32 फीसद दुष्कर्म के मामलों में ही हो पाती है दोषसिद्धि, बाकी मामलों में छूट जाते हैं आरोपित

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार देश में दुष्कर्म के करीब 32.2 फीसद मामले ऐसे हैं जिनमें दोषसिद्धि हो पाती है। बाकी मामलों में आरोपित छूट जाते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 16 Dec 2019 08:54 AM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2019 08:54 AM (IST)
32 फीसद दुष्कर्म के मामलों में ही हो पाती है दोषसिद्धि, बाकी मामलों में छूट जाते हैं आरोपित
32 फीसद दुष्कर्म के मामलों में ही हो पाती है दोषसिद्धि, बाकी मामलों में छूट जाते हैं आरोपित

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। निर्भया दुष्कर्म मामले को सात साल का लंबा वक्त बीत चुका है। दुष्कर्म के कई मामलों ने देश को झकझोरा और लोगों ने सड़कों पर निकलकर अपना विरोध जताया। इस बीच कानून और सुरक्षा चौकसी को मजबूत किए जाने के दावे होते रहे, लेकिन महिलाएं निर्भय न हो सकीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार देश में दुष्कर्म के करीब 32.2 फीसद मामले ऐसे हैं जिनमें दोषसिद्धि हो पाती है। बाकी मामलों में आरोपित छूट जाते हैं।

मामले सामने आते हैं, दोषी नहीं

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में दुष्कर्म के कुल मामले जो ट्रायल के लिए गए उनकी संख्या एक लाख 46 हजार 201 थी, लेकिन इनमें से केवल 5 हजार 822 मामलों में ही दोषसिद्धि हो सकी। चार्जशीट पेश करने की दर में भी गिरावट दर्ज की गई है। 2017 में चार्जशीट पेश करने की दर 86.6 फीसद रही जो

2013 में 95.4 फीसद थी।

बिना कोर्ट पहुंचे कैसे होगा न्याय

यह आंकड़े चिंताजनक इसलिए हैं कि दुष्कर्म मामलों में दोषसिद्धि की दर में मामूली सा इजाफा हुआ है लेकिन चार्ज शीट दर में गिरावट दर्ज की गई है। यह इसलिए भी चिंताजनक है कि जब मामले कोर्ट तक जाएंगे ही नहीं तो न्याय कैसे होगा?

इसलिए नहीं होती दोषसिद्धी

चर्चित अलवर दुष्कर्म केस में एक विदेशी महिला के साथ ओडिशा के पूर्व डीजीपी बीबी मोहंती के बेटे बिट्टी मोहंती ने दुष्कर्म किया था। इस मामले में बचाव पक्ष की वकील रहीं शिल्पा जैन के अनुसार पुलिस के फील्ड लेवल स्टॉफ को दुष्कर्म मामलों की जांच के लिए ज्यादा प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। वे अप्रशिक्षित होते हैं, ताकत उनके हाथों में होती है और ज्यादातर मामलों में वे भ्रष्ट होते हैं। उसी प्रकार से, जिला स्तर पर अभियोजन पक्ष कम क्षमता और कम योग्य होता हैं। यह सभी कारक मिलकर कम दोषसिद्धि की वजह बनते हैं।

निर्भया के बाद जागा प्रशासन

निर्भया दुष्कर्म मामले के एक सप्ताह बाद यौन उत्पीड़न मामलों से कठोरता से निपटने के लिए जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी को आपराधिक मामलों की समीक्षा के लिए गठित किया गया। कमेटी ने एक महीने में अपनी रिपोर्ट दे दी। इसी के आधार पर आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013 में दुष्कर्म के लिए सबसे बड़ी सजा फांसी या फिर उम्रकैद का प्रावधान किया गया। 03 फरवरी 2013 को आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश 2013 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अनुमोदित किया। यह अध्यादेश दुष्कर्म के मामले में मौत की सजा का प्रावधान करता है।

किशोरों से सख्ती

किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख व सुरक्षा) अधिनियम 2015 को भी संसद ने पारित किया। इसमें 16 से 18 साल का किशोर यदि जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उस पर एक वयस्क की तरह व्यवहार किया जाएगा।

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