी थीं सांसें
पढ़िए द्वितीय विश्‍व युद्ध की कहानी जब हवाइ हमले के कारण भारत के लाखों लोगों की अटकी थीं सांसें

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पुडुचेरी में आठ मई को द्वितीय विश्‍व युद्ध की समाप्ति की 74 वीं सालगिरह पर लोगों ने फ्रेंच वार मेमोरियल पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस विश्‍व युद्ध में लाखों लोगों की मौत हुई थी। दक्षिण और पूर्वी भारत में काफी संख्‍या में भारत के लोग भी मारे गए थे।

द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 36000 भारतीय सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा और लगभग 34354 सैनिक घायल हुए और 67340 युद्ध में बंदी बना लिए गए। द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में अंतिम बार युद्ध किया था क्योंकि उसके बाद 1947 में भारत आजाद हो गया और उसका विभाजन कर दिया गया आठ मई, 1945 को जर्मनी के सर्मपण के बाद द्वितीय विश्‍व युद्ध का युद्ध विराम हुआ था।

जापान के बमवर्षक विमानों ने पूर्वी और दक्षिण भारत पर किया था हमला

1945 में जापानी वायुसेना ने हमला कर ब्रिटेन से सिंगापुर और अंडमान निकोबार छीन लिया। यहां तक दक्षिण पूर्वी एशिया के ज्‍यादातर देशों को जीत लिया। इसके बदले भारतीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने वाले अमेरिकी विमानों ने पोर्ट ब्लेयर में जापानी जहाजों पर बमबारी की। पहला हमला कोलंबो पर किया गया। पांच अप्रैल, 1945 को इस्‍टर के मौके पर जापान के 75 विमानों ने एक साथ बमबारी शुरू कर दी। बंदरगाहों और आसपास पर मशीन गन से फायरिंग शुरू की।

तमिल में बात कर रहे सीलोन के गवर्नर सर एंड्रयू कैल्डेकॉट ने बंदरगाह के आसपास के दुकानदारों से कहा कि वे घबराएं नहीं। हालांकि इस दौरान 50 लोगों की मौत हो चुकी थी, लेकिन उनकी बातों पर लोगों का विश्‍वास नहीं रहा। काफी संख्‍या में लोगों ने सीलोन छोड़ दिया और वहां से तमिलनाडु में धनुषकोडि और तूतीकोरिन पहुंचे। ऐसे में बड़े पैमाने पर शरणार्थियों के पलायन की खबर मद्रास तक और पुडुचेरी पहुंच गई। जापान के वर्मा पर हमले के बाद करीब 700 तमिल शरणार्थियों ने कोलकाता में शरण ली। फिर यहां से ट्रेन पकड़कर मद्रास (वर्तमान चेन्‍नई) के लिए रवाना हुए। उनकी बातों से युद्ध की भयावहता का पता चलता है।

जापान ने 20 बमों से हमला किया 

6 अप्रैल तक आते-आते शहर में सुरक्षा की भावना खत्‍म हो चुकी थी। सात अप्रैल की सुबह को जापानी विमान ने काकीनाडा शहर पर हमला कर दिया था जो मद्रास सात सौ किमी उत्‍तर में बसा था। इस हमले में दो जहाज क्षतिग्रस्‍त हुए और एक व्‍यक्ति की मौत हुई व पांच लोग घायल हो गए। अभी और हमले की खबर आनी बाकी थी। दोपहर दो बजे कुछ विमानों ने विशाखापट्नम पर हमला कर दिया।

उन्‍होंने शाम पांच बजे दुबारा हमला किया। सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति से पता चला कि इस दौरान 20 बमों से हमला किया लेकिन उनसे ज्‍यादा नुकसान नहीं हुआ। हालांकि सरकार ने स्‍वीकार किया कि हमले में पांच लोगों की मौत हो गई और 40 लोग घायल हो गए। यह स्पष्ट नहीं है कि यह खबर उसी शाम मद्रास तक पहुंची या नहीं। लेकिन कुछ के लिए रात की नींद अचानक कम हो गई थी।

हमले की खबर पर रोजाना 50 हजार लोग कर रहे थे पलायन

सात अप्रैल को सुबह 4.35 मिनट पर लोगों की सुरक्षा के लिए एयर रेड अलर्ट जारी किया गया। अगले कुछ घंटे शहर के लिए पीड़ादायी थे। सुबह 5.55 मिनट पर ऑल क्लियर सिग्‍नल मिलने के बाद लोगों ने राहत की सांस ली क्‍योंकि इस दौरान कोई बम नहीं गिरा और कोई फायरिंग नहीं हुई। शहर में दहशत का माहौल था और इस दौरान शहर से 50 हजार लोग रोजाना पलायन कर रहे थे।

ट्रेनों में अत्‍यधिक भीड़ थी। स्‍टेशन पर शाम को पहुंचने वाले बिना रोशनी के बेचैनी के साथ वक्‍त काट रहे थे। इस दौरान अगले अलर्ट का सायरन न बजे, इसको लेकर चिंतित थे। बाद में आगे चल कर सबसे आखिरी में जापान ने समर्पण किया तो लोगों ने राहत की सांस  

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