माइक्रोबायोलॉजी में करियर को दें नया विस्तार, हेल्थकेयर सेक्टर के फील्ड में अपार संभावनाएं

माइक्रोबायोलॉजिस्ट की मांग मेडिकल के अलावा फार्मा कृषि फूड से लेकर तमाम अन्य क्षेत्रों में बढ़ गई है। वहीं हेल्थकेयर सेक्टर में निवेश के बढ़ने से उम्मीदों को नए पंख लगे हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 02 Sep 2020 02:23 PM (IST) Updated:Wed, 02 Sep 2020 02:23 PM (IST)
माइक्रोबायोलॉजी में करियर को दें नया विस्तार, हेल्थकेयर सेक्टर के फील्ड में अपार संभावनाएं
माइक्रोबायोलॉजी में करियर को दें नया विस्तार, हेल्थकेयर सेक्टर के फील्ड में अपार संभावनाएं

अंशु सिंह, नई दिल्‍ली। जिस तरह से दुनिया भर में नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए कई सूक्ष्म जीवाणुओं का अब भी पता लगाया जाना बाकी है। वैज्ञानिक एवं माइक्रोबायोलॉजिस्ट इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। वे महामारियों से लड़ने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। माइक्रोबायोलॉजिस्ट की मांग मेडिकल के अलावा, फार्मा, कृषि, डेयरी, फूड से लेकर तमाम अन्य क्षेत्रों में बढ़ गई है। वहीं, हेल्थकेयर सेक्टर में निवेश के बढ़ने से भी उम्मीदों को नए पंख लगे हैं...

देश के विभिन्न हिस्सों से अक्सर ऐसी खबरें सुनने में आती हैं कि फसलों की कटाई के बाद किसान बाकी बचे कृषि कचरे में आग लगा देते हैं, जिससे काफी प्रदूषण होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सूक्ष्म जीवाणुओं की मदद से फसल के इन अवशेषों से अन्य उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं। इस एग्रीकल्चर वेस्ट मैनेजमेंट से न कोई बर्बादी होती है और न ही कोई प्रदूषण। उल्टा उससे बायोइथेनॉल (बायोफ्यूल) जैसे प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं। माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीव तैयार कर सकते हैं जिससे कि फसल का उत्पादन बढ़ाया जा सके। चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी एवं बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. गुंजन मुखर्जी बताते हैं कि सूक्ष्म जीव मानव के लिए सिर्फ हानिकारक ही नहीं होते हैं, बल्कि उनमें से तमाम के कई फायदे भी हैं। कृषि के अलावा फूड इंडस्ट्री में दही, ब्रेड, केक आदि बनाने में इनका प्रयोग किया जाता है।

पर्यावरण को स्वच्छ रखना हो, तो उसमें भी वे काफी मददगार हैं। मसलन, कार्बनिक अवशिष्ट (सब्जियों के छिलके, जंतु अवशेष आदि) का अपघटन जीवाणुओं द्वारा ही किया जाता है, जिनका बाद में खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनके अलावा, औषधि, शराब एवं ब्रूअरी इंडस्ट्री में भी इनका इस्तेमाल फर्मेंटेशन के लिए किया जाता है। आपने देखा होगा कि जब आप बीमार पड़ते हैं, तो डॉक्टर आपको पेनिसिलिन का इंजेक्शन देते हैं या फिर कोई अन्य एंटीबॉयोटिक देते हैं। इनका स्रोत सूक्ष्मजीव ही तो हैं, जो बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोक देते हैं। इसी प्रकार, ब्लड या ग्लूकोज टेस्ट के लिए जो किट होते हैं, उनके निर्माण में माइक्रोब्स का इस्तेमाल होता है। जो लोग इन सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करते हैं, वे माइक्रोबायोलॉजिस्ट कहलाते हैं।

क्या है माइक्रोबायोलॉजी?

यह बायोलॉजी की एक शाखा है, जिसमें सूक्ष्म जीवाणुओं, प्रोटोजोआ, शैवाल (एल्गी), बैक्टीरिया, वायरस आदि का अध्ययन किया जाता है। इन सूक्ष्म जीवों को सिर्फ माइक्रोस्कोप के जरिये ही देखा जा सकता है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट इन जीवाणुओं के इंसानों, पौधों व जानवरों पर पड़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों को जानने की कोशिश करते हैं। इससे बीमारियों आदि के कारण को जानने में मदद मिलती है। इसके अलावा, जीन थेरेपी से जेनेटिक डिसॉर्डर्स के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। मेडिकल (कंसल्टेंट) माइक्रोबायोलॉजिस्ट मरीजों की देखभाल से लेकर तमाम तरह के माइक्रोब्स का पता लगाते हैं। कल्चर एवं एंटीबायोटिक सस्पेटिबिलिटी पैटर्न (किस मरीज पर कौन-सा एंटीबायोटिक प्रभावी होगा, कौन-सा रेजिजटेंट है, कौन नहीं) से संबंधित जानकारी देने की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।

 

शैक्षिक योग्यता

देश के कई विश्वविद्यालयों में माइक्रोबायोलॉजी में अंडरग्रेजुएट एवं पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज उपलब्ध हैं। इसके लिए स्टूडेंट्स को साइंस (बायोलॉजी) से 12वीं पास होना चाहिए। वहीं, पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए माइक्रोबायोलॉजी या लाइफ साइंस में स्नातक की डिग्री होनी चाहिए। बायोलॉजी विषय से 12वीं पास करने के बाद माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न विशेषज्ञता वाले कोर्सों में दाखिला लिया जा सकता है, जैसे-इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, एग्रो माइक्रोबायोलॉजी, जेनेटिक्स, इम्युनोलॉजी आदि। जो हायर स्टडीज में जाना चाहते हैं, वे माइक्रोबायोलॉजी में डीएनबी कर सकते हैं। कई स्टूडेंट्स जीआरई एवं टॉफेल के जरिये विदेश से पीएचडी या पोस्ट डॉक्टोरल कर सकते हैं।

संभावनाएं

विशेषज्ञों की मानें, तो कुछ साल पहले तक हॉस्पिटल मैनेजमेंट से जुड़े लोगों में माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स की भूमिका को लेकर अधिक जागरूकता नहीं थी। वे उनके कार्य को सिर्फ लेबोरेट्री तक सीमित मानते थे। लेकिन साइंस एवं टेक्नोलॉजी फील्ड में नए प्रयोग, इनोवेशन होने के बाद से अब अस्पतालों में होने वाले संक्रमण की रोकथाम के लिए इनका काफी सहयोग लिया जा रहा है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स के लिए हॉस्पिटल, लेबोरेट्री, फार्मा, डेयरी, कृषि, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में अच्छे अवसर बने हैं। वे चाहें, तो कॉस्मेटिक्स, हेल्थकेयर, क्लीनिकल रिसर्च, वॉटर इंडस्ट्री, केमिकल टेक्नोलॉजी, बायोटेक, पर्यावरण से जुड़े संस्थानों, मेडिसिन, इम्युनोलॉजी, जेनेटिक्स इत्यादि सेक्टर में भी कार्य कर सकते हैं। एकेडमिक्स में जाने के इच्छुक यूनिवर्सिटीज या साइंटिस्ट्स के साथ जुड़कर काम कर सकते हैं। इन सबके अलावा, नेशनल एयरोनॉटिक्स एवं स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन में भी इनकी सेवाएं ली जाती हैं। कोविड-19 के बाद कंपनियां विभिन्न प्रकार के किट के निर्माण एवं वैक्सीन तैयार करने में लगी हुई हैं। इससे भी माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स की मांग काफी बढ़ गई है।

प्रमुख संस्थान

सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई

http://xaviers.edu/main/index.php/admissions-and-courses

मद्रास क्रिश्चन कॉलेज, चेन्नई

https://www.mcc.edu.in/

चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़

https://www.cuchd.in/

फरगुसन कॉलेज, पुणे

https://www.fergusson.edu/

गार्गी कॉलेज, दिल्ली

https://gargicollege.in/

रिसर्च एवं इनोवेशन को देते हैं प्रोत्साहन

चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी के एओडी डॉ. गुंजन मुखर्जी ने बताया कि हमारे विश्वविद्यालयों में माइक्रोबायोलॉजी में अंडर ग्रेजुएट के साथ पोस्टग्रेजुएट कोर्स उपलब्ध हैं। इसमें भी विशेष रूप से इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी में विशेषज्ञता प्राप्त करने की सुविधा है। हमने कोर्सेज को तीन श्रेणियों में विभाजित किया हुआ है-इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी एवं एग्रीकल्चर माइक्रोबायोलॉजी।

इससे हम फाइनल ईयर स्टूडेंट्स को अपनी मर्जी से स्पेशलाइजेशन चुनने का मौका देते हैं। हमारे यहां रिसर्च एवं इनोवेशन को भी काफी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कैंपस में पायलट स्केल प्रोडक्शन सिस्टम यानी फर्मेंटर स्थापित किया गया है, जिसके जरिये स्टूडेंट्स को एंटीबॉयोटिक्स आदि तैयार करने की ट्रेनिंग दी जाती है। फिलहाल, कॉलेज में चल रहे तीन प्रोजेक्ट्स में से दो केंद्र सरकार के साइंस एवं टेक्नोलॉजी विभाग की ओर से चलाए जा रहे हैं, जिसके लिए फंड्स भी मिले हैं।

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